मृत्युंजय श्रीवास्तव
-
Feb- 2021 -4 Februaryजूम इन
मुगल-ए-आजम का विचार पक्ष
मुगल-ए-आजम वह फिल्म थी जो सबके सर चढ़ कर बोली थी। साठ साल पहले। सन साठ में। महीना था अगस्त। तारीख थी पांच। रिलीज हुई थी यह फिल्म। केवल हिन्दी नहीं, भारतीय सिनेमा की पेशानी पर लिखी गयी इबारत…
Read More » -
Jan- 2021 -9 Januaryजूम इन
भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा अगर किसान हारेगा
किसान अब वह नहीं है जिसके कन्धे पर हल होता था और हाथों में हँसिया। वो भी नहीं है जो बैलों के आसरे जीता था। उनकी पूजा करता था। न अब बैल हैं न हल। हँसिया की वह भूमिका नहीं, जो पहले थी। मगर किसान…
Read More » -
Dec- 2020 -14 Decemberजूम इन
द ओवैसी बर्निंग ट्रेन : स्टेशन से गाड़ी छूट चुकी है
धर्मनिरपेक्षता जमीनी हकीकत नहीं है, बल्ली पर टंगी हुई एक मृत अवधारणा है अब। जब चाहिए था, आकाशदीप की तरह मुंडेर पर टांगना, धर्मनिरपेक्ष पन्थियों ने कन्दील की तरह इस्तेमाल किया था तब। अब गंगा में ऐसे ऐसे और…
Read More » -
1 Decemberजूम इन
अन्धे हैं, किसी की बला से
क्या कहा? कान के पर्दे फट रहे हैं? – सुनना ही क्या है? क्या कहा? आँखें कड़ुआ रही हैं? – देखना क्यों? क्या कहा? साँस लेने में दिक्कत हो रही हैं? – जी के क्या करोगे? जिनकी छाती में…
Read More » -
Nov- 2020 -22 Novemberजूम इन
और नहीं बस और नहीं
जनता गरम हवा में पकौड़े छानने लगती है, जब राजनेता घोषणाओं के जुमले से हवा गरम कर देते हैं। चुनाव जुमलों की पतंगें उड़ाने का पर्व होता है। घोषणाएँ अब वादा नहीं, बिना हार्डवेयर का कम्प्यूटर हैं। जब तक…
Read More » -
10 Novemberजूम इन
हर्षद मेहता का भारत
नयी पीढ़ी हर्षद मेहता का नाम नहीं जानती। न उसकी हरकतों को जानती है लेकिन वह जिस हिंदुस्तान में वयस्क हो रही है, उस हिन्दुस्तान को बनाने में हर्षद मेहता के दुस्साहसों का योगदान है। धन्यवाद जाता है हंसल…
Read More » -
3 Novemberजूम इन
खेल बिगाड़ने का खेल
खेल बिगाड़ने के खेल पर दुनिया टिकी हुई है। जो जितना माहिर है खेल बिगाड़ने में वह उतना बड़ा उस्ताद है जमाने का। खेल बिगाड़ने के खेल में केवल खिलाड़ियों को ही मजा नहीं आता। भीड़ को भी मजा…
Read More » -
Oct- 2020 -25 Octoberजूम इन
बाजार के रहमोकरम पर है संहिता और संविधान
एक समाचार चैनल पर टीआरपी घोटाला का मामला दर्ज किया गया है। चैनल चलाना व्यवसाय है। व्यवसाय युद्ध है। युद्ध में मौत स्वाभाविक है। युद्ध का लक्ष्य ही अधिक से अधिक की हत्या करना होता है। इसके लिए वार…
Read More » -
18 Octoberजूम इन
आक्रमकता राष्ट्रीय अस्मिता की भाषा है
सितारों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। नालिश की है। न्याय के लिए गुहार लगाई है। सुशान्त के मामले में जब तक एम्स की रपट न आई थी, बोलती बन्द थी सितारों की। जैसे साँप सूँघ गया हो। मजेदार…
Read More » -
10 Octoberजूम इन
थाली के चट्टे बट्टे
पहले थैली के चट्टे बट्टे होते थे। अब थाली के। थैली का जमाना जो लद गया। लद गया जो जमाना वह लद्दूओं का था। लद्दूओं की थाली में छेद ही छेद होते थे, जिससे पतली दाल बह जाया करती…
Read More »