पर्यावरण

समय रहते समझें पानी की महत्ता

राष्ट्रीय जल दिवस (14 अप्रैल) पर विशेष

 

   प्रतिवर्ष भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर की जयंती को ‘राष्ट्रीय जल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसकी घोषणा तत्कालीन केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मन्त्री उमा भारती द्वारा डा. अम्बेडकर की 61वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 6 दिसम्बर 2016 को की गयी थी। दरअसल ब्रिटिश शासनकाल में बाबा साहेब ने देश की जलीय सम्पदा के विकास के लिए अखिल भारतीय नीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और देश की नदियों के एकीकृत विकास के लिए नदी घाटी प्राधिकरण अथवा निगम स्थापित करने की वकालत की थी। देश की जल सम्पदा के प्रबंधन में दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए ही केन्द्र सरकार द्वारा 14 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय जल दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस का आयोजन किया जाता है तथा 14 अप्रैल को राष्ट्रीय जल दिवस का और ऐसे दिवसों की महत्ता आज के समय इसलिए सर्वाधिक है क्योंकि देश-दुनिया में जल संकट की समस्या लगातार गहराती जा रही है।

            भारत में तो पानी की कमी का संकट इस कदर विकराल होता जा रहा है कि गर्मी के मौसम की शुरूआत के साथ ही स्थिति बिगड़ने लगती है और कई जगहों पर तो लोगों के बीच पानी को लेकर मारपीट तथा झगड़े-फसाद की नौबत आ जाती है। करीब तीन साल पहले शिमला जैसे पर्वतीय क्षेत्र में भी पानी की कमी को लेकर हाहाकार मचा था और दो वर्ष पूर्व चेन्नई में भी ऐसी ही विकट स्थिति देखी गयी थी। महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में लगभग हर साल ऐसी ही परिस्थितियां देखने को मिल रही हैं। प्रतिवर्ष खासकर गर्मी के दिनों में सामने आने वाले ऐसे मामले जल संकट गहराने की समस्या को लेकर हमारी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त होने चाहिए किन्तु विड़म्बना है कि देश में कई शहर अब शिमला तथा चेन्नई जैसे हालातों से जूझने के कगार पर खड़े हैं लेकिन जल संकट की साल दर साल विकराल होती समस्या से निपटने के लिए सामुदायिक तौर पर कोई गंभीर प्रयास होते नहीं दिख रहे। हिन्दी अकादमी दिल्ली के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि देश में जल संकट गहराते जाने की प्रमुख वजह है भूमिगत जल का निरन्तर घटता स्तर।

            एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनिया भर में करीब तीन बिलियन लोगों के समक्ष पानी की समस्या मुंह बाये खड़ी है और विकासशील देशों में तो यह समस्या ज्यादा ही विकराल हो रही है, जहां करीब पचानवे फीसदी लोग इस समस्या को झेल रहे हैं। पानी की समस्या एशिया में और खासतौर से भारत में तो काफी गंभीर रूप धारण कर रही है। विश्वभर में पानी की कमी की समस्या तेजी से उभर रही है और यह भविष्य में बहुत खतरनाक रूप धारण कर सकती है। अगर पृथ्वी पर जल संकट इसी कदर गहराता रहा तो यह निश्चित मानकर चलना होगा कि पानी हासिल करने के लिए विभिन्न देश आपस में टकराने लगेंगे तथा उनके बीच युद्ध की नौबत भी आ सकती है और जैसी कि आशंकाएं जताई जा रही हैं कि अगला विश्व युद्ध भी पानी की वजह से लड़ा जा सकता है। अधिकांश विशेषज्ञ अब आशंका जताने भी लगे हैं कि जिस प्रकार तेल के लिए खाड़ी युद्ध होते रहे हैं, उसी प्रकार दुनियाभर में जल संकट बढ़ते जाने के कारण आने वाले वर्षों में पानी के लिए भी विभिन्न देशों के बीच युद्ध लड़े जाएंगे और संभव है कि अगला विश्व युद्ध भी पानी के मुद्दे पर ही लड़ा जाए। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान कुछ समय पूर्व दुनिया को चेता चुके हैं कि उन्हें इस बात का डर है कि आगामी वर्षों में पानी की कमी गंभीर संघर्ष का कारण बन सकती है।

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            दुनियाभर में पानी की कमी को लेकर विभिन्न देशों में और भारत जैसे देश में तो विभिन्न राज्यों में ही जल संधियों पर संकट के बादल मंडराते रहे हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच भी पानी के मुद्दे को लेकर तनातनी चलती रही है। उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों के बीच भी पानी को लेकर झगड़े होते रहे हैं। इजराइल तथा जोर्डन और मिस्र तथा इथोपिया जैसे कुछ अन्य देशों के बीच भी पानी के चलते ही अक्सर गर्मागर्मी देखी जाती रही है। दूसरे देशों में गहराते जल संकट और इसे लेकर उनके बीच पनपते विवादों को दरकिनार भी कर दें और अपने यहां के हालातों पर नजर दौड़ाएं तो हमारे यहां भी विभिन्न राज्यों के बीच पानी के बंटवारे के मामले में पिछले कुछ दशकों से गहरे मतभेद बरकरार हैं, जिस कारण विभिन्न राज्यों के आपसी संबंधों में कड़वाहट घुली है तथा अदालतों के हस्तक्षेप के बावजूद मौजूदा समय में भी जल वितरण का मामला अधर में लटका होने के चलते कुछ राज्यों में जल संकट की स्थिति गंभीर बनी हुई है। एक ओर इस प्रकार के आपसी विवाद और दूसरी ओर भूमिगत जल का लगातार गिरता स्तर, ये परिस्थितियां देश में जल संकट की समस्या को और विकराल बनाने के लिए काफी हैं। एक तरफ जहां भूमिगत जलस्तर बढ़ने के बजाय निरन्तर नीचे गिर रहा है और दूसरी तरफ देश की आबादी तेज रफ्तार से बढ़ रही है, ऐसे में पानी की कमी का संकट तो गहराना ही है।

            पर्यावरण संरक्षण पर प्रकाशित पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ के मुताबिक पृथ्वी का करीब तीन चौथाई हिस्सा पानी से लबालब है लेकिन धरती पर मौजूद पानी के विशाल स्रोत में से महज एक-डेढ़ फीसदी पानी ही ऐसा है, जिसका उपयोग पेयजल या दैनिक क्रियाकलापों के लिए किया जाना संभव है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों के मुताबिक पृथ्वी पर उपलब्ध पानी की कुल मात्रा में से मात्र तीन फीसदी पानी ही स्वच्छ है और उसमें से भी लगभग दो फीसदी पानी पहाड़ों और ध्रुवों पर बर्फ के रूप में जमा है जबकि बाकी एक फीसदी पानी का उपयोग ही पेयजल, सिंचाई, कृषि तथा उद्योगों के लिए किया जाता है। शेष पानी खारा होने अथवा अन्य कारणों की वजह से उपयोगी अथवा जीवनदायी नहीं है। पृथ्वी पर उपलब्ध पानी में से इस एक फीसदी पानी में से भी करीब 95 फीसदी भूमिगत जल के रूप में पृथ्वी की निचली परतों में उपलब्ध है और बाकी पानी पृथ्वी पर सतही जल के रूप में तालाबों, झीलों, नदियों अथवा नहरों में तथा मिट्टी में नमी के रूप में उपलब्ध है। इससे स्पष्ट है कि पानी की हमारी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति भूमिगत जल से ही होती है लेकिन इस भूमिगत जल की मात्रा भी इतनी नहीं है कि इससे लोगों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

            हालांकि हर कोई जानता है कि जल ही जीवन है और पानी के बिना धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन जब हर जगह पानी का दुरूपयोग होते देखते हैं तो बेहद अफसोस होता है। पानी का अंधाधुध दोहन करने के साथ-साथ हमने नदी, तालाबों, झरनों इत्यादि अपने पारम्परिक जलस्रोतों को भी दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसी कारण वर्षा का पानी इन जलसोतों में समाने के बजाय बर्बाद हो जाता है और यही कारण है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गत दिनों ‘जल शक्ति अभियान: कैच द रेन’ की शुरूआत की गयी थी। 30 नवम्बर 2021 तक चलने वाले इस अभियान का एकमात्र उद्देश्य देश के नागरिकों को वर्षा जल के संचयन के लिए जागरूक करना और वर्षा जल का ज्यादा से ज्यादा संरक्षण करना ही है। केवल यह समझने से ही काम नहीं चलेगा कि वर्षा की एक-एक बूंद बेशकीमती है बल्कि इसे सहेजने के लिए भी देश के हर नागरिक को संजीदा होना पड़ेगा। अगर हम वर्षा के पानी का संरक्षण किए जाने की ओर खास ध्यान दें तो व्यर्थ बहकर नदियों में जाने वाले पानी का संरक्षण करके उससे पानी की कमी की पूर्ति आसानी से की जा सकती है और इस तरह जल संकट से काफी हद तक निपटा जा सकता है। जल संकट आने वाले समय में बेहद विकराल समस्या बनकर न उभरे, इसके लिए हमें समय रहते पानी की महत्ता को समझना ही होगा।

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योगेश कुमार गोयल

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं तथा 31 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। सम्पर्क +919416740584, mediacaregroup@gmail.com
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