बेगूसराय चुनाव – एक संस्मरण
भाग-एक
2 अक्टुबर, 2018 को गेादरगांवा (बेगूसराय) के एतिहासिक विप्लवी पुस्तकालय में गाँधी जयंती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित था। राजद के नये बने राज्यसभा सांसद मनोज झा, राजद के बेगूसराय के एम.एल.सी तनवीर हसन और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मणीन्द्रनाथ ठाकुर आमंत्रित थे। तब तक हवा में कन्हैया के बेगूसराय से चुनाव लने की बात हवा में तैर रही थी। उसके मात्र एक सप्ताह पूर्व 25 अक्टुबर को पटना के गाँधी मैदान में आयोजित रैली में तनवीर हसन राजद की नुमाइंदगी कर रहे थे। अपने भाषण में बार-बार तेजस्वी यादव का नाम लेते रहे। मंच पर चूँकि कन्हैया उपस्थित थे अतः किसी को उनका तेजस्वी का नाम लेना अच्छा नहीं लगा। बल्कि सी.पी.आई के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने संचालन के दौरान अपने वक्तव्य में ये उद्गार व्यक्त भी कर डाला कि ‘‘आपके पास तेजस्वी है तो हमारे पास कन्हैया है! कन्हैया सबसे अन्त में बोलने के लिए आए। लोगों में काफी उत्तेजना थी। कन्हैया के बोलने के बाद किसी ने जब सभी लोग मंच से उतरने लगे संभवतः ए.आई.एस.एफ के किसी साथी ने, माइक पर ये नारा लगा दिया ‘बेगूसराय का सांसद कैसा हो’ ‘कन्हैया कुमार जैसा हो’। लेकिन जल्द ही ए.आई.एस.एफ के राल्य सचिव सुशील ने इस नारे के लिए माफी माँगी थी।
प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन द्वारा 2 अक्टुबर को गोदरगावां में आयोजित कार्यक्रम में अंदरूनी तनाव झलक रहा था। मनोज झा और तनवीर हसन दोनों ने सभा को सम्बोधित किया लेकिन सभा के दौरान ही दोनों रूखसत हो गए। राजन जी ने तनवीर हसन की तारीफ भी की कि ये पुस्तकालय को मदद भी करते रहे हैं, कुछ फण्ड भी मुहैया कराया है। लेकिन तनवीर हसन ने मनोज झा की मौजूदगी का लाभ उठाकर उनका बेगूसराय में प्रेस कांफ्रेस रख दिया था लिहाजा वे मनोज झा को लेकर बीच में ही चले गए। वहाँ मौजूद दिल्ली दूरदर्शन के पत्रकार धीरज ने ये आशंका जाहिर की कि संभवतः ये प्रेस कांफ्रेस कन्हैया की उम्मीदवारी को राजद द्वारा समर्थन की अफवाहों पर विराम देने के लिए आयाजित किया गया था। धीरज की इस आशंका पर सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ लेकिन धीरज की बात सच निकली। कार्यक्रम के बाद मणीन्द्र नाथ जी ने भी ये बताया कि अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व का बहाना लेकर मनोज झा जैसे लोग कन्हैया की उम्मीदवारी पर अड़ंगा लगा सकते हैं।
उस घटना के बाद से काफी वक्त बीत चुका है। बेगूसराय चुनाव सम्पन्न हो चुका है। बिहार या देश के चुनावी इतिहास में बेगूसराय की लड़ाई एक ‘एपिक’ लड़ाई का दर्जा पा चुकी है। कौन जीतेगा इसे लेकर जैसी उत्सुकता देश भर में व्यापत है वो अभूतपूर्व है। भाजपा कैम्प में चिन्ता की लकीरें स्पष्ट देखी जा सकती हैं। यदि बेगूसराय चुनाव को एक पंक्ति में कहना हो तो यही कहा जाएगा कि जाति व धर्म की मजबूत दीवारों के बीच से वर्ग झांकता दिखाई दे रहा था। झांकते हुए वर्ग की झलक दिखाई पड़ना ही ही शासक वर्ग की पार्टियों को परेशान करने के लिए काफी है।
9 अप्रैल को हम चार पाँच लोग जिसमें मेरे अलावा जे.पी, गजेंद्रकांत और आशुतोष सहित कन्हैया के नामाँकन के दिन बेगूसराय पहुँचे। रास्ते में आशुतोष पाण्डेय ने अपने बेलौस अंदाज कई दिलचस्प चीजें बतलायीं। कन्हैया, राजू यादव, बेगूसराय, आरा आदि की बातें होती रहीं। नामाँकन जुलूस में तो नहीं पहुँच पाए लेकिन बेगूसराय पहुँचते- पहुँचते हमारा सामना एक बड़े जाम से हो गया। इस दरम्यान बारिश हो गयी थी। पता चला कि कन्हैया का काफिला इतना बड़ा था कि कि पूरा शहर ठहर सा गया। हमलोग किसी तरह अपनी सवारी छोड़ पैदल उस स्थल पर पहुँचे जहाँ नामाँकन के बाद की सभा होनी थी। वो जगह बी.डी.कॉलेज के बगल स्थित एक मैदान था। मुश्किल से किसी तरह हम चारों सभा स्थल पर पहॅुंचे।
मुझे याद आया 2009 में इसी मैदान में तब वामदलों के संयुक्त उम्मीदवार शिक्षक नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह की सभा हुई थी जिसमें भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य हन्नान मौला, भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव ए.बी.वर्द्धन भी मौजूद थे। उस वक्त उनका मुकाबला जदयू के मुनाजिर हसन से था। मोनाजिर हसन अपने भाषणों में कम्यूनिस्टों पर काफी हमला करते। वो सभा काफी अच्छी थी और मुझे शत्रुघ्न प्रसाद सिंह की वो आत्मविश्वास से भरी मुद्रा अभी भी याद है जिसमें दोनों हाथों मुट्ठी में बाँधकर हाथ उठाते हुए वे अपनी जीत के प्रति बेहद आश्वस्त दिखाई दे रहे थे। मुझे भी लगता था कि वे जीत जायेंगे। लेकिन बेगूसराय स्टेशन के ठीक सामने नीम्बू की चाय वाली की दुकान पर तब जदयू के नेता व मेरे पुराने परिचित भूमिपाल राय ने कहा था कि ‘‘कम्युनिस्ट लोग चनाव हार जायेंगे ” उसनें मुझे विस्तार से वहाँ के समीकरण समझाए। उसकी बातों में दम लगते हुए हुए मन मानने को तैयार नहीं था। लेकिन उसकी बात सच निकली। शत्रुघ्न प्रसाद सिंह हार गए। पूरे हिन्दी क्षेत्र में वामपंथ के अपनी बदौलत जीतने की एकमात्र सम्भावना यहीं थी जो धुमिल हो चुकी थी।
उस बात को दस साल हो गए। मैं फिर उसी मैदान में खड़ा था। लेकिन इस बार नजारा बदला-बदला सा था। हवा में जैसे बिजली हो। लोगों में काफी उत्साह था, मैदान भी लगभग भरा हुआ। लोगों ने बताया कि लालू प्रसाद के सबसे अच्छे दिनों में इस मैदान में जितनी भीड़ न थी उससे अधिक लोग आज मौजूद थे। ऐसा लगता मानो हर व्यक्ति एक्शन के लिए तैयार हो। चूँकि सभा प्रारम्भ होने से पहले आसमान में बादल छा गए ऐसा लगने लगा कि फिर बारिश हो जाएगी। उधर सभा शुरू हो गयी। विभिन्न दलों के नेता सभा को सम्बोधित कर नरेन्द्र मोदी की नीतियों की ओलाचना कर रहे थे, कन्हैया को समर्थन और शुभकामनाएँ दे रहे थे। कांग्रेस के भी कई कार्यकर्ता व नेता कन्हैया को समर्थन देने आ गए थे। अब तक कन्हैया मंच पर न थे इस कारण आगे की पंक्तियों में बड़ी संख्या में बैठे नौजवान काफी शोर करते नजर आ रहे थे। मंच पर मौजूद कई नेताओं ने उन नौजवानों को शांत करने का प्रयास किया। तीस्ता सीतलवाड़, स्वरा भास्कर, जे.एन.यू के गायब छात्र नजीब की माँ जिग्नेष मेवाणी, कन्हैया के जे.एन.यू के साथी शाहिला रशीद, रामा नागा, सी.पी.एम के पोलित ब्यूरो सदस्य हन्नान मौला, सी.पी.आई के राष्ट्रीय नेता अतुल कुमार अंजान, भाकपा-माले के सत्यदेव राम, देवेन्द्र यादव आदि मंच पर मौजूद थे। सी.पी.आई के बछवाड़ा के पूर्व विधायक अवधेष राय संचालन कर रहे थे। सभी एक-एक कर अपना सम्बोधन करते रहे। देवेन्द्र यादव एकमात्र वक्ता जिन्होंने टिकट दे देने के लिए लालू प्रसाद व तेजस्वी यादव को आड़े हाथो लिया।
ज्योंहि कन्हैया घेरे में साथियों के साथ मंच पर आता है एक गाना उसके नाम का बजने लगता है ‘आ गया …. कन्हैया..,’ सभी उस गीत को सुनने में लगते हैं … मेरे बगल में बैठे कुछ वरिष्ठ किस्म के लोगों को समझने में देर लगती है बम्बईया स्टाइल के उस गाने से वे थोड़े असहज भी दिखते हैं। भीड़ मैदान में चारों ओर फैली है। कन्हैया बीच में उठकर अधीर व उत्साही नौजवानों के समूह को शांत करता है। कुछ-कुछ वैसा ही जैसे लालू प्रसाद अपने दिनों में किया करते थे। अतुल अंजान, जिग्नेष मेवाणी, नजीब की माँ, शैहला के भाषण को लोगों ने पसन्द किया।
कन्हैया अन्त में बोलने आता है। देर तक नारे लगने लगते हैं। कैमरमैन, मोबाईल वाले सभी पोडियम की ओर दौड़ पड़ते हैं। यहाँ तक कि तीस्ता, शैहला व जिग्नेष भी अपने मोबाईल निकाल उसके भाषण को रिकॉर्ड करने लगते हैं। भीड़ कई तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करती है नौजवान सीटी और हल्ला करके, पीछे के अपेक्षाकृत संजीदा लोग ताली बजाकर कन्हैया का स्वागत करते हैं। कन्हैया अपने पूरे भाषण में व्यंग्य, हास्य, चुटकुले, कहावतों एवं लोकोक्तियों का खूब प्रयोग करता है। बोलते-बोलते जब-जब हिन्दी छोड़ बेगूसराय की मैथिल भाषा में उतरता दर्शकों में विशेष प्रतिक्रिया होती। कन्हैया व्यंग्य करता है ‘‘जब मैंने जे.एन.यू में पी.एच.डी किया करता था तो मुझ पर तोहमत लगाया जाता कि कब तक पढ़ूंगा, क्या बूढ़ा होने तक अध्ययन ही चलता रहेगा? और जब मैं चुनाव लड़ने आ गया तो यही लोग मुझे ‘बुतरू’ कहने लगे हैं’’ दर्शक जोरों का ठहाका लगाते हैं। भिन्न कोने से आये दर्शकों को एक सूत्र में बाँधने वाली चीज थी हंसने की साम्रगी जो कन्हैया के मोदी शासन के दौरान उभर आए अन्तर्विरोधों पर उंगली रखकर व्यंग्य पैदा कर रहा था।
सभा के बाद हम चारों पटना लौट आए।
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