लोकसभा चुनाव

गड़बड़ वोटर लिस्ट; बढ़ी धड़कन, नींद हराम – शिवाशंकर पाण्डेय

 

वोटरों को जागरूक करने के लिए सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर तमाम किए गए प्रयास धरे रह गए। वोटर तो वोट डालने बूथ तक आए पर वोटर लिस्ट में नाम ग़ायब देख व्यवस्था को कोसते वापस बैरंग लौट गए। अनुमान है कि बीस फीसदी लोगों को बैरंग लौटना पड़ा। लाख कोशिश के बावजूद मतदान प्रतिशत कम रहा। सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं का मतदाता जागरूकता अभियान रहा हो या हमारा बूथ सबसे मजबूत के नारे,  सब के सब हवा-हवाई साबित हुए। मतदान के दिन इन तमाम दावों की पोल खुल गई।  मतदान दिवस की शाम जिला प्रशासन ने वोटिंग का प्रतिशत 51.56 बताया, वहीं दूसरे दिन संशोधित करके 48.56 का ऐलान किया।

इलाहाबाद की शहर पश्चिमी क्षेत्र स्थित किदवई गर्ल्स इंटर कॉलेज, अटाला के मजिदिया इस्लामिया कॉलेज, कसारी मसारी, दारागंज, अल्लापुर, झूँसी, सहसों, सरायइनायत, फाफामऊ, कौड़िहार के कछारी इलाके के साढ़े तीन दर्जन से ज्यादा बूथों पर हजारों वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सके। बीएलओ और विभिन्न दलों के बूथ टीम ने हद दर्जे की लापरवाही की। लालगोपालगंज में इब्राहिमपुर स्थित महर्षि मुक्त विद्यालय में पांच बूथों पर पांच हजार सात वोट हैं पर यहाँ महज दो हजार ग्यारह वोट ही डाले गए। खास बात यह है कि इस मतदान केन्द्र को आदर्श मतदान केन्द्र का दर्जा दिया गया था। इसी प्रकार खानजहाँपुर के नोमानिया में बने छः बूथों पर 3822 में केवल 1675 वोट डाले जा सके।

इलाहाबाद शहर उत्तरी क्षेत्र में भी मतदान फीका रहा। पिछले संसदीय उपचुनाव में भी यहाँ कम वोट पड़ा था। इलाहाबाद  के अतरसुइया, मीरापुर, करेली, धूमनगंज, प्रीतमनगर, अकबरपुर, नीवाँ, उमरपुर, राजरूपपुर, मुट्ठीगंज, बैरहना, रामबाग, कीडगंज, नैनी बाजार, जार्जटाउन, टैगौरटाउन, कर्नलगंज, बघाड़ा समेत कई बूथ ऐसे रहे जहाँ वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं कर सके।  12 मई को हुए छठे चरण के चुनाव में इलाहाबाद और उसके बगल फूलपुर संसदीय सीट पर हजारों वोटर अपने मताधिकार से वंचित रहे। सरकारी मशीनरी सफेद हाथी साबित हुई और बीएलओ की टीम आखिरी दौर तक नकारा दिखी।

कई मतदान केन्द्रों पर बस्ता तक नहीं लगा शुरू से आखिरी तक कागजी घोड़ें दौड़ाये गए। कार्यकर्ताओं की टीम भी वोटर लिस्ट में छूटे वोटरों का नाम दर्ज नहीं करा सकी। कोई मतदान केन्द्र ऐसा नहीं रहा जहाँ बड़े पैमाने पर वोटर लिस्ट में नाम गायब न हुआ रहा हो। गाँव के बीएलओ ने घोर लापरवाही किया तो विभिन्न दलों के बूथ स्तर की कमेटियाँ भी फर्जी रिपोर्ट ऊपर भेजते रहे और पार्टी पदाधिकारी उसी रिपोर्ट पर इतराते रहे। वोटर तो उत्साहित रहे पर व्यवस्था ने ही बेरुखी दिखायी। मतदान के लिए जागरूकता अभियान चलाए गए इसमें लाखों रुपये पानी की तरह बहा दिये गए नतीजा निराश करने वाला रहा।

देश की टॉप टेन सीटों में नाम कराने वाली इलाहाबाद और फूलपुर संसदीय सीट पर चुनावी गहमागहमी तेज रही। इलाहाबाद संसदीय सीट पर भाजपा ने डॉ. रीता बहुगुणा जोशी, कांग्रेस ने योगेश शुक्ला, गठबन्धन ने राजेन्द्र प्रताप पटेल को मैदान में उतारा। डॉ. रीता बहुगुणा जोशी प्रदेश सरकार में कैबिनेट मन्त्री और राजनीति के नटवर लाल कहे जाने वाले कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री हैं। कांग्रेस प्रत्याशी योगेश शुक्ला भाजपा से टिकट न मिलने पर नामांकन के एक दिन पहले कांग्रेस का दामन थामा। वहाँ कांटे की लड़ाई भाजपा और गठबन्धन प्रत्याशी के बीच बतायी जा रही है। इसी प्रकार देश को पं. नेहरू के तौर पर प्रथम प्रधानमन्त्री देने वाली फूलपुर संसदीय सीट पर भाजपा ने इस बार केशरी देवी पटेल पर दाँव लगाया है।

इसी सीट पर केशरी देवी पटेल भाजपा के खिलाफ बसपा प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़कर हार चुकी हैं। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष केशरी देवी पटेल का भी मुकाबला यहाँ गठबन्धन प्रत्याशी पंधारी यादव से ही बताया जा रहा है। इलाहाबाद और फूलपुर दोनों सीटें गठबन्धन की तरफ से सपा के पाले में है। फूलपुर में कांग्रेस प्रत्याशी पंकज निरंजन लड़ाई से बाहर बताए जा रहे हैं। भाजपा ने यहाँ पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा तो सपा-बसपा गठबन्धन ने समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोटरों का सहारा लिया। कड़े मुकाबले में कम तादाद में पड़े वोटों ने बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। इससे प्रत्याशियों और पार्टी के नेताओं के दिल की धड़कन तो बढ़ा दी है।

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लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रदेश महासचिव हैं| +918840338705, shivas_pandey@rediffmail.com

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