सिनेमा

सिनेमाई खजाने की जड़ीबूटी है ‘वनरक्षक’

 

{Featured in IMDb Critics Reviews}

 

निर्देशक – पवन कुमार शर्मा
लेखक – जितेंद्र गुप्ता
स्टार कास्ट – धीरेंद्र ठाकुर, आदित्य श्रीवास्तव, यशपाल शर्मा, राजेश जैस, फ़लक खान
रिलीजिंग प्लेटफॉर्म – शिमारू मी और एयरटेल एक्सट्रीम
अपनी रेटिंग – 3.5 स्टार

साल 1880 के बाद से 21 वीं सदी के प्रत्येक साल को सबसे गर्म सालों की सूची में 14 वें पायदान पर रखा गया है। साल 2000 से 2004 के बीच हुए सर्वे के अनुसार अलास्का, पश्चिमी कनाडा, रूस में औसत तापमान वैश्विक औसत में दो-गुना दर से बढ़े हैं। आने वाले दशकों में और साल 2085 में बाढ़ पीड़ितों की संख्या 5.5 मिलियन होने की संभावना है। समुद्र के जल स्तर में तेजी से बदलाव देखे जा रहे हैं। क्या आपको जानकारी थी इन आंकड़ों की। सम्भवतः नहीं क्यों क्योंकि इससे हमें क्या, हमें क्या फर्क पड़ रहा है। हमें तो अपने काम-धंधे करने हैं उसके बाद खाना है पीना है और इसी तरह एक दिन दुनिया से चले जाना है।

अरे मंदबुद्धियों जागो और जरा निहारो हमने प्रकृति का कितना नुकसान कर दिया है। यही वजह है कि हम आज महामारियों से मर रहे हैं। अपने घरों में कैद हैं, कृत्रिम सांसें खरीद रहे हैं, उसके लिए हजारों-लाखों देने को तैयार हैं। समय रहते अगर हम जागे होते तो क्या इन सबकी जरूरत होती। सोचो…सोचो खूब सोचो नहीं सोच पाए तो यह फ़िल्म तुम्हें सूचवायेगी फिर भी तुम नहीं सोच पाते हो तो तुम्हें जीने का इस दुनिया में कोई हक नहीं। और एक बात इस फ़िल्म को देखने के बाद सिनेमा की उस चौखट को जरा अपने घरों में कैद होते हुए भी मन ही मन प्रणाम, नमन वंदन कर लीजिएगा जहां से निकलकर यह आई है।

अब फ़िल्म की बात फ़िल्म की कहानी है एक चिरंजीलाल की जो गरीब है जैसे तैसे मेहनत करके पढ़ रहा है। मीलों रास्ते जंगलों – पहाड़ों के रास्ते स्कूल जाता है इस वजह से उसकी कुदरत से गहरी दोस्ती हो गई है। जो लोग मानते हैं कि तकदीर इंसान की जिंदगी की कहानी लिखती है चिरंजी उसे नहीं मानता। खुद अपनी कहानी लिखता है यही वजह है कि छोटी सी उम्र में जिंदगी के कड़े इम्तिहान दिए और वक्त से पहले संजीदा हो गया। अब वह फॉरेस्ट गार्ड बनता है। और जंगलों में हो रही कटाई के लिए अच्छे काम करता है इसमें साथ देती है उसके साथ की आँचल कुमारी। कहानी वनों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले जो इतिहास में दर्ज हो चुके हैं चिपको आंदोलन में उनकी भी याद दिला देती है। वे भी तो वन रक्षक ही थे एक तरह से। खैर अब चिरंजीलाल अपने उस कॉलेज में आकर अपनी ही प्रिंसिपल के सामने बरसों पुरानी बात बताता है जिसके कारण वह आगे डिग्री हासिल नहीं कर पाया लेकिन उसने वो हासिल कर लिया जो हर कोई नहीं कर पाता। अब वनों की रक्षा करते हुए एक दिन उसकी मौत हो जाती है और रहस्य बनकर रह जाती है।

कहानी विशेष इसलिए बन जाती है क्योंकि हमारी दुनिया में ऐसे कई वनरक्षक आए हैं जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति उस प्रकृति के यज्ञ में हविषा के रूप में डाली है। हम जिस मुगालते में जी रहे हैं यह फ़िल्म उस पर अपना हाथ फेरती है और हमारे जेहन में जमा उस जर्द को साफ करने की कोशिश करती है। ये वनरक्षक हमारे जीवन के सैनिक हैं उन्हीं सैनिकों की भांति जो सीमाओं पर लड़ रहे हैं दुश्मनों से। वनरक्षक धरती पर जीवों की रक्षा कर रहे हैं। जब हम कुदरत को चुनौती देते हैं तो वो चुनौती कुदरत को नहीं हमारे अस्तित्व को दे रहे होते हैं। जंगलों में जो आग लगा रहे हैं वो जंगलों में नहीं लगती बल्कि जीते जी हमारी चिताए जल रही होती हैं। कुदरत की लाशों पर हमने अपने अरमानों के जो महल खड़े किए हैं उसका परिणाम है आज के हालात। अपनी ही सांसों का अपने ही हाथों से हम ख्वाहिशों का कफ़न बुन रहे हैं। विकास हमें चाहिए लेकिन किस कीमत पर वो हमें तय करना सिखाती है यह फ़िल्म।

फ़िल्म ऐसा नहीं है बहुत अच्छी है उसमें कुछ कमियां भी हैं। कैमरे की, एडिटिंग की, डबिंग की, अभिनय की उन कमियों को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके इसके गीत ‘जय मां शिकारी’ और ‘जुग जियो’ फ़िल्म के स्तर को ऊंचा उठाते हैं। कलाकारों के अभिनय में जसपाल शर्मा, राजेश जैस, फलक खान बाजी मारते हैं। धीरेंद्र ठाकुर का अतिशय गम्भीर होना रुचता नहीं है। लेकिन जैसे फ़िल्म शुरू में कहती है वही अर्ज करता हूँ –

पिछवाड़े पड़ेगा डंडा मां से करवाना मालिस
पिछवाड़े पड़ेगा डंडा मां से करवाना मालिस
चार दहाई चालीस चार दहाई चालीस

बस ये चार दहाई चालीस की अफसोस कि एक कम ही रह गई। लेकिन कम बजट की इन फिल्मों को जितना ज्यादा हो सके देखा जाना चाहिए, दिखाया जाना चाहिए और इतना ही नहीं इनमें दी गई सीख को आत्मसात भी करना चाहिए। कौन कहता है सिनेमा घटिया है वह समाज को दिग्भ्रमित कर रहा है। दरअसल जनाब जिसे आप घटिया कहते हैं न उसे आप ही बढ़ावा देते हैं। जरा इधर देखिए सिनेमा कैसे आपको जीवन जीने की राह सिखाता है।

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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