मी लॉर्ड! बड़ी सजा है तारीख पर तारीख
इंतजार का 40 साल। धैर्य और उम्मीद की दृष्टि से देखा जाए तो यह बहुत ज्यादा होता है। 40 साल बाद कांग्रेस के एक बड़े नेता पर आरोप तय होने जा रहा है। इसमें यह तय किया जायेगा कि सिख दंगे में जगदीश टाइटलर दोषी थे भी या नहीं? और अगर दोषी थे तो कितना? कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर की उम्र 80 साल की हो चुकी है। और, यह दंगा पहली नवंबर 1984 यानी चार दशक पहले हुआ था। चालीस साल की काल अवधि कम नहीं होती। इतने लम्बे समय में दिल्ली के किनारे यमुना में कितना पानी बह गया होगा। दिल्ली दंगे की चपेट में आए भुक्तभोगी परिवार की पीढ़ियाँ भी शायद बदल गयी होंगी।
यह पहला मौका नहीं है। 14 फरवरी 2024 को बेहमई नरसंहार का फैसला 43 साल बाद आया। गौरतलब है कि मामले में मुख्य अभियुक्त रही फूलन देवी समेत 36 लोग आरोपी थे, इनमें एक आरोपी को न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है जबकि दूसरे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। इस मामले में कई आरोपियों और गवाहों की पहले ही मृत्यु हो चुकी है जबकि तीन आरोपी फरार हैं इनकी आज तक गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। दिल दहला देने वाले बेहमई सामूहिक हत्याकांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। महिला डकैत फूलन देवी ने गिरोह के साथ मिलकर 20 लोगों की हत्या कर दी थी। यह सिर्फ एक उदाहरण है देश में बड़ी संख्या में ऐसे मामले मिल जाएँगे जिनमें बरसों से लोग न्याय की राह टकटकी बाँधे निहार रहे हैं।
01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर नए ध्वज और प्रतीक चिन्ह का अनावरण करने के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि देश की विभिन्न अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित मामले न्यायपालिका के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। इससे हर हाल में निपटना होगा। कानून मंत्री ने मंच से कहा कि तारीख पर तारीख देने की संस्कृति बदलनी होगी। इसके पहले भी सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कुछ दिनों पहले एक तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि- “हमें अपने नागरिकों के मामलों के फैसले के लिए उनके मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए।”
देश में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो लम्बे अरसे से न्याय मिलने की राह टकटकी बाँधे निहार रहे हैं। एक साल पहले राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया था कि देश में 5.02 करोड़ से ज्यादा केस देश की विभिन्न अदालतों में लंबित पड़े हैं। जानकारों का मानना है कि देश की अदालतों में न्यायधीशों की संख्या काफी कम है। एक आंकड़े के मुताबिक, दस लाख नागरिकों पर तकरीबन बीस न्यायाधीश हैं। वादों के बढ़ते हुए आँकड़ों को देखते हुए यह काफी कम है। जिला अदालतों में पाँच हजार से अधिक न्यायाधीश, पचहत्तर हजार से ज्यादा सहायक कर्मचारियों के पद खाली पड़े हुए हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज त्रिपाठी कहते हैं कि न्याय में होने वाली देरी और लंबित मामलों से निपटने के लिए उपाय किया जाना बहुत ही जरूरी है। युवा अधिवक्ता यश वर्धन पांडेय कहते हैं- मुवक्किलों को तारीख पर तारीख देकर बार-बार दौड़ाना या कई दशक बाद सुनवाई, उनके लिए यह सब किसी सजा से कम नहीं।