शिक्षासमाज

बालिका शिक्षा के प्रति सोच बदलने की जरूरत

 

कोरोना महामारी से लड़ने में डॉक्टर और नर्स से लेकर सभी स्तर के स्वास्थ्यकर्मी जिस प्रकार से अपना योगदान दे रहे हैं, उसे इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा। विशेषकर भारत में आवश्यक सुरक्षा उपकरणों की कमी के बावजूद अपनी जान जोखिम में डाल कर नर्स कोरोना पीड़ितों की जिस प्रकार से सेवा कर रही हैं, वह प्रशंसनीय है। आपात स्थिति की इस घड़ी में अपनी सेवा भाव से उन्होंने यह साबित कर दिया है कि बेटियाँ भी किसी प्रकार से बेटों से कम नहीं है। यदि उन्हें अवसर प्राप्त हो तो अपने हौसलों से बेटों से भी आगे निकल कर दिखा सकती हैं। 

वास्तव में हमारे देश में आज भी लड़कियों की शिक्षा चर्चा का विषय रही है। प्राचीन समय से लड़कियों को कमजोर माना जाता था। उन्हें घर पर रहने और घरेलू मुद्दों का ध्यान रखने का सुझाव दिया जाता है। लेकिन अब समय बदल रहा है, लड़कियाँ आज अपने घरों की सीमाओं को पार कर चमत्कार कर रही हैं। जिन लड़कियों को शारीरिक रूप से कमजोर माना जाता था, वह अब सेना, नौसेना, वायुसेना, कुश्ती, निशानेबाजी और हर दूसरे क्षेत्र में शामिल होने को तत्पर हैं। हालाँकि आज भी एक बड़ा वर्ग, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अभी भी लड़कियों को स्कूल भेजने में संकोच करते हैं। इसके पीछे कई कारण हैं। सदियों पुरानी मानसिकता इसमें सबसे बड़ी वजह है। यही कारण है कि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों को अपने फैसले स्वयं लेने की अनुमति नहीं है।

बालिका शिक्षा

इसके पीछे सबसे बड़ी वजह समाज का शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होना है। शिक्षा की कमी बाल विवाह, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा और महिलाओं के खिलाफ अन्य कई अपराधों के रूप में कई कुप्रथाओं को जन्म देती है। सच तो यह है कि शिक्षा महिलाओं के सशक्तीकरण का सबसे प्रमुख कारक है। शिक्षित महिला न केवल समाज के विकास में अहम योगदान देती है बल्कि जीवन के हर पड़ाव में पुरुषों की जिम्मेदारी को साझा कर सकती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि देश में नारी शिक्षा अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे कम पसंदीदा विकल्प है। 

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हालाँकि समय अब बदल रहा है। जिन लड़कियों पर उनके माता-पिता और समाज को भरोसा है, वह हर क्षेत्र में चमत्कार कर रही हैं। इंदिरा गाँधी, किरण बेदी, लता मंगेशकर और टीना डाबी आदि ढ़ेरों उदाहरण हैं। समाज को मजबूत करने और अपराध दर को कम करने के लिए लड़कियों की शिक्षा और लैंगिक समानता बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन आज लड़कियों की शिक्षा केवल उन्हें स्कूल भेजने से ही नहीं है। बल्कि स्कूल में रहने के दौरान उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के बारे में भी है। शिक्षा लड़कियों की स्वतन्त्र सोच को आकार देने में मदद करती है, ताकि वह अपने जीवन के निर्णय अपने दम पर ले सकें और सही-गलत के बीच अन्तर को समझते हुए सामाजिक विकास में योगदान कर सकें।

बालिका शिक्षा

लड़कियाँ निस्संदेह हमारे समाज का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। उनकी उपस्थिति के बिना कोई भी समाज या संस्कृति आगे नहीं बढ़ सकती। कुछ साल पहले तक भारत और कई अन्य अविकसित एवं विकासशील देशों में लोग सोचते थे कि लड़कियों को घर पर रहना चाहिए, खाना बनाना चाहिए और बच्चों तथा बुजुर्गों की देखभाल करनी चाहिए। 

हालाँकि बदलते वक्त के साथ लोगों की सोच में भी परिवर्तन आ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश माता-पिता अब अपनी लड़की को स्कूल भेजने के लिए आश्वस्त हो रहे हैं। भारत में लड़कियाँ अपने माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं। वह शिक्षा, खेल, राजनीति सहित हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। यह केवल लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के माध्यम से संभव हो सका है। समाज को इस बात के लिए जागरूक करने से मुमकिन हो सका है कि शिक्षा ही एकमात्र हथियार है, जो लड़कियों को सशक्त बना सकता है और समाज को मजबूत कर सकता है।

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यह देखना अच्छा है कि आधुनिक युग लड़कियों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदल रहा है और उन्हें अपनी क्षमता साबित करने के लिए भरपूर समर्थन भी दे रहा है। दृष्टिकोण के इस परिवर्तन में लैंगिक समानता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत में बालिका शिक्षा काफी हद तक राष्ट्र के विकास के लिए आवश्यक है, क्योंकि लड़कियाँ लड़कों की तुलना में बेहतर काम कर सकती हैं। आजकल बालिका शिक्षा आवश्यक और अनिवार्य भी है, क्योंकि बालिकाएँ देश का भविष्य हैं। भारत में सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास के लिए लड़की की शिक्षा आवश्यक है। हालाँकि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण परिवेश में अब भी बालिका शिक्षा के प्रति जागरूकता की रफ्तार धीमी है।

परिवार को सशक्त बनाने के लिए महिलाओं ...

शिक्षित महिलाएँ व्यावसायिक क्षेत्रों, चिकित्सा, रक्षा सेवाओं, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अपने योगदान के माध्यम से भारतीय समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं। वे अच्छा व्यवसाय करती हैं और अपने घर और कार्यालय को संभालने में भी पारंगत होती हैं। एक बेहतर अर्थव्यवस्था और सभ्य समाज का निर्माण बालिका शिक्षा से ही संभव है। भारत में लोगों ने इस तथ्य को समझा है कि महिलाओं के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है। यह बहुत सही है कि दोनों लिंगों के समान विस्तार से देश के हर क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। पहले बालिका शिक्षा को आवश्यक नहीं माना जाता था। समय के साथ लोगों ने एक लड़की की शिक्षा के महत्व को महसूस किया है। यह अब आधुनिक युग में लड़कियों के जागरण के रूप में माना जाता है।

महिलाएँ अब जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। हालाँकि अब भी समाज में ऐसे लोग हैं, जो बालिका शिक्षा का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि लड़की का क्षेत्र घर पर है। वह यह भी सोचते हैं कि लड़की की शिक्षा पर खर्च करना पैसे की बर्बादी है। यह विचार गलत है, क्योंकि बालिका शिक्षा संस्कृति में एक परिवर्तन ला सकती है। लड़कियों की शिक्षा में बहुत सारे फायदे शामिल हैं। एक पढ़ी-लिखी लड़की देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। एक शिक्षित लड़की पुरुषों के भार को विभिन्न क्षेत्रों में साझा कर सकती है। एक पढ़ी-लिखी लड़की, जिसे कम उम्र में शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है, वह लेखक, शिक्षक, वकील, डॉक्टर और वैज्ञानिक के रूप में काम कर सकती है। वह अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकती है।Army of 65,000 retired nurses and doctors told 'Your NHS Needs You ...

 

कोरोना महामारी और आर्थिक संकट के इस युग में लड़कियों के लिए शिक्षा एक वरदान है। आज के समय में एक मध्यमवर्गीय परिवार में दोनों सिरों का मिलना वाकई मुश्किल है। शादी के बाद एक शिक्षित लड़की काम कर सकती है और परिवार के खर्चों को वहन करने में पति की मदद कर सकती है। शिक्षा महिलाओं के विचारों को भी व्यापक बनाती है। यह उनके बच्चों की अच्छी परवरिश में मदद करती है। इससे उसे यह तय करने की स्वतन्त्रता भी मिलती है कि उसके और परिवार के लिए क्या अच्छा है।

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शिक्षा एक लड़की को “आर्थिक रूप से स्वतन्त्र” बनने में मदद करती है, जबकि वह अपने अधिकारों और “महिला सशक्तिकरण” को जानती है, जो उसे लैंगिक असमानता की समस्या से लडने में मदद करती है। एक राष्ट्र का सुधार लड़की के सीखने पर निर्भर करता है, इसलिए लड़की की शिक्षा को हर हाल में प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड 2019 के अन्तर्गत लिखा गया है।

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अमित बैजनाथ गर्ग

लेखक राजस्थान पत्रिका, जयपुर में वरिष्ठ उपसम्पादक हैं। सम्पर्क +917877070861, amitbaijnathgarg@gmail.com
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