सामयिक

कोरोना से लड़ाई में भूल जाएँ जीभ का स्वाद

 

  • प्रीति पाण्डेय

 

दिल्ली में एक पिज़्ज़ा डिलीवरी बॉय का कोरोना पॉजिटिव पाया जाना एक बार फिर किसी बड़े समूह को मुश्किल में डाल दिया है। प्रशासन ने तुरन्त कार्यवाही करते हुए उन 72 घरों को सील कर दिया है जिनमें उस डिलीवरी बॉय ने पिज़्ज़ा डिलीवर किया था साथ ही उसके साथ काम करने वाले 17 स्टाफ मेम्बर  को भी नजरबन्द किया गया है। हमें यह नहीं भूलनी चाहिए कि आज पूरा विश्व कोरोना से दो-दो हाथ कर रहा है।

कोरोना, कट्टरता और पूर्वाग्रह का कॉकटेल

अगर यह कहा  जाए  कि कोरोना से जंग किसी विश्व युद्ध के समान ही लग रही है तो गलत नहीं होगा। दुश्मन के सामने होने पर हम उसपर कम से कम पलटवार तो कर सकते हैं। उसके 4 वार खाएंगे तो 1 को मार तो सकते हैं, लेकिन यह युद्ध तो उससे भी ज़्यादा खतरनाक है जहाँ आपका दुश्मन अदृश्य है और यहाँ तो आपको खुद को ही दुश्मन से छिपा कर रखना है।

कोरोना के ज़ख्म और विद्यार्थियों की आपबीती

यहाँ घर में छिप कर बैठने वाले को कायर नहीं बल्कि बहादुर माना जा रहा है क्योंकि वह अपने साथ-साथ कई हजारों लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। आज जो घर पर बैठा है वही सिकन्दर है। कहीं ऐसा ना हो कि हम कोरोना की जंग केवल अपनी जीभ के स्वाद के कारण हार जाएँ।

बाहर का खाना कितना सुरक्षित है

बरसात के मौसम में बहार का खाना हो ...

आज के हिसाब से तो बिलकुल भी नहीं। सवाल यह उठता है कि इस गम्भीर  स्थिति में क्या सोच कर रेस्टोरेन्ट  और फ़ूड डिलीवरी जैसी संस्थाओं को खोला गया है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसे रेस्टोरेंट गरीबों की भलाई के लिए तो मुफ्त खाना नहीं बांट रहे होंगे बल्कि व्यापर की दृष्टिकोण से इसे खोला गया होगा। ऐसे में यहाँ खाना बनाते समय कितने सुरक्षित तरीके से उसे बनाया जाता होगा इस बात की पुष्टि कैसे हो? 

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जो खाना बनाता है या उसके साथ जितने भी लोग कार्यरत होते हैं वह बीमार नहीं है इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यदि एक व्यक्ति पिछले 10 दिनों से बीमार होने के बावजूद पिज़्ज़ा डिलीवरी दे रहा है तो किसी ने उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया ? यहाँ उन लोगों की भी कमी है जो ऐसी गंभीर परिस्थिति में भी अपने स्वाद पर ब्रेक नहीं लगा सकते, लोगों के पास दो वक़्त का खाना खाने को नहीं है, रहने को नहीं है और कुछ खास तरह के लोग जो शायद खुद को विशेष इंसान मानते हैं उन्हें पिज़्ज़ा और जायकेदार खाना चाहिए।

समय का ये पल थम सा गया

अगर आपके पास पिज़्ज़ा या रेस्टोरेंट फ़ूड आर्डर करने को पैसे हैं तो यक़ीनन आप ग्रोसरी खरीद कर स्वयं से भी कुछ बना सकते हैं। प्रशासन को यह भी जानकारी लेनी चाहिए कि बाहर से खाना आर्डर करने के पीछे क्या मज़बूरी थी? यक़ीनन बात थोड़ी नहीं बहुत अटपटी है लेकिन इस समय को देखते हुए अटपटा कुछ नहीं होना चाहिए क्यूंकि इस समय हमे केवल इस बात की तह में जाना चाहिए कि लोग आखिर क्यों इन बातों को गम्भीरता  से नहीं ले रहे?

कोरोना नही करोंदा की कहानी

पेट भरने के लिए भूख लगनी चाहिए बस, और जब भूख लगती है तो इंसान स्वाद नहीं देखता। एक छोटी सी लापरवाही कितने लोगों की जान संकट में डाल सकती है। इस बात का अन्दाज  हम सभी को है लेकिन फिर भी हम बार-बार ऐसी हरकत करते ही हैं।

इतने फल, सब्जियां खाने से मौत का खतरा ...

आज आपके सेहत से बड़ा कुछ भी नहीं है। इस समय आपका खाना हर तरह से पौष्टिक होना चाहिए। खाने में अधिक से अधिक फल एवं सब्जियाँ होनी चाहिए। घर का खाना हर प्रकार से आपके लिए लाभकारी है। यकीन मानिये सब मिलकर घर पर जब कुछ बनाएँगे  तो उसमें रेस्टोरेन्ट  से बेहतर स्वाद आएगा। हम मानते हैं कि हर घर में बच्चे हैं और बच्चों की जिद के आगे जितना मुश्किल भी है लेकिन कोरोना के बारे में सभी भली भांति जानते और समझते हैं।

लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा

अब बस कुछ दिनों की बात है जब हम कोरोना पीछे छोड़कर कर आगे निकल जाएँगे। यह समय और हम लोग इस समय को याद करेंगे और जरूर कहेंगे कि यार कितना अच्छा था न लॉकडाउन का समय। घर पर रहिये और घर पर बनाकर खाइये क्यूँकि उससे स्वादिष्ठ और सेहतमन्द  कुछ नहीं। 

चरखा फीचर्स

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी

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