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भारत में संसद पर हमले की बरसी: सुरक्षा, पीड़ितों की स्थिति और सरकार के प्रयास

13 दिसम्बर 2001 का दिन भारतीय लोकतन्त्र के लिए एक काले दिन के रूप में याद किया जाता है। इस दिन भारतीय संसद भवन पर आतंकवादी हमला हुआ था, जिसमें भारतीय लोकतन्त्र की हृदयस्थली पर एक गंभीर खतरा मंडराया। उस हमले में संसद के भीतर मौजूद सांसदों और सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाया गया था, लेकिन सुरक्षा बलों और त्वरित कार्रवाई के कारण बड़ी जनहानि से बचाव हुआ। हमले में आहत हुए कुछ सांसदों और सुरक्षा कर्मियों को शारीरिक चोटें आईं, जबकि मानसिक आघात ने कई अन्य लोगों को प्रभावित किया। इस हमले के बाद भारत सरकार ने संसद और अन्य महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों की सुरक्षा को लेकर कई अहम कदम उठाए थे।

संसद भवन की सुरक्षा को और अधिक कड़ा किया गया है। अब संसद भवन में प्रवेश के समय सुरक्षा जांचों को और सख्त कर दिया गया है। सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई गई है और उन्हें अत्याधुनिक हथियारों और तकनीकों से लैस किया गया है। दिल्ली पुलिस, CRPF, और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) जैसी सुरक्षा एजेंसियों को संसद की सुरक्षा में और भी प्रभावी तरीके से लगाया गया है। इस हमले के बाद भारतीय सुरक्षा व्यवस्था में गहरी सोच और बदलाव आया है, जिसमें आतंकवाद के प्रति न केवल शारीरिक सुरक्षा बलों को तैयार करना, बल्कि आतंकवादियों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए गुप्तचर एजेंसियों को भी सक्रिय किया गया।

सरकार ने आतंकवाद को रोकने के लिए कई कदम उठाए, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) जैसे कड़े कानूनों का सहारा लिया गया। इसके तहत आतंकवादियों और उनकी गतिविधियों को रोकने के लिए समुचित कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई की गई। सीमा पर सुरक्षा को भी काफी बढ़ा दिया गया है, ताकि कोई भी आतंकवादी संगठन भारत की तरफ बढ़ने में सफल न हो सके।

संसद पर हमले के बाद आहत सांसदों और सुरक्षाकर्मियों को सरकार ने कई प्रकार की सुविधाएं प्रदान कीं। उनके इलाज का पूरा खर्च सरकार ने उठाया और पुनर्वास के लिए उन्हें उचित आर्थिक सहायता दी गई। कुछ सांसदों को गंभीर चोटें आई थीं, लेकिन उनका इलाज समय पर किया गया। जिन लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से इस हमले को झेला, उन्हें सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता भी मुहैया कराई। इसके अलावा, कुछ सांसदों को पेंशन और अन्य लाभ प्रदान किए गए, ताकि उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत रहे।

वर्तमान में सरकार सुरक्षा के मामलों में और भी सख्त कदम उठा रही है। संसद भवन की सुरक्षा के लिए अब एक गहरी और व्यापक रणनीति तैयार की गई है। संसद में प्रवेश करने से पहले, प्रत्येक व्यक्ति की कड़ी जांच की जाती है, और किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरन्त कार्रवाई की जाती है। इसके साथ ही, भारतीय सेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए विशेष निर्देश दिए गए हैं। इसके अलावा, सभी प्रमुख सरकारी संस्थानों, जैसे संसद, राष्ट्रपति भवन, और अन्य संवेदनशील जगहों की सुरक्षा में और सुधार किए गए हैं।
भारत सरकार आतंकवाद के प्रति अपने दृष्टिकोण को और कठोर बनाते हुए, हमले के बाद के वर्षों में कई महत्वपूर्ण सुधारों के साथ आ रही है। अब सिर्फ शारीरिक सुरक्षा ही नहीं, बल्कि आतंकवाद के मानसिक और आर्थिक पहलुओं को भी ध्यान में रखा जा रहा है। आतंकवादियों के नेटवर्क को खत्म करने के लिए गुप्तचर एजेंसियों का इस्तेमाल बढ़ा दिया गया है, और सरकार लगातार इस बात पर काम कर रही है कि ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो।

आज, संसद भवन की सुरक्षा में जहाँ एक ओर कठोरता और सतर्कता बरती जा रही है, वहीं संसद पर हुए हमले में आहत हुए सांसदों और सुरक्षाकर्मियों को सरकार की ओर से दी गई सहायता ने उन्हें इस कठिन समय से उबरने में मदद की है। हमले के बाद सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि ऐसे हमलों से न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी मुकाबला किया जाए, और इसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।

संसद पर हमले के इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हुए हम यह भी देख सकते हैं कि भारतीय लोकतन्त्र ने किस तरह इस हमले को झेला और फिर से अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया। हमले में आहत लोग अब इस कठिन समय से उबर चुके हैं, लेकिन यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि हमारे लोकतन्त्र की रक्षा के लिए निरन्तर सतर्कता, मजबूत सुरक्षा व्यवस्था और आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की आवश्यकता है।

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कैलाश केशरी

लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं। सम्पर्क +919470105764, kailashkeshridumka@gmail.com
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