राजेश कुमार
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तीसरी घंटी
एकल यानि एक और एक ग्यारह
नाटक की दुनिया में एकल कई नामों से जाना जाता है। बोलचाल की भाषा में कोई एकल को ‘एकांत’ कहता है तो कोई ‘मोनोलॉग’, । कोई इसके लिए ‘एकल अभिनय’ शब्द का प्रयोग करता हो कोई ‘मोनो एक्टिंग’। संस्कृत,…
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तीसरी घंटी
अमली: लोक शैली से लोक स्वर का सफ़र
जब भी भिखारी ठाकुर का नाम आता है, उनका नाटक ‘बिदेसिया’ स्वाभाविक रूप से ज़ुबान पर आ जाता है। और जब ‘बिदेसिया’ की बात आती है तो ‘अमली’ को कोई कैसे भूल सकता है? ‘अमली’ हृषीकेश सुलभ का पहला…
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Uncategorized
उत्पीड़तों के रंगमंच का प्रस्थान बिन्दु
स्वदेश दीपक का ‘कोर्ट मार्शल’ नाटक साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा वर्ष 1990 में ‘मोहन राकेश सम्मान’ के लिए आमंत्रित नाटक प्रविष्टियों में सर्वोत्तम चयनित किया गया था। इस संबंध में अक्तूबर, 90 के तीसरे हफ़्ते में स्वदेश दीपक…
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नाटक
रंगमंच का चेहरा
इससे क़तई सहमत नहीं हुआ जा सकता है कि रंगमंच का कोई चेहरा नहीं होता है? जैसे हर आदमी का अपना एक चेहरा होता है, उसके आँख-नाक और मुँह की अलग बनावट होती है … वैसे ही अलग-अलग प्रकार…
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तीसरी घंटी
सत्ता के दबाव से रंगमंच का बिगड़ता चेहरा
नहुष नामक राजा ने अपनी नीति, बुद्धि और पराक्रम से जब स्वर्ग का राज्य प्राप्त किया तो वहाँ संगीत, नृत्य तथा नाट्य को देख कर इन विद्याओं को पृथ्वी पर लाने के लिए चिंतित हुए। राजा ने देवताओं से…
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तीसरी घंटी
असंगत नाटककार का पुनर्पाठ : भुवनेश्वर दर भुवनेश्वर
एक वक्त गुजरने के बाद ऐसा मोड़ आता है जब लगता है जो पढ़ा है, उसे फिर से पढ़ा जाए। और जब पढ़ते हैं तो महसूस होता है कि इस बार की अनुभूति पहले से बिलकुल अलग है। आनंद…
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तीसरी घंटी
रंगमंच में स्त्री के लिए जगह
हड़पने की संस्कृति का इनदिनों जिस तरह विकास हुआ है, वो कम होने का नाम नहीं ले रहा है, उल्टे और तेजी से बढ़ता जा रहा है। यह केवल एक क्षेत्र में नहीं है, इस तरह के ट्रेंड दूसरी…
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रंगमंच
राज बिसारिया के रंगमंच की दुनिया
लखीमपुर खीरी में जन्मे राज बिसारिया आज 86 साल से ज्यादा के हो चुके हैं। उम्र के इस पड़ाव पर जहां अधिकतर रंगकर्मी रंगकर्म को अलविदा कर देते हैं, अस्वस्थ होने के कारण लाचार हो जाते हैं, नॉस्टेल्जिया में…
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तीसरी घंटी
लोक नाटकों में दलित अभिव्यक्ति
नाटक चाहे शास्त्रीय हो या लोक आज अगर इसमें दलित अभिव्यक्ति को ढूंढा जा रहा है तो किसी को भी शंका हो सकती है कि क्या पूर्व में इसको नजरअंदाज किया गया है? नजरअंदाज भी किया गया है तो…
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तीसरी घंटी
नुक्कड़ पर ‘अस्मिता’ की दस्तक
आज के समय में सत्ता के दुर्ग द्वार के सम्मुख जहां रंगकर्मियों की एक बड़ी फौज लगभग आत्मसमर्पण कर चुकी है … रंगकर्मियों का एक ऐसा भी ग्रुप है, जो रोज नियम से अपने घरों से निकलकर, बसों –…
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