पर्यावरणमुद्दा

प्रदूषण के खिलाफ नई जंग

 

  • विमल भाई

 

दरअसल दिल्ली में कूड़े के बड़े-बड़े ढेर जगह-जगह बन गए हैं । दिल्ली में रोज हजारों टन कूड़ा निकलता है, जिसका निस्तारण बहुत जरूरी है। इन कचरे के पहाड़ों के खतरे भी बहुत हैं। कहीं-कहीं पर इन कचरे के पहाड़ों के टूटने बिखरने से कई जानें तक गई हैं। अदालतों ने इस पर कड़ा रुख लेते हुए सरकार से इसके उपाय खोजने को कहा और कई दिशा-निर्देश भी दिए, मगर अफसोस सरकार तो सरकार ही होती है । कूड़ा निस्तारण के लिए एक सरल और उपयोगी सुझाव कूड़े से बिजली बनाने का है। मगर इसमें भी मापदंडों की अवहेलना और गलत स्थान के चुनाव से बड़ी दुर्दशा हो रही है । ऐसी तमाम चीजों ने एक नए तरह का प्रदूषण खड़ा कर दिया है।

27 जनवरी को यमुना किनारे के पूर्वी दक्षिणी इलाके में इसी तरह की परियोजना से बेहाल लोगों ने सड़कों पर निकल कर मानव श्रृंखला बनाई । उन्होंने कहा कि वे प्रदूषित हवा को नहीं सहेंगे। लोग नारे लगा रहे थे ‘साफ हवा हमारा अधिकार है, अपना अधिकार हम लेकर रहेंगे’, ‘जहरीला प्लांट बंद करो’। जहरीले धुंए व सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त इस जहरीले प्रदूषण के खिलाफ आवाज जारी है।

सुखदेव विहार, जसोला हाइट्स और जसोला के दूसरे पॉकेट्स, गफ्फार मंजिल, हाजी कालोनी, जोहरी फॉर्म, ओखला विहार, शाहीन बाग, अबुलफजल, बटला हाउस, मसीहगढ़, बदरपुर, मदनपुर खादर तथा दिल्ली के अन्य रिहायशी इलाकों से सैकड़ों की संख्या में स्त्री-पुरुष-बच्चे मानव श्रृंखला और उसके बाद रैली में शामिल हुये।

मामला कूड़े से बिजली बनाने वाले पावर प्लांट की वजह से फिर से संबंधित बीमारियां बढ़ने, पानी खराब होने जैसी तमाम समस्याओं से जूझना था। लोग पहले ही 16 मेगावाट परियोजना से परेशान थे। अब उसको 40 मेगा वाट करने की सरकारी योजना बनी।

प्रदूषण से बेहाल दिल्ली की 10 लाख के करीब घनी आबादी के बीच कूड़े से बिजली बनाने वाली तिमारपुर-ओखला वेस्ट मेनेजमेन्ट कंपनी के सुखदेव विहार के पास ओखला में चल रहे 16 मेगावाट के प्लांट को 40 मेगा वाट करने के लिए 16 जनवरी को पर्यावरणीय जन-सुनवाई का आयोजन किया गया था। मगर लोगों ने भरपूर ताकत से और एक रणनीति के तहत विरोध किया और जन-सुनवाई रद्द करवाई, संभवत: दिल्ली में ऐसा पहली बार हुआ।

15 जनवरी को एक प्रतिनिधिमंडल भी जाकर इनसे मिला था और उसने कहा था कि इस ग़ैर क़ानूनी जनसुनवाई को रोकें।16 जनवरी को सुबह 11:40 पर जब लोग जनसुनवाई के लिए पहुंचे तो गेट बंद कर दिए गए। पर लोग किसी तरह अंदर पहुंचे और अंदर खाली मंच के आसपास लोगों ने कब्जा कर लिया। 11:00 बजे से जन-सुनवाई शुरू होने के समय पर सब की कोशिश थी कि यह जन-सुनवाई न हो। सब ने सफलतापूर्वक न किसी माइक को चलने दिया, ना कोई कैमरा ऑन होने दिया। बीच में कई बार उप-जिलाधिकारी व अपर जिला-अधिकारी ने आकर मंच पर जाने की कोशिश की मगर पुलिस के घेरे में होने के बावजूद खासकर बुजुर्ग महिलाओं के नेतृत्व में चल रहे इस आंदोलन ने उनको वापस जाने पर मजबूर किया। 1:00 बजे दोपहर में कैमरे आदि वापस करा दिए गए। उसके बाद 1:40 पर अपर जिला-अधिकारी ने दोबारा आकर मंच पर जाने की कोशिश की। लोगों ने कहा कि आप हमें लिखकर दीजिए कि जन-सुनवाई रद्द हुई। उनका कहना था कि नहीं मैं मंच पर जाकर एनाउंस करता हूं। इस बीच कैमरा फिर चालू हो गया। सरकारी नियत भांपकर लोगों ने कैमरे को बंद कराया। कंपनी और पुलिस ने लोगों के साथ जोर जबरदस्ती की मगर अंत में लोगों का दृढ़ संकल्प देखकर उनको वापस जाना पड़ा। कंपनी को अपना सामान समेटना पड़ा। 90 वर्ष तक के बुजुर्ग अपने बच्चों के भविष्य की चिंता लेकर पहुंचे थे।

और अंततः 10:40 बजे से 14.30 तक लोगों ने जन-सुनवाई रद्द करो, परियोजना बंद करो, दिल्ली को प्रदूषण से बचाना है, आदि नारों से पूरे जन-सुनवाई स्थल को गुंजायमान रखा। बाद में 2 बजे सब ने हस्ताक्षर करके  केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय, दिल्ली के मुख्य सचिव, प्रदूषण नियंत्रण समिति व साउथ ईस्ट दिल्ली जिलाधिकारी को पत्र देकर निश्चित किया कि यह जन-सुनवाई रद्द मानी जानी चाहिए। प्राप्त सूचना के अनुसार जन-सुनवाई रद्द हुई है।

सुखदेव विहार के सभी पॉकेट्स के लोग, जसोला विहार के कई पॉकेट्स और सेक्टर, अबुल फजल, हाजी कालोनी, गफ्फार मंजिल, जौहरी फार्म, शाहीन बाग और दिल्ली के अन्य स्थानों से लोग इस गैरकानूनी जनसुनवाई के खिलाफ पहुंचे और आगे भी परियोजना के खिलाफ मुखर रूप से आंदोलित हैं।

पर्यावरणीय जन-सुनवाई एक अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार है जहां लोग अपनी बात रख पाते हैं, किंतु देशभर का अनुभव यही बताता है कि सरकार किसी तरह जन-सुनवाई की रस्म पूरी करती है और फिर परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए कागजी कार्रवाई करती रहती है। इसलिए जब 16 मेगावाट की परियोजना के बुरे असर को दूर नहीं किया गया है और ना ही इस बारे में कोई गंभीर पहल नजर आती है, तब प्लांट की क्षमता और 24 मेगावाट बढ़ाने के क्या दुष्परिणाम होंगे सहज ही समझा जा सकता है | 16 मेगावाट प्लांट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा है फिर इसे 40 मेगावाट करने की इतनी जल्दी क्यों? क्या कभी ये आकलन किया गया कि हरित पट्टी होने व इतनी घनी आबादी  के बीच इस प्लांट को क्यों बनाया गया?

16 मेगावाट के प्लांट के खिलाफ राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के फैसले में इस कचरा से बिजली प्लांट की हर महीने तीन सदस्यों की समिति द्वारा निगरानी विजिट होनी थी। पर्यावरण मानक सही पाए जाने पर यह विजिट 3 महीने में बदलने का प्रावधान था। आश्चर्य का विषय यह है कि प्रदूषण बढ़ता गया और निगरानी घटती गई। समिति का दौरा 1 महीने से 3 महीने में बदल गया यह कैसे बदला प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस बात को सार्वजनिक नहीं कर रहा है।

लगातार लोगों पर बुरे असर जारी हैं, किंतु इस पर भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आंख मूंद कर बैठा है। हरित पट्टी विकसित करने के नाम पर हरियाली को जलाने वाला प्लांट यहां स्थापित किया गया। बिना किसी पर्यावरण स्वीकृति के प्लांट का विस्तार कार्य भी शुरू हो चुका है। अब सवाल यह उठता है कि जब प्रतिवर्ष दिल्ली में हजारों लोग प्रदूषण से मारे जा रहे हैं, दिल्ली के एक तिहाई से ज्यादा बच्चों के फेफड़े खराब हो गए हैं, यह प्रदूषण फैलाने वाली योजना कैसे चलाई जा सकती है?

दिल्ली में प्रति दिन निकलने वाला 10 हजार टन कूड़ा एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। ऐसे में कूड़े से बिजली बनाना काफी विशेषज्ञों को व सरकार को भी एक बहुत अच्छा पर्यावरणीय विकल्प लगता है। मगर सवाल यह है कि इस विकल्प की तकनीक कौन सी होनी चाहिए? देश में इस तरह की 7 परियोजनाएं बंद हो चुकी हैं और फिर भी इस परियोजना के लिए जन-सुनवाई का झूठा नाटक करने की आवश्यकता क्यों? न तो कंपनी ने आज तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों का पालन किया और न अब तक इसके बुरे प्रभावों पर कोई काम किया। चिमनिओं से निकलने वाले धुंए से हो रहे नुकसानों का आंकलन तक नहीं हुआ, मगर लोग जरूर उसको झेल रहे हैं। परियोजना से निकलने वाली फ्लाई ऐश का निस्तारण तक नहीं हुआ| एक तरफ दिल्ली में पेड़ों की कमी खलती है, और इधर इस परियोजना से ओखला क्षेत्र के पेड़ मर रहे हैं।

ऐसे तमाम प्रश्न हवा में तैर रहे हैं। केंद्र व राज्य सरकार इन प्रश्नों का उत्तर दिए बिना दिल्ली के प्रदूषण को रोकने की जद्दोजहद में भी इतने बड़े मुद्दे को कैसे भूल रही हैं? जब पास के राज्यों की पराली जलने से दिल्ली के लोगों पर असर पड़ता है, प्रदूषण में वृद्धि होती है, तो दिल्ली में ही इस प्रदूषण पैदा करने वाली, जमीन के पानी को खराब करने वाली, लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालने वाली परियोजना को चलाते हुए आगे क्यों बढ़ाया जा रहा है?

राजधानी के नागरिकों ने यह तय कर लिया है कि अब सरकार के एक तरफ प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरण संरक्षण के बड़े-बड़े दावे और दूसरी तरफ कचरा ठिकाने लगाने के उपयोगी तरीके के नाम पर राजधानी के नागरिकों पर जहरीले धुएं व पानी की सौगात नहीं सहेंगे।

लेखक उत्तराखंड में गंगा यमुना घाटी में 1988 से बांधों के सवाल पर कार्यरत हैं और माटू जन संगठन के समन्वयक हैं|

सम्पर्क- +919718479517, bhaivimal@gmail.com

 

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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