सिनेमा

काबिल प्यार चाहंदी है ‘किस्मत -2’

 

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पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी बात है कि इसके लिए समीक्षकों द्वारा रिव्यू भले ही कम लिखे जाते हों। लेकिन ये चाहे कैसी भी हों अपना एक दर्शक वर्ग ढूंढ ही लेती हैं। पंजाबी फिल्मों की एक दूसरी बात यह भी है कि यहां ज्यादातर कॉमेडी फिल्मों, कहानियों का चलन ही ज्यादा है। लेकिन इस बीच कोई कॉमेडी के साथ अच्छी कहानी आए तो वह भी दर्शकों का उतना ही प्यार बटोर ही लेती हैं।

‘किस्मत 2’ पंजाबी फ़िल्म जगत के निर्देशक जगदीप सिद्धू की इससे पहले साल 2018 में आई ‘किस्मत’ फ़िल्म का सीक्वल ही है। हालांकि शुरुआत में देखते हुए इसे महसूस किया जा सकता है कि यह कोई नई कहानी दिखाएगी लेकिन ये पहले वाली फिल्म की कहानी को ही आगे बढ़ाती है।

एक लड़का एम्मी विर्क (शिव) कॉलेज में सरगुन मेहता (बानी) को खत देकर अपने प्यार का इज़हार कर देता है। अगले दिन बानी उसे शादी के बारे में बारे बताती है अपनी की वो जानी (काबिल) से शादी कर रही है। कुछ समय बाद शिव को पता चलता है कि काबिल इस दुनिया में नही रहा और बानी लन्दन में है। बस फिर क्या पहुंच जाता है उसके पास। लेकिन क्या अब भी बानी शिव के प्यार को कबूल करेगी? बानी की शादी के कुछ समय बाद काबिल की मौत के बाद उसका पैदा होने वाला बच्चा किसका होगा? उसका बाप कौन कहलाएगा? या फ़िल्म किसी ओर ही करवट बैठेगी।

फ़िल्म की कहानी प्यारी है शुरुआत कॉमेडी से होकर एकदम से भावुक मोड़ पर आती है। प्यार में बदल जाती है। शिव जो बानी से शादी न हो पाने के कारण उसके मरे पति को ही अपना पति बनाना चाहता है। ऐसे मोड़ पर कहानी आकर आपको रुलाने पर, आंखें नम करने पर मजबूर करती है।

इतना ही नहीं इसमें बीच-बीच में आने वाले गाने खास करके इसका थीम सांग आपको आंखों के कोने पोंछने पर विवश करता है। फ़िल्म की कहानी भी इसके निर्देशक ने लिखी है। एक्टिंग के मामले में एम्मी विर्क , सरगुन मेहता ने अपना काम बखूबी किया। कुछ समय के लिए आने वाले युवा प्रेमियों के दिलों की धड़कन ‘जानी’ आपकी आंखों पर चमक ले आते हैं। जानी के लिखे के फैन लोग उन्हें पर्दे पर देखकर जरूर खुश होंगे और एक हल्की सी स्माइल उनके चेहरे पर ठहर जाएगी।

सहायक कलाकारों में अमृत अम्बे, हरप्रीत, बलवंत, तानिया, सतवंत कौर, सोना राजपूत, मनदीप सिंह, रुपिंदर रूपी फ़िल्म में अपना ठीक-ठीक अभिनय करके किरदारों को मजबूत बनाए रखते हैं। जानी के लिरिक्स तो हमेशा की तरह आपको बार-बार सुनने का दिल चाहता है। एडिटिंग और कहानी के मामले में फ़िल्म की कतरने थोड़ी कतरी जाती तो यह ओर बेहतर हो सकती थी और इसकी लाइन लैंथ भी पटरी पर और तेज गति से दौड़ती। सिनेमैटोग्राफी, मेकअप, कॉस्ट्यूम के मामले में भी फ़िल्म थोड़ी हल्की नजर आती है।

‘कुड़ी सोणी होण दे नाल-नाल पागल वी होवे थोड़ी तां ओहदे नाल इश्क़ होंदा है।’
‘जिथे चलेंगा नाल चलांगी तेरे। टिकटां दो ले लईं।’

ठीक ऐसे ही डायलॉग कहने वाली यह फ़िल्म भी आपको अपने से इश्क़ करवा ही लेगी और हॉं सिनेमाघरों में जाते हुए आप भी दो टिकटें ले ही लीजिएगा। यूँ यह कोई महान फ़िल्म नहीं है न ही इसकी प्रेम कहानी महान या अलग है बावजूद इसके पंजाबी सिनेमा में एक अच्छी फिल्म होने के नाते इसका स्वागत होना चाहिए

अपनी रेटिंग – 3.5 स्टार

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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