सिनेमा

इस ‘घूँघट’ की आड़ से दिलबर का दीदार अपनी रिस्क पर कीजिए…

 

साल 1993 में आमिर खान की फिल्म आई थी। आपको याद ही होगा उसका एक गाना ‘घूँघट की आड़ से’ यह गाना इतना ज्यादा सुपरहिट हुआ की आज भी इसे गाहे-बगाहे गाँव देहात में बजते हुए आप सुन लेते हैं। और अब साल 2022 में हरियाणा के तेजी से पॉपुलर हुए ओटीटी प्लेटफार्म स्टेज एप्प पर एक फिल्म आई ‘घूँघट’ अब आप कहेंगे तो दोनों में समानता क्या है? समानता हो न हो घूँघट शब्द तो समान ही है न! खैर

जून के महीने में रिलीज हुई इस फिल्म को अपन ने उसी महीने में लेकिन कुछ दिन बाद देखा था। फिर अपनी व्यक्तिगत समस्याएं और फिर भूलने की आदत कह लीजिए या फिर ये कि इस तरह की अच्छी खासी कहानियों का कत्ल हो जाए तो उन पर लिखकर हम उनका और कत्ल करना नहीं चाहते। 

फिल्म की कहानी इतनी सी है कि हरियाणा का एक गाँव है। नाम तो है रांझा वाला गाँव लेकिन इस गाँव में कोई एक दो रांझा नहीं हर मर्द रांझा बना घूम रहा है। लेकिन हीर तो है ही नहीं गाँव में। लो जी बन गया फुद्दू। अब जिस गाँव में हीर ही नहीं तो रांझे कहाँ से आ गये? आपके जेहन में भी सवाल आया न? तो जी बात ये है कि रांझे तो है लेकिन वे रांझे देसी भाषा में और भदेस शब्द में रंडवे यानी अब तक कुंवारें हैं। अब इनके यहाँ किसी की शादी बात भी होती है तो इसी गाँव के दो बदनाम लडके लीलू और कालू बीच में आ जाते हैं और रिश्ता लेकर आये लोगों को लड़कों के घर तक नहीं पहुँचने देते। इसके पीछे भी एक कहानी है! अरे वाह कहानी में कहानी! मजा आ रहा है आगे सुनाइये… तो सुनिये… मेरा मतलब आगे देखिये आप फिल्म में क्या होता है? तो होता ये है कि गाँव का एकमात्र सरपंच जो बिना काम के, बिना बात के सरपंच बने बैठा है उसकी बीवी भी नहीं!कभी शादी हुई या नहीं यह बताना लेखकों, निर्देशकों ने जरूरी नहीं  समझा क्यों? हमें क्या मालूम! 

लेकिन जनता तो पूछेगी न? भाई जिस गाँव का उसूल है कि शादी शुदा ही सरपंच बनेगा तो ये सरपंच कैसे बना? भाई हमें क्या पैसा उनका, एक्टर उनके, कैमरा उनका, सिनेमैटोग्राफर उनका सब कुछ उनका। अपना क्या है एक साल का सब्क्रिप्शन? या वो भी नहीं तो किसी से लेकर देख लेंगे है न?

खैर स्टेज एप्प के लिए बनी इस करीब 90 मिनट लम्बी फिल्म की कहानी तो अच्छी बनाने की कोशिश की गई, फिल्माने की कोशिश भी अच्छी की गई, एक्टिंग भी अच्छी करने की कोशिश की गई, कैमरा और सिनेमैटोग्राफी के साथ-साथ बैकग्राउंड स्कोर, डबिंग आदि भी अच्छी करने कोशिश की गई। सवाल तो कई उठते हैं जिनके जवाब भी मिलते हैं लेकिन उन सवालों के जवाब आम दर्शक तो खोजता ही है न? या इतना भी नहीं सोचा आपने? कुछ जगहों पर अच्छी तो कुछ जगहों पर उम्दा तो कुछ जगहों पर कचरा बन पड़ी इस फिल्म को अपनी ही रिस्क पर देखिएगा। हाँ कुछ कलाकार हैं वो जरुर इस रिस्क को थोड़ा अच्छा बना देते हैं देखने के नजरिये से।

कालू और लीलू जहरी के रूप में सोनू सीलन और नवीन सबसे ज्यादा रंग जमाते हैं। दरअसल यह फिल्म इन दोनों ने ही पकड़ में रखकर देखने लायक बनाये रखी है कहें तो ज्यादा बेहतर रहेगा। सुंदर के रूप में संजीव शर्मा कुछ जगहों पर चुके हैं ख़ास करके वहां जहाँ अद्विका शर्मा के साथ वे नजर आते हैं। ये लड़की चंदा के रूप में क्यों ली गई? सवाल बनता है।  ‘जे. डी बल्लू’ तो हरियाणवी सिनेमा के लिए वो मसाला बन चुके हैं कि किसी भी फिल्म में उन्हें हल्का भी बुरक, छिड़क दिया जाए तो उस फिल्म का स्वाद बढ़ जाता है। जैसे हम घरों में सब्जी में धनिया डालकर उसका स्वाद बढ़ा लेते हैं। लोकेश मोहन खट्टर भी जंचे हैं। कलपती राहीवाल कुछ समय के लिए आती हैं लेकिन रंग जमाती हैं। तेजी सिंह पहले किरदार में जमते हैं तो वहीं दूसरे किरदार में उनके हाथ से एक्टिंग फिसलती नजर आती है। 

वेश्या के घर के सीन तो उफ्फ एकदम कमजोर और देखकर उल्टी करने का मन होता है कि आदमी बीच में फिल्म छोड़ दे देखना। लेकिन भाई हमने तो देखी थी इसलिए हिम्मत नहीं हुई बतौर समीक्षक भी इस तरह अच्छी फिल्मों का जब कत्ल कोई प्रोड्यूसर या कोई डायरेक्टर या कोई लेखक या कोई एक्टर या कोई.. कोई.. कोई.. आदि कर दें तो उन कत्ल-ए-आम को कम से कम मैं लिखूं और आप तक हमेशा कचरा फिल्मों का या कत्ल हो चुकी कहानियों का रिव्यू ही पहुंचाता रहूँ।

स्टेज एप्प वाले भाई साहब आप लोग 15-20 मिनट तक की छोटी फ़िल्में तो लाजवाब बना लेते हो, रागनियाँ भी उम्दा है आपके ओटीटी पर चुटकले, गीत संगीत भी ठीक से हैं। तो आपने ये ओटीटी क्यों बनाया? इससे अच्छा यूट्यूब चैनल पर ही बने रहते क्यों? जब तक प्रोड्यूसर अपना इमानदारी का पैसा इमानदार जगहों पर नहीं लगाएगा तो वह घंटा घूँघट का बोझ सम्भाल पायेगा? सच तो ये है कि इस घूँघट के बोझ तले पूरी फिल्म की टीम ही दबी पड़ी नजर आती है। एक अच्छी खासी उम्दा हो सकने वाली फिल्म की स्क्रिप्टिंग करते हुए या इसमें पैसा लगाकर और इसका निर्देशन करते हुए आप लोगों ने इसमें जो टाइम इंवेस्ट करके इसका जो कत्ल किया है उसके लिए यह सिनेमा प्रेमी माफ़ नहीं करेगा।

अपनी रेटिंग – 2 स्टार

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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