रसूल पुकोट्टी के दमदार साउंड से चमकी ‘मौड़’
पंजाब में किसी जमाने में एक जट्ट हुआ नाम था जट्ट ज्योना मौड़। कहते हैं था तो वह डाकू किस्म का इंसान लेकिन पैदाइश से वह किसान था और किसानी करने में ही उसका मन रमता। एक था उसका बड़ा भाई कृष्णा मौड़ जो किसी वजह से डाकू बना। लेकिन दोनों ही भाई खूंखार डाकू होने के बाद भी धर्म-कर्म में भी पीछे नहीं थे। बड़े भाई कृष्णा मौड़ को जब काला पानी की सजा हुई और वह मारा गया वहीं पर तो अब उसका भाई उठ खड़ा हुआ अपने भाई की मौत के गुनहगारों से बदला लेने के लिए।
कहते हैं ज्योना मौड़ पर नैना देवी का भक्त होने के कारण विशेष आशीर्वाद था। ब्रिटिश गुलाम भारत में कृष्णा मौड़ जब अमीर लोगों को लूट कर लुटे गये धन को गरीबों में बांटता तो गरीब उसे महान कहने लगे। यहीं जब उसके दोस्त डागर ने कृष्णा को पुलिस के हाथों पकड़वाने में मदद की तो ज्योना को मालूम पड़ा बस हो गया वह डागर के खून का प्यासा। लेकिन जो कहता कहता था कि वह जीना चाहता है और उसे खून खराबे नहीं सुहाते तो फिर ऐसा क्या हुआ कि वह भी इस खून-खराबे की दुनिया में कदम रख चल पड़ा।
फिल्म ‘मोड़’ के पहले हाफ में कृष्णा मौड़ तो दूसरे हाफ में ज्योना मौड़ की कहानी कहती है। पंजाब में आज भी मौड़ नाम से गाँव बसता है और सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि उसके अन्य कई सीमावर्ती इलाकों तक में मौड़ की कहानी को ज्यादातर लोग लोक कथा के नाम से जानते हैं। लेकिन क्या आज की पंजाब की पीढ़ी को मालूम भी है कि उनके यहाँ कभी ऐसी कहानी घटी भी होगी। क्या उन्हें मालूम भी है कि ज्योना मौड़ और कृष्णा मौड़ ने उनके गरीब-गुरबे पूर्वजों के मान को अपनी अणख से ज़िंदा रखा। आज भी मौड़ की कहानी को लोक-गीतों के माध्यम से पंजाब में सुनाया जाता है। सिनेमा में भी कई बार इस कहानी को सबने अपने-अपने अंदाज में कहा है।
लेखक, निर्देशक जतिंदर मौहर ने भी यही किया है और एक बार फिर बड़े पर्दे पर मौड़ की कहानी दिखाने की कोशिश की है। ‘सिकंदर’, ‘किस्सा पंजाब’, ‘साडे आले’ जैसी कविताई फिल्मों का निर्देशन करने वाले ‘जतिंदर मौहर’ ने आखिर क्यों इस फिल्म को चुना होगा। जो आदमी सार्थक फ़िल्में बना रहा है वह जब इस तरह की फ़िल्में ऐतिहासिक कहानियों, लोक गाथाओं से उपजी कहानियों का लेखन, निर्देशन करने चलता है तो नजर आता है कि पहले हाफ में तो वह जबरदस्त मुठ्ठियाँ भिंच जाने वाले, रौंगटे खड़े कर देने वाले सीन से दर्शकों को बाँधने में कामयाब रहा है। फिर आप देखते हैं कि दूसरे हाफ में फिल्म एकदम सपाट और हल्की होती हुई रेत की भांति फिसलती जा रही है। शायद इस कहानी में दमदार संवादों की कमी हो गई थी उनके पास दूसरे हाफ के लिए। या शायद फिल्म को छोटी करने के चक्कर में कुछ सीन गैर जरूरी तौर पर लम्बे कर दिए गये और जरूरत वाले सीन को कुतर दिया गया।
ज्योना मौड़ जो पंजाब का हीरो है, जिसकी कहानी लार्जर दैन लाइफ वाली है उसकी कहानी को बड़े पर्दे पर एक बार देखना जरुर बनता है। कारण कि जब निर्देशक के हाथों से निकली हुई कोई ऐसी चीज जब आपकी आँखों से होते हुए, दिल और फिर खून में दौड़ने लगे तो आप यही कहेंगे कि भाई इसे तो मिस नहीं ही करना चाहिए। फिर इसमें जब ऑस्कर विजेता ‘रसूल पुकोट्टी’जैसे महान साउंड डिजाइनर का नाम जुड़ा हो तो भी आप इसे जरूर देखने जायेंगे ही। इतना ही नहीं ‘विनीत मल्हौत्रा’ का डी.ओ.पी. तो आप अपनी आँखों में बसा लेना चाहते हैं। ‘देव खरौड’ के जीवन का अब तक का सबसे बेहतरीन अभिनय इस फिल्म में नजर आता है। जिसे देखकर अभिनय करने वालों को सीखने को मिले तो क्यों चूकेंगे भला वो। वहीं दर्शकों के लिए उनकी बोलती आँखें ही दर्शकों के लिए काफी है। एम्मी विर्क हालांकि जब जब बड़े और लम्बे संवाद बोलने पर आये तो उनकी हवा टाईट नजर आई। इससे पहले ‘गूगु गिल’ ने जो ज्योना मौड़ का किरदार अदा किया था उसके सामने तो एम्मी विर्क कहीं ठहरते नहीं नजर आते। इसका एक कारण विलेन के रूप में ‘विक्रमजीत विक्र’ का भी इसमें होना है। फिर इन सबको सहारा दिया फिल्म के सहायक कलाकारों मैक रंधावा, निकर कौर, जरनैल सिंह, सनी संधू, परमवीर सिंह, कुलजिंदर सिंह, सिकंदर घुमान, गुरदास गिल, मनिंदर मोगा आदि ने।
इतना सब अच्छा होने में आप मौड़ की माँ के किरदार में ‘बलजिंदर कौर को नजरअंदाज नहीं कर सकते। पंजाबी सिनेमा में काफी काम कर चुकी और नेशनल अवार्ड हासिल करने के साथ-साथ एन एस डी से निकली यह अदाकारा हर बार फिल्म के हर सीन में जब-जब नजर आती है दिल छू जाती हैं। फिर ‘ऋचा भट्ट’ भी कोई कसर नहीं छोड़ती। अपने जीवन की पहली फिल्म से ही इस अदाकारा ने दिखा दिया है कि थियेटर में यह अपने आप को बहुत मांज चुकी है और अब बारी है पंजाबी सिनेमा को एक नई हिरोईन मिलने की। माँ बेटी के किरदार में ये दोनों मिलकर मौड़ की कहानी में ममत्व के जो रंग भरती हैं उसके लिए उन्हें आप सलाम कर सकते हैं।
‘रसूल पुकोट्टी’ जैसे ऑस्कर विजेता का हर क्षण रोंगटे खड़े कर देने वाला दमदार बैकग्राउंड म्यूजिक साउंड इसे एक बार देखने के लिए जरुर अपनी और खींचता है, वहीं ‘बंटी बैंस’ के बनाये गीतों को जब फिल्म में अपनी मन चाही जगह पर फिट कर दे निर्देशक और देखने वालों को वह मिसफिट नजर आये तो इसमें गलती देखने वालों की नहीं ठीक जैसे बहुत सारे सीन जब आपको साफ़ लगता है कि काटे गये हैं तो उनका भी जवाब आप जानना चाहते हैं। लम्बे समय से आपने कोई पंजाबी फिल्म नहीं देखी है और ऐसी फिल्म जिसमें लार्जर दैन लाइफ वाली कहानी हो, खूब दमदार बैकग्राउंड स्कोर, आला दर्जे का अभिनय, उत्तम क्लास का कैमरा, लोकेशन, सिनेमैटोग्राफी जो आपको उस दौर में ले जाए जहाँ आप इसे देखकर उन नस्लों का बखान करने लगें तो आप इसे मिस मत कीजिएगा।
अपनी रेटिंग – 3.5 स्टार