सिनेमा

मर्दों की जंगली दुनिया में दहाड़ती ‘शेरनी’

 

{Featured In IMDb Critics Reviews}

 

डायरेक्टर – अमित मसुरकर
स्टार कास्ट – विद्या बालन, मुकुल चड्ढा, विजय राज, बृजेंद्र काला, नीरज कबी, इला अरुण आदि
रिलीजिंग प्लेटफॉर्म – अमेजन प्राइम

डेढ़ सौ से ज़्यादा लंबी स्टार कास्ट वाली फिल्म ‘शेरनी’ अमेजन पर रिलीज़ हो चुकी है। जिसकी कहानी  मुख्य रूप से जंगल, एक आदमख़ोर शेरनी और वन विभाग के कर्मचारियों के इर्द गिर्द घूमती है। विद्या विन्सेंट वन विभाग की एक अधिकारी के रूप में प्रमोट हुई हैं। और वो मध्यप्रदेश के एक ऐसे क्षेत्र में आई है जहां ज्यादातर मर्द काम करते हैं और वो मानते हैं कि मर्द ही सब कुछ हैं। पूरी कहानी एक शेरनी के इर्द गिर्द घूमती है, जिसे विद्या सुरक्षित रखना चाहती है, जबकि वन विभाग के लोग तथा कुछ अन्य लोग उसका शिकार करना चाहते हैं। वहीं इन सब के बीच में राजनीति भी आड़े आती है। 

जब फ़िल्म में डायलॉग आता है ‘क्या विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन ज़रूरी है? विकास के साथ जाओ तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाने जाओ तो विकास बेचारा उदास हो जाता है।’ तो यह फ़िल्म पवन शर्मा की ‘वनरक्षक’ तथा रवि बुले की फ़िल्म ‘आखेट’ की याद भी दिलाती है। साथ ही यह भी कहती है कि जानवर हमारे दुश्मन नहीं है।

यह फ़िल्म न होकर डॉक्यूमेंट्री का अहसाह दिलाकर  चौंकाती भी है। लेकिन जब विधायक कहते हैं कि आपकी समस्या का हल हमारे पास है। आपको चारे की मुफ़्त में होम डिलीवरी देंगे और खेतों के चारों ओर बिजली के तार लगवाएंगे ताकि कोई जंगली जानवर घुसने की हिम्मत न करे। तो जनाब घुसने की हिम्मत तो क्या हमने उनको बेघर कर दिया है तो वे बेचारे कहाँ जाएं आखिर? लेकिन जब वही विधायक आगे कहता है ‘ये हमारा इलाका है जिसमें टाइगर जबरन घुसने की कोशिश करेगा तो हम उसे जू में भिजवा देंगे।’ तो जनाब हमने तो जू में रखे जाने लायक जंगली जानवर भी तो नहीं छोड़े। देश में तीन हजार के करीब ही शेर बचे हैं तो क्या जंगल और क्या ज़ू।

अभिनय के मामले में विद्या विन्सेंट बनी विद्या बालन जंगलों में घूमती इंसान और जानवरों को मारती शेरनी को सही-सलामत पकड़ने की कोशिश में भूल जाती है कि वे एक्टिंग कर रही है। बल्कि वे उसे जीती हुई नजर आती है। ठीक ऐसा ही उसके बॉस के रूप में बृजेन्द्र काला भी करते नजर आते हैं। वे शेरो-शायरी करते, हंसी मजाक तथा गम्भीर एवं सहज अभिनय करते हुए जमे हैं। डायरेक्टर अमित मसुरकर की इससे पहले वाली फिल्म ‘न्यूटन’ नेशनल अवॉर्ड भी जीत चुकी है।

एडिटिंग तथा कहानी के मामले में फ़िल्म में थोड़ी कैंची चलाई जाती तो और बेहतर हो जाती। थ्रिलर के चक्कर में यह पूरी तरह वो भी नहीं बन पाती। गीत-संगीत जितना है जरूरी लगता है। मध्यप्रदेश के जंगलों की लोकेशन देखते हुए जंगल घूमने की इच्छा भी बलवती होती है। कहीं-कहीं कैमरा ऐसा लगता है आम जीवन में घट रही कहानी की तरह शूट किया गया है। दरअसल जंगल का टाइगर खतरा नहीं बना हम उनके लिए खतरा बन गये हैं। यही कारण है कि यह फ़िल्म जल, जंगल, जानवर की बात भी करती है। तथा नेशनल पार्क की सैर पर भी लेकर जाती है।

अपनी रेटिंग – तीन स्टार

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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