पर्यावरण

आपदा समुत्थानशीलता के लिए असमानता से सशक्तिकरण तक

 

एनआईडीएम में अंतर्राष्ट्रीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण दिवस पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) ने 13 अक्टूबर, 2023 को रोहिणी, नई दिल्ली में अपने परिसर में आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के उपलक्ष्य में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस, आपदाओं के जोखिम और प्रभाव को कम करने के महत्वपूर्ण महत्व को उजागर करने के लिए हर साल 13 अक्टूबर को मनाया जाने वाला एक वैश्विक दिवस है। इस वर्ष का विषय ‘समुत्थानशील भविष्य के लिए असमानता से लड़ना’ है, जो हाशिए पर रहने वाले समुदायों पर आपदाओं के असंगत प्रभाव को उजागर करता है।

एनआईडीएम का कार्यक्रम, जिसका शीर्षक “आपदा समुथनशीलता के लिए असमानता से सशक्तिकरण तक”  इस वर्ष की थीम के अनुरूप था और आपदा प्रबंधन में असमानताओं को दूर करने और समावेशी, न्यायसंगत और समुत्थानशील समुदायों को बढ़ावा देने के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित था।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) भारत में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में प्रशिक्षण और क्षमता विकास के लिए एक प्रमुख संस्थान है। एनआईडीएम सुरक्षा, समुत्थानशीलत और आपदा जोखिम में कमी की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास करता रहा है।

इस आयोजन के माध्यम से, एनआईडीएम ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण के केंद्रीय तत्व के रूप में असमानता को संबोधित करने में एकजुट होने के लिए व्यक्तियों और संगठनों को एक अनूठा मंच प्रदान किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न पृष्ठभूमियों- सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षा जगत और नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्तकर्ता श्रीमती रूमा देवी सहित नागरिक समाज के कई वक्ताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम में सुश्री इरा सिंघल (आईएएस), नागोया विश्वविद्यालय, जापान से प्रोफेसर सटोरू निशिकावा, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन से श्री टॉमस स्टेनस्ट्रॉम और गायिका और राष्ट्रीय युवा आइकॉन सुश्री मैथिली ठाकुर, जो एनआईडीएम की ब्रांड एंबेसडर भी हैं शामिल हुईं।

कार्यक्रम की शुरुआत एनआईडीएम के कार्यकारी निदेशक श्री राजेंद्र रत्नू (आईएएस) के स्वागत भाषण से हुई, जिन्होंने गणमान्य व्यक्तियों को उनके काम के लिए विधिवत् अभिवादन किया, जिन्होंने विभिन्न सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को तोड़ा और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के समावेशी विकास के लिए एक सक्षम वातावरण बनाया। उन्होंने माननीय प्रधान मंत्री के “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास” के सर्व-समावेशी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हुए सरकार के हर क्षेत्र में डीआरआर को मुख्यधारा में लाने में एनआईडीएम की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

श्री अमरजीत सिन्हा आईएएस (सेवानिवृत्त), सदस्य पीएसईबी और माननीय प्रधान मंत्री के पूर्व सलाहकार ने उद्घाटन भाषण दिया, और सरकारी कार्रवाई में समावेशिता बनाने के लिए असमानताओं से लड़ने में अपने व्यापक अनुभव को साझा किया। उन्होंने हाशिए पर मौजूद लोगों को शामिल कर हासिल किए जा सकने वाले विकास लाभों के बारे में बात की। उन्होंने किसी भी समाज की प्रगति और सुरक्षा के विकास में महिलाओं को शामिल करने को केंद्रीय मुद्दा बताया। उन्होंने कहा कि आपदा जोखिम की चुनौतियों से सामुदायिक भागीदारी, कमजोर समूहों के सशक्तिकरण और गरीबी उन्मूलन के माध्यम से सबसे अच्छी तरह से लड़ा जा सकता है। बालिका शिक्षा पर विशेष ध्यान देने के साथ सामुदायिक समावेशी दृष्टिकोण से ही आपदाओं पर काबू पाया जा सकता है।

सुश्री रूमा देवी (ग्राम विकास एवं चेतना संस्थान) ने अपनी व्यक्तिगत कहानी साझा की कि, कैसे उन्होंने न केवल अपने लिए बल्कि अपने क्षेत्र की 30,000 महिला श्रमिकों के लिए वित्तीय स्वतंत्रता हासिल करने के लिए पारंपरिक पितृसत्तात्मक बाधाओं द्वारा बनाई गई सीमाओं को पार किया। उनकी कहानी नेतृत्व, सामुदायिक जुड़ाव, उद्यमशीलता, नवाचार, दृढ़ता और कैसे महिला सशक्तिकरण एक समुदाय और क्षेत्र को बदल सकता है, का एक प्रमाण है।

सुश्री इरा सिंघल (विशेष सचिव, अरुणाचल प्रदेश सरकार) ने विकलांग व्यक्तियों के प्रति प्रचलित धारणा पूर्वाग्रह के बारे में बात की, जो लोगों की राय है कि वे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। यह पूर्वाग्रह अंततः यह तय करता है कि उन्हें कौन से अवसर मिलेंगे। किसी आपदा के बाद विकलांग लोगों की संख्या कई गुना बढ़ जाती है। आपदाओं और आपात स्थितियों से उत्पन्न सबसे छोटी चुनौती विकलांग लोगों के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकती है, जब तक कि विकलांग लोगों से जुड़ी शर्म और कलंक को खत्म नहीं किया जाता है।

सुश्री मैथिली ठाकुर ने बाढ़ के लगातार खतरे और एक लड़की के रूप में अवसरों और जीवन की संभावनाओं की कमी के कारण उत्तरी बिहार से पलायन की अपनी कहानी दर्शकों के साथ साझा की। उन्होंने साझा किया कि उनके माता-पिता का समर्थन और कौशल विकास उनकी यात्रा में एक प्रमुख कारक थे। उन्होंने उन मुद्दों के बारे में भी बात की जिनका बच्चों को आपदाओं के दौरान सामना करना पड़ सकता है जैसे बाल तस्करी, दुर्व्यवहार, शिक्षा में व्यवधान, विशेषकर लड़कियों की शिक्षा में व्यवधान।

एनआईडीएम के वरिष्ठ सलाहकार प्रोफेसर संतोष कुमार ने इस सत्र के लिए प्रारंभिक टिप्पणी दी। उन्होंने बताया कि कैसे मौजूदा असमानताएं लोगों को हाशिये पर धकेलती हैं। उन्होंने कहा कि विपरीत परिस्थितियों में वक्ताओं की सफलता की कहानियां इस बात का प्रमाण है कि सशक्तिकरण कैसे व्यक्तियों और समुदायों को असमानताओं की बेड़ियों से मुक्त कर सकता है।

अन्य वक्ताओं में यूनिसेफ के श्री टॉम व्हाइट, श्री टॉमस स्टेनस्ट्रॉम (आईएलओ), नागोया विश्वविद्यालय, जापान के प्रोफेसर सटोरू निशिकावा, आईआईएम (बोधगया) की निदेशक डॉ. विनीता सहाय शामिल थे। वक्ता और प्रतिभागी समावेशिता, सशक्तिकरण और समुत्थानशीलता  को बढ़ावा देने की रणनीतियों पर एक गतिशील संवाद में जुटे हुए हैं। चर्चा का विषय सशक्तिकरण से लेकर महिलाओं का समावेश और भागीदारी, विकलांग लोगों के लिए पहुंच में वृद्धि, आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रयासों में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और बच्चों को शामिल करना था।

विभिन्न क्षेत्रों और पृष्ठभूमियों के लगभग 200 हितधारक– नीति निर्माता, डोमेन विशेषज्ञ, क्षेत्र के व्यवसायी और शोधकर्ता, शिक्षाविद, छात्र, युवा पेशेवर आदि, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियों, जेआईसीए, यूनिसेफ, आईएलओ, आईआईएम, जेएनयू, आईआईएचएमआर आदि जैसे संगठनों से जुड़े लोगों ने इस आयोजन में उत्साहपूर्वक भाग लिया और पैनलिस्टों और एक-दूसरे के साथ विचार-विमर्श किया।

यह आयोजन ज्ञान के आदान-प्रदान, नेटवर्किंग और अधिक समावेशी और समुत्थानशील आपदा जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियों की दिशा में एक पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए एक अमूल्य मंच साबित हुआ। इस अवसर पर, एनआईडीएम और यूनिसेफ द्वारा तैयार ‘सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन टूलकिट’ नामक एक प्रशिक्षण मैनुअल लॉन्च किया गया और एनआईडीएम और आईआईएम बोधगया के बीच एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किए गए

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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