माई पेंडेमीक डायरी
दून टेल्स द्वारा प्रकाशित किताब “माई पेंडेमीक डायरी” को डॉ. कुणाल दास और डॉ. वैदिका ने लिखा है। इस किताब में लेखकों ने कोरोना के समय में एक बच्चे के मन पर घटित हुए सभी प्रभावों को दिखाने की कोशिश की है। कोरोना महामारी का असर बच्चे से ले कर बड़े सभी पर हुआ है। कुछ लोगों ने इसे बुरे की तरह लिया और कुछ के लिए ये सौगात निकला। बच्चों के लिए शुरुआत में तो “नो स्कूल नो पढ़ाई” की खुशी लाया मगर वही बाद में घरों में कैद आज़ादी की तरह प्रतीत होने लगा।
डॉ. कुणाल और डॉ. वैदिका की यह किताब हमें बताती है कि किस तरह कोरोना महामारी के आने के बाद हम सबकी दुनिया हमेशा के लिए बदल गयी है। यह किताब मुख्यतः स्कूल और खेल से दूर बच्चों की जिंदगी पर रोशनी डालती है कि किस तरह उन्हें अपने परिवार के साथ इस महामारी के दौर में लड़ने के लिए न सिर्फ तैयार होना होगा, बल्कि उसे खेल-खेल में समझना और सीखना होगा ताकि महामारी से लड़ने की आदतें उनके जीवन में कोई नई बात न रह जाएँ।
बदलाव की यह बात दुनिया भर के घरों पर भी लागू होती है। हमारे रहन-सहन खानपान से लेकर हमारी हर आदत को इस बीमारी ने बहुत हद तक बदल कर रख दिया है। जहाँ एक ओर इसके चलते हमें हमारी आदतों में एक अनुशासन की ज़रूरत महसूस हुई है वहीँ शौक से पहले स्वास्थ्य हमारे लिए एक बड़ी चिंता का विषय बनकर उभरा है। जैसे एक समय हम अपनी जीवनशैली को लेकर कम और शौक को लेकर ज्यादा सोचते थे, आज स्थिति बिकुल उसके उल्ट हो गयी है।
हमारे जीवन की छोटी से छोटी हरकत अब हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उसके असर से जुड़ती दिखाई पड़ती है। हर वो काम जो स्वास्थ्य के लिहाज़ से थोड़ा भी ख़तरनाक है, गैर-ज़रूरी लगने लगा है। ठीक वैसे ही जैसे कभी गैर ज़रूरी लगने वाले काम आज हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गये हैं।
देश में कोरोना के बढ़ते प्रकोप से बचने के लिए हम सबने हर सम्भव उपाय की ओर देखा। इसी में से एक था- लॉकडाउन, जिसने हमारे जीवन की हर हरकत पर गहरा असर डाला। न सिर्फ जीवनयापन पर बल्कि हमारी सोच पर भी। यही वजह है कि बच्चों से लेकर बड़े और बुज़ुर्ग आदि सब घर के काम के साथ सेहत को लेकर बेहद गंभीरतापूर्वक सोचने लगे हैं।
घर में बैठे रहने पर जो काम सामान्यत: हमारी आदत का हिस्सा नहीं थे वे अब शरीर को सौष्ठव रखने का एक उपाय दिखने लगे हैं। बच्चों के लिए बहुत ज़रूरी है कि वे इन चीजों को समझें और खेल की ही तरह इसमें रूचि दिखाएँ। ये बात न सिर्फ उनके कामकाज पर लागू होती है बल्कि उनके ‘फ़ूड हैबिट्स’ को भी सुधारने में मदद करती है। माई पेंडेमीक डायरी बच्चों के लिए उन्हीं के अनुसार सरल और सुखद शब्दों और वाक्यों में बनाई गयी किताब है।
किताब की पात्र शुरू से आखिर तक अपनी एक-एक कहानी को समझाती हुई नज़र आ रही है, कि किस तरह से हमें एक जुट हो कर लड़ना होगा। जो एकता सभी के प्रति हमने सोशल डिस्टेंसिंग के ज़माने में भी खुद में पैदा की है उसे बरकरार रखना जरूरी होगा। किताब हमें आखिर में यह भी समझाती है कि कैसे अभिभावकों को अपने बच्चों का मनोबल बनाए रखना होगा ताकि कोरोना के खिलाफ इस लम्बी लड़ाई में वे खुद को अकेला और कमज़ोर न समझें।