सबसे बड़े लोकतंत्र में, जहां शिक्षा और स्वास्थ्य जो व्यक्ति के लिए बेहद जरूरी है, इस पर पूंजीपतियों की इजारेदारी है और उन्हें लूट की छूट है। आज आप सरकारी स्कूलों और अस्पतालों का सर्वे कर के देख लें। क्या वहां पर्याप्त कर्मचारियों की नियुक्तियां हुई है ? क्या सरकारी स्कूलों में 40 और 1 के अनुपात में छात्र शिक्षक हैं ? यदि नहीं तो इसके लिए उत्तरदाई कौन है ? लंदन में लोग सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं और सरकारी अस्पताल में ही अपना इलाज करवाते हैं । वहां सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है। हमारे देश में सरकारी स्कूल स्किल्ड लेबर पैदा करने का एक कारखाना बनकर रह गया है अथवा इसे ऐसा ही बनाकर रखने की योजना है । जबकि सरकारी स्कूलों के आंकड़े प्रतिमाह सरकार को उपलब्ध कराए जाते हैं । बावजूद इसके सरकार के कानों पर जूं नहीं रहती है तो इसके मायने क्या है ? जहां 50 की जगह 5 कर्मचारी काम करेंगे तो अत्यधिक काम के बोझ से उनका कामचोर हो जाना लाजमी है । आखिर कर्मचारी कितना ओवरलोड बर्दाश्त करेंगे ?
अपने देश में अमूमन लोग यह आरोप लगाते हैं के शिक्षक कामचोर हो गए हैं । मेरे मन में सवाल उठता है कि क्या एक बनिया ईमानदारी से अपना व्यवसाय कर रहा है , डॉक्टर ईमानदारी से मरीजों की सेवा कर रहा है, ठेकेदार और इंजीनियर ईमानदारी से निर्माण कार्य में लगे हैं, नेतागण ईमानदारी से जनता की सेवा में लगे हैं , माता पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय दे रहे हैं , बच्चे ईमानदारी से अपनी पढ़ाई कर रहे हैं , पब्लिक स्कूलों को छोड़कर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे की मां स्कूल के रूटीन के अनुरूप बच्चे का बैग तैयार करके दे रही हैं, अगर सब कुछ ठीक-ठाक है तो ऐसे में शिक्षक जरूर गुनाहगार है । जहां की हवा में जहर घोल दी गई है, वहां केवल शिक्षकों से यह उम्मीद की जा रही है कि वह अपनी नाक पर मास्क लगाकर चले।
अक्सर शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों पर कामचोरी और घूसखोरी के आरोप लगाए जाते हैं । मैं मानता हूं कि प्रत्येक कार्य के पीछे कोई कारण होता है। कर्मचारी की कामचोरी और घूसखोरी के पीछे के कारणों को तलाशना चाहिए । वह अपने बच्चे को महंगे स्कूलों में पढ़ाना चाहता है । वह अपना इलाज मंहगे अस्पताल में करवाना चाहता है । उसके ऊपर अपने बच्चों और बुजुर्गों का बोझ है । उसकी आमदनी इन सब के लिए नाकाफी होती है । ऐसे में कुछ लोग अभाव के कारण अपना स्वभाव बदल लेते हैं , फिर लोगों का ऐसा ही स्वभाव बन जाए तो आश्चर्य क्या है ? विदेशों में शिक्षा , स्वास्थ्य , बच्चों और बुजुर्गों की जिम्मेदारी सरकार की होती है। यही कारण है कि वहां ओल्ड एज होम नहीं है, क्योंकि लोग अपने बुजुर्गों के बोझ से बिल्कुल मुक्त होते हैं। आप कह सकते है कि मैं काम चोरी और घूसखोरी को जस्टिफाई कर रहा हूं। लेकिन सच्चाई यही है की हमारे यहां 1-1 कक्षा में 204 बच्चे पढ़ते हैं और पचास की जगह 15 शिक्षकों से काम लिया जाता है। स्कूलों से कोई माल प्रोडक्शन नहीं होता है क्या इसलिए पर्याप्त स्कूलों की व्यवस्था नहीं करनी चाहिए। एक ओर देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर स्कूलों में शिक्षकों का अभाव है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है ? कुछ प्रांतों में आनन फानन में किसी की सिफारिश पर अनट्रेंड कॉन्ट्रैक्ट शिक्षकों की बहाली कर दी गई है और उनसे परफेक्ट टीचिंग की अपेक्षा की जाती है। यह शिक्षा के नाम पर मजाक नहीं तो और क्या है ?
मित्रों ! चिकित्सा की स्थिति और भी बद तर है। सरकारी तो सरकारी है मैं आपको एक प्राइवेट हॉस्पिटल का मजेदार वाकिया बताता हूं। हैदराबाद के यशोदा अस्पताल में मैंने आर्थोपेडिक डॉ संजीव कुमार बेहरा का अपॉइंटमेंट लिया। मुझे संध्या चार बजे का समय दिया गया। काउंटर पर एजक्यूटिव मिस्टर पांडा ने मुझसे ₹500 फीस लेकर डॉक्टर संजीव कुमार बेहरा के चेंबर में जाने के लिए कहा। वहां डॉक्टर संजीव कुमार बेहरा की जगह कोई दूसरा डॉक्टर ही बैठा हुआ था। मैंने तत्काल काउंटर पर जाकर मिस्टर पांडा से कहा , ” जनाब , यह तो धोखा धड़ी है। आपने फीस डॉक्टर संजीव कुमार बेहरा के नाम पर लिया और चेंबर में कोई और बैठा हुआ है। “
” मेरे रिकॉर्ड में डॉक्टर बेहरा हॉस्पिटल में उपस्थित हैं।… लेकिन कोई बात नहीं वे जिस दिन आएंगे तो आप उनसे दिखवा लीजिएगा ” ,उसने कहा।
“… तो आज की फीस मेरी बेकार गई ना ! फिर मुझे अगले दिन रजिस्ट्रेशन के लिए ₹500 देने पड़ेंगे “, मैंने कहा।
” ऐसा नहीं है । आप 10 दिनों तक इस रजिस्ट्रेशन के आधार पर दिखा सकते हैं “, उसने बताया।
खैर, मैंने उन्हीं वैकल्पिक डाक्टर से अपनी समस्या बताई। उन्होंने मुझे एक पैर के एंकल का एक्स रे करवाने के लिए भेजा। x-ray फीस 890 का भुगतान कर जब मैं लैब में घुसा तो टेक्निशियन मेरे दाएं पैर का एक्सरे करने लगा। मैंने कहा , ” जनाब ! समस्या तो मेरे बाएं पैर में है। आप दाएं पैर का एक्सरे क्यों कर रहे हो ? “
” इसमें तो यही लिखा है । “, टेक्निशियंस ने कहा।
” लिखने से क्या होता है। मैं जो कह रहा हूं वही करो।” मैंने उससे कहा।
उसने मेरी बात मान कर मेरे बाएं एंकल का एक्सरे कर दिया। जबतक मैं रिपोर्ट लेकर पहुंचा वह वैकल्पिक डॉक्टर भी अपने चेंबर से रफू चक्कर हो गया था। अब मुझे डॉक्टर संजीव कुमार बेहरा की छुट्टी खत्म होने तक इंतजार करना ही था। यह तो मेरे उपचार की दास्तान है। कमोबेश ऐसे हास्यास्पद अनुभव हमारे देश के समस्त नागरिकों के पास जरूर होंगे।
यहां लोग पूंजी संग्रह करने के लिए नैतिकता और अनैतिकता के भेद को भूल जाते हैं ऐसा क्यों है ? जिस देश का सेटअप पूंजीवादी हो वहां हर कोई पूंजीपति बनने के लिए उतारू हो जाए तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यहां हर छोटा से बड़ा आदमी पूंजी संग्रह करने के पीछे पागल है। वह किसी प्रकार से अपना भविष्य सुरक्षित कर लेना चाहता है। इस प्रयास में वह अपनी पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए पूंजी अर्जित करने के लिए उतावला है। बच्चों की शिक्षा ,लोगों के स्वास्थ्य और बुजुर्गों की जिम्मेदारी अगर सरकार के ऊपर होती तो अपने देश के भ्रष्टाचार पर बहुत हद तक लगाम लगाई जा सकती थी। नहीं जानता कि अपने देश की जनता इस तरह की मांग क्यों नहीं रखती है और किसी भी राजनीतिक पार्टी के एजेंडे में इस तरह का कार्यक्रम क्यों नहीं होता है ? नेता आर्थिक प्रलोभन देकर जनता को लुभाने पर लगे हैं। कुछ बड़े किसानों के कर्ज माफी देकर उन्हें मुफ्त खोरी सिखा रहे हैं। सरकार जानती है कि उनकी घोषणा जमीन पर कभी भी जाकर फल वती नहीं होती तो फिर ऐसी घोषणाओं का क्या लाभ ? और हम उनके ऐसे लुभावने झांसे में ही क्यों आ जाते हैं ? क्या हमें एकजुट होकर हमारी नितांत आवश्यक आवश्यकता शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए एक पुरजोर मांग उठाने की जरूरत नहीं है ? यदि हां , तो हम लोग कब तक मौन बैठे रहेंगे ?