सामयिक

आपदा में अवसर की नयी इबादत लिख रहा भारत

 

हमने अपने मन में हर चीज़ की एक छवि बना ली है। हम छवियों का एक समूह हैं और जीवनपर्यन्त उन छवियों को संतुष्ट करने में लगे रहते हैं, हमने कभी ख़ुद को संतुष्ट नहीं किया अपने भूतकाल को सन्तुष्ट किया है। छवियाँ एक मृत चीज़ हैं, जो कि भूत है, जिसे हम अपने यथार्थ का बलिदान देकर जिन्दा रखते हैं। हमारे लिए इस पल का महत्त्व इस पल के निकल जाने के बाद ही है, इसी को स्मृति कहते हैं। हम हर चीज़ को अपनी स्मृति में रख लेना चाहते हैं (जिसका एक उदाहरण फ़ोटो खींचना भी हो सकता है) क्योंकि अंदर हम अनजाने में ही कहीं ये जानते हैं कि हम इस पल में उपस्थित नहीं हैं और हमें अपने ही भविष्य से ये उम्मीद भी है कि वो हमारे यथार्थ से ही हमें मिलवाएगा (बाद में हम उसमें विज़िट करेंगे)।

जब उस पल का उस पल में ही कोई महत्व नहीं तो बाद में क्या होगा लेकिन हमारे लिए जो गुज़र गया उसका ही महत्व होता है। हमारे लिए जीवन का मतलब सिर्फ़ भूतकाल है जो भविष्य जैसा बस दिखाई पड़ता है, एक ऐसा भूतकाल जिसकी नियति में कभी वर्तमान होना था ही नहीं, जो कभी घटित ही नहीं हुआ। जब हमारा वर्तमान घटित नहीं हुआ, हमारा भूतकाल घटित नहीं हुआ, तो फिर हम कहाँ से घटित हो गये?

इसी प्रकार से जीवन के रहते हम कभी उसमें नहीं होते, जब वो गुज़र जाता है तो हम उसकी स्मृति में होते हैं और इसीलिए बनाते हैं परिवार ताकि वो स्मृतियाँ चलती रहें और हमारा ये भ्रम क़याम रहे कि स्मृतियों के अस्तित्व से हमारा अस्तित्व है, स्मृतियाँ हैं तो हम हैं। ख़ुद को (शरीर को) अमरता देने की एक झूठी दिलासा, जबकि यदि हम ख़ुद को जान गये होते तो अमर हो गये होते।

वर्तमान समय में हम देख रहे हैं कि राजनीति में लगातार आ रही गिरावट ने इसके ढांचे को छिन्न-भिन्न करके रख दिया है त्याग और समाज सेवा के लिए जाने जाने वाले इस क्षेत्र में आज ना तो कोई जननायक ही रह गया है और ना ही उसके अंदर समाज के लिए त्याग समर्पण की ही भावना रह गयी है आज जो लोग इस क्षेत्र में आ भी ही रहे हैं तो उनका मकसद समाज सेवा से अधिक रातो-रात शोहरत बटोरना व राजनीति को हथियार बनाकर मुनाफा कमाना भर रह गया है। तभी तो कोरोना के इस महामारी में यह तंग दिल नेता जनता के साथ खड़े होने के बजाय अपने द्वारा की गयी जनसेवा को सोशल मीडिया पर कैश करते नजर आ रहे हैं। मौजूदा संकट काल में भी इन्हें जनता का दुख दर्द दिखाई नहीं दे रहा है।

जनसेवा की आड़ में राजनीति चमकाने की कोशिश..

इन दिनों वे जनसेवा के नाम पर जो थोड़ा बहुत दिखावा कर रहे हैं उसके पीछे भी उनका वोटों का गणित साफ दिखाई दे रहा है उन्हें चिंता जनता के दुख दर्द की नहीं बल्कि अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव की अधिक चिंता है, उसी का नतीजा है कि वह ना चाहते हुए भी इन दिनों सेवा के बहाने जनता के बीच दिखाई देने को मजबूर है। इन दिनों सोशल मीडिया पर विधायक निधि से जन उपयोगी कार्य के लिए दिये जा रहे खर्चे का ब्यौरा तेजी से वायरल हो रहे हैं। लगभग अधिकांश नेतागण या कार्यकर्ता इस तरह की पोस्ट सोशल मीडिया पर डालकर अपने कार्यकर्ताओं की वाहवाही बटोर रहे हैं। वैसे विधायक निधि का पैसा आमजन की समस्याओं को दूर करने के लिए विधायकों को अपने क्षेत्र के विकास कार्यो के लिए आवंटित किया जाता रहा है पर अफसोस आज तक कभी किसी नेता ने सम्भवतः इस धन का प्रयोग स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में नहीं किया होगा।आज कोरोना संकटकाल के दौरान इस धन का व्यय नेताजी द्वारा कोरोना संकटकाल से निपटने के लिए किया जा रहा है। शायद इस धन का प्रयोग आज से पहले भी स्वास्थ्य सेवाओं में व्यय किया होता तो शायद आज हालात कुछ और होते। 

फोटो क्रेडिट : patrika.com

भाजपा हो, काँग्रेस हो या अन्य कोई हर दल के विधायक, विधायक निधि का ब्यौरा सोशल मीडिया पर इस तरह वायरल कर रहे हैं जैसे मानो उनकी जेब से पैसा खर्च हो रहा हो। किसी भी पार्टी के बड़े नेता या कार्यकर्ता का ना कोई निजी अस्पताल कोरोना संकटकाल में जनता की सेवा के काम आया और ना ही इनके बड़े-बड़े निजी होटल आम जनता के काम आए। शायद अगर ये नेता जी अपने निजी होटल या निजी स्कूल ही कोविड सेंटर में तब्दील कर देते तो जो अस्थाई कोविड सेंटर बनाए गये हैं उनकी लागत तो कुछ हद तक तो बच ही जाती, साथ ही कोविड के मरीजों को बेहतर सुविधा भी मुहैय्या हो पाती। असल में कोविड संकटकाल में किसी भी जनप्रतिनिधि ने अब तक ऐसी कोई पहल नहीं की जिससे कि उनके निजी संसाधनों का उपयोग जनहित में हो रहा हो। वही कोरोना संकटकाल में सरकार उन सरकारी संसाधनों का भी सदुपयोग नहीं कर पायी जो सरकारी भवन कई वर्षो से धूल फांक रहे हैं और ना ही विपक्षी दलों ने इस पर सरकार को कोई सुझाव दिया।

आज सोशल मीडिया के माध्यम से हर कोई जनता के बीच बना रहना चाहता है। ऐसा जताना चाहता है कि एकमात्र वही आपकी मदद करना चाहता है या यूं कहें कर सकता है। “नर सेवा नारायण सेवा से बेहतर है” ऐसा हम इतिहास मे पढ़ते आए हैं परन्तु आज का मददगार समाज आपकी मदद से पहले फोटो को ज्यादा प्राथमिकता दे रहा है। उसे व उसके समर्थकों को सोशल मीडिया मे प्रसारित जो करना है। संघर्ष में वृद्धि और आपदाओं से निपटने की नाकाबलियत सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं, इसलिए आपदाओं से निपटने की बेहतर तैयारी, सही नीतियां इनसे निपटने में मदद कर सकती हैं। इसके साथ ही समाज के सभी वर्गों का विकास भी बहुत जरुरी हैं, क्योंकि आर्थिक, सामजिक और राजनैतिक रूप से पिछड़ा वर्ग ही किसी भी तरह की आपदाओं और संघर्षों का सबसे ज्यादा शिकार बनता है, ऐसे में उनके सर्वांगीण विकास इन संघर्षों में लगाम लगा सकता है। 

.

Show More

राजकुमार सिंह

लेखक उत्तराखण्ड से स्वतन्त्र पत्रकार हैं। सम्पर्क +919719833873, rajkumarsinghbgr@gmail.com
4.7 3 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x