धर्म

विश्व शांति और कुरान का संदेश

 

  • मोहम्मद अब्दुल बाक़ी

 

कुरान मजीद में बताया गया है कि भगवान अपना प्रकोप (अज़ाब) भेजने से पहले अपना अवतार भेजता है और इन्सान की पैदाइश का उद्देश्य यह है कि इन्सान उसकी (भगवान की) इबादत करे (सूरह जारियात न॰ 51, आयत न॰ 57) और वे (इन्सान) होक़ूक़ अल्लाह और हकुकुल – ईबाद को समझे और उस पर अमल करे, अर्थात भगवान और उसके बंदे (इन्सान) के प्रति उन्हें अलग अलग जो अधिकार और कर्तव्य  दिये गये हैं, ईमानदारी के साथ वे उनका प्रयोग एवं पालन करें ।

लेकिन आज हो क्या रहा है? इन्सान अपने पैदा करने वाले परम पिता परमेश्वर को छोड़ कर अपने आका (मालिक), अपने हाकिम, बीवी-बच्चों, माँ-बाप, अपनी बनाई गयी मूर्तियों, मज़ारों, ढ़ोंगी साधू-संतों, पीरों, मुल्लाओं आदि की पूजा कर रहे हैं और अपनी पैदाइश के मूल उद्देश्य को भूल गये हैं। भगवान और उनके बंदों के प्रति दिये गये अलग अलग अधिकारों और कर्तव्यों को छोडकर नाइन्साफ़ी से अपनी ताकत और दौलत का प्रयोग, इसके विपरीत दिशा में करने में मगन हैं।

वर्तमान प्रकोप अर्थात कोरोना वायरस या ऐसे ही अन्य प्रकोप का कारण क्या स्वयं इन्सान नहीं है?

इस हक़ीक़त को अहमदिया मुस्लिम समुदाय के संस्थापक हज़रत मिर्जा गुलाम अहमद साहेब ने दो पंक्तियों में यूं फरमाया है-

क्यूँ ग़ज़ब भड़का खुदा का मुझसे पूछो गाफिलों

इसके मोजिब हो गये हैं, मेरे झुठलाने के दिन

(भगवान के अवतार को झुठलाने का अर्थ स्वंय भगवान के वजूद को झुठलाना होता है।)

अहमदिया मुस्लिम समुदाय के वर्तमान एवं पांचवें इमाम ने 2010 के लंदन में हुये शांति संगोष्ठी में कुरान मजीद की तालीम पेश करते हुए फरमाया था कि ‘जो तुम अपने पसन्द करते हो वह तुम अपने दूसरे भाईयों के लिए भी करो;, इस सुनहरे सिद्धान्त के पालन से ही आज विश्व में शांति स्थापित हो सकती है, न कि खुदगरजी अर्थात स्वार्थ और अपनी ताकत के बल पर और अपनी चालाकी से।

आज सभी लोग बल्कि सभी धर्मों के अनुयायी अपने धर्मों (जिसका वे पालन करते हैं), की बुनियादी सीख अथवा तालीम को भूल कर अपने परम पिता परमेश्वर से बहुत दूर हो गये  हैं, जिसके कारण आज दुनिया में अशांति, बेचैनी और एक दूसरे के प्रति नफरत फ़ैल गयी है। एक दूसरे के प्रति प्रेम, सद्भाव, सहानुभूति, सहनशीलता, समाप्त होती जा रही है, जिसकी दुबारा स्थापना हम सबके संयुक्त प्रयास से ही हो सकती है। इसके लिए हम सबों को बिना किसी भेदभाव के, अथक मेहनत, कुर्बानी एवं लगन और सच्चे दिल से एक दूसरे के प्रति आदर का भाव उत्पन्न करने की आवश्यकता है। तभी विश्व को सच्ची शांति की प्राप्ति हो सकती है।

महात्मा गाँधीजी ने 1937 में अपने एक लेख ‘सहिष्णुता के जरूरत’ में लिखा था कि…….. दूसरे धर्मों के प्रति गहरे सम्मान ने मुझे सब सब धर्मों की बराबरी का सिद्धान्त सिखाया। (हिंदुस्तान, पेज न 14, रामचन्द्र गुहा- प्रसिद्धा इतिहासकार का लेख- ‘हर कट्टरता का विरोध होना चाहिए’)।

धार्मिक पुस्तक कुरान-ए-करीम में लिखा है कि ‘वे सब अल्लाह पर, उसके फरिश्तों पर, उसकी समस्त किताबों पर ईमान लाएँ और उसके रसूलों में से कसी भी रसूल के बीच भेदभाव न करें।‘ (सूरह बकरा आयत 286)। पवित्र कुरान के इस सुनहरे सिद्धान्त को आज दुनिया में अपनाने की जरूरत है। इसी बिना पर अहमदिया समुदाय के तीसरे इमाम हजरत मिर्जा नासिर अहमद ने हमें कुरान-ए-करीम की तालीम के सार के तौर पर ‘स्लोगन’ दिया है – “लव फॉर ऑल, हैटरेड फॉर नन”, क्योंकि इसके बिना दुनिया में ‘यूनिवर्सल पीस’ और ‘ब्रदरहुड’ स्थापित नहीं किया जा सकता।

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कुरान-ए- मजीद में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि संसार में कोई जाति या कौम नहीं गुजरी कि उसमें अल्लाह की ओर से कोई सतर्क करने वाला रसूल या अवतार न आया हो। (सूरह फातिर आयत 25) और एक दूसरी जगह पर लिखा है कि ‘मैंने सभी क़ौमों में अवतार भेजा’ (सूरह राद – आयत 8)

यही कारण है कि मुस्लिमों में अहमदिया मुस्लिम समुदाय सभी धर्मों के नबीयों, अवतारों, संस्थापकों का केवल आदर ही नहीं करता बल्कि उन्हें सच्चा भी मानता है। इनके विभिन्न आयोजनों, सर्व धर्म सम्मेलनों, शांति संगोष्ठियों आदि में लिखा होता है – इंसानियत जिन्दाबाद, सर्व धर्म संस्थापक जिन्दाबाद, हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहिवसल्लम, हजरत कृष्ण अलैहिस्सलाम जिन्दाबाद, हजरत रामचन्द्र जी जिन्दाबाद, हजरत बाबा गुरु नानक जिन्दाबाद, हजरत ईसा अलाइहिसल्लम जिन्दाबाद इत्यादि। ऐसा ऐलान अथवा प्रदर्शन किसी धर्म विशेष या आम लोगों को खुश करने अथवा दूसरों को धोखा देने की नियत अथवा अपने बचाव के लिए नहीं बल्कि यह व्यवहार कुरान करीम की तालीम के अनुसार होता है।

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यह हजरत मिर्जा गुलाम अहमद के उस कथन के अनुसार होता है जो उन्होने अपनी पुस्तक ‘तोहफाये कैसरया’ के पृष्ठ 7 पर अंकित किया है। उन्होने लिखा है ‘हम उन समस्त नबीयों को सच्चा समझ लें जो संसार में आए, चाहे हिन्द मे प्रकट हुए या फारस में या चीन में या अन्य देश में।‘ ‘यही नियम कुरान ने हमें सिखाया। इस नियम की दृष्टि से ही हम प्रत्येक धर्म के पेशवाओं या संस्थापकों को, जिनकी जीवनियाँ इस परिभाषा के अंतर्गत आ गयी हैं, आदर की दृष्टि से देखते हैं, चाहे वे हिंदुओं के धर्म के पेशवा हों या फारसियों के, चीनियों के या यहूदियों या ईसाईयों के धर्म के।‘

जिक्रे खोदा पे ज़ोर दे, जुल्मते दिल मिटाये जा।

गौहरे शब चिराग बन, दुनिया मेन जगमगाये जा।। (ज़ुल्मत – अंधेरा, गौहर – जुगनू)    

(हज़रत मिर्जा बशीरुद्दीन महमूद अहमद, दूसरे खलीफा – अ॰ मु॰ समु॰)        

abdul baqui

लेखक पूर्व अपर जिला न्यायाधीश हैं।

सम्पर्क- +919431071723, mohammad.abdul.baqui@gmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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