ठहरे हुए समाज को सांस और गति देती है साहित्यिक पत्रकारिता
- संजय द्विवेदी
मीडिया विमर्श के आयोजन में 11वें पं. बृजलाल द्विवेदी अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से प्रेरणा के संपादक श्री अरुण तिवारी सम्मानित
भोपाल, 03 फरवरी
साहित्यिक पत्रकारिता का कार्य है- ठहरे हुए समाज को सांस और गति देना। जो समाज बनने वाला है, उसका स्वागत करना। नयी रचनाशीलता और नयी प्रतिभाओं को सामने लाना साहित्यिक पत्रकारिता की जरूरी शर्त है। यह विचार वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विजय बहादुर सिंह ने 11वें पं. बृजलाल द्विवेदी अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में व्यक्त किए।
साहित्यिक पत्रकारिता हमेशा से हाशिये पर :
समारोह के मुख्य वक्ता एवं प्रख्यात कथाकार श्री मुकेश वर्मा ने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता हमेशा हाशिये पर रही है और उसे कभी राजनीतिक पत्रकारिता की हैसियत नहीं मिल सकी, लेकिन इस तरह के आयोजन साहित्यिक पत्रकारिता को स्थापित करने में महत्वपूर्ण कदम हैं। उन्होंने कहा कि पंडित बृजलाल द्विवेदी सम्मान से सम्मानित लेखकों पर यह प्रश्न कोई नहीं उठा सकता कि उन्हें सम्मान कैसे प्राप्त हुआ?अब तक के सभी चयन श्रेष्ठ हैं। श्री वर्मा ने सम्मानित लेखक श्री अरुण तिवारी के कार्य का उल्लेख करते हुए कहा कि हम सबको ‘प्रेरणा’ पढऩी चाहिए। यह एक ऐसी पत्रिका है, जिसमें आपको साहित्य की सभी विधाओं पर गुणवत्तापूर्ण पठनीय सामग्री मिलेगी।
प्रेरणा में सभी विचारों को स्थान :
सम्मानित लेखक एवं प्रेरणा के संपादक श्री अरुण तिवारी ने इस अवसर पर कहा कि किसी भी व्यक्ति को जब पुरस्कार या सम्मान मिलता है तो उसे अच्छा लगता ही है, किंतु सुखद आश्चर्य तब होता है जब वह पुरस्कार अनायास हो। प्रेरणा को शुरू करने के उद्देश्य को बताते हुए उन्होंने कहा कि अब तक की सारी पत्रिकाएं साहित्यकारों द्वारा ही लिखी-पढ़ी और प्रकाशित की जाती थीं। वह एक ऐसी पत्रिका की शुरुआत करना चाहते थे, जिसे आम लोग पढ़ें। संसाधनों के अभाव का सामना करते हुए भी हमने पत्रिका को प्रारंभ किया। श्री तिवारी ने बताया कि प्रेरणा एक ऐसी पत्रिका है, जिसमें सभी विचारधाराओं के लेखकों को जगह दी जाती है। आज देशभर में प्रख्यात ऐसे कई लेखक हैं, जिनकी पहली रचना प्रेरणा में प्रकाशित हुई। उन्होंने बताया कि इस पत्रिका में हमने कभी भी इश्तेहार नहीं लिए और न ही कभी लेंगे। उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि समाज में जो हमारे आसपास होता है वही साहित्य है। दोनों में फर्क बस इतना है कि साहित्य में लेखक अपना मत भी जोड़ देता है जबकि पत्रकारिता में घटना को जस का तस पेश करने की प्रतिबद्धता है। उन्होंने बताया कि हमारे यहाँ अनेक उदाहरण हैं, जिनसे यह साबित होता है कि पत्रकारिता यदि साहित्य से मिल जाए तो वैचारिक क्रांति का जन्म होता है।
साहित्यिक पत्रकारिता की मशाल जलती रहे :
मुख्य अतिथि एवं साहित्कार-पत्रकार डॉ. सुधीर सक्सेना ने कहा कि समाज के हित में साहित्यिक पत्रकारिता की मशाल को जलाए रखना बेहद जरूरी है। दरअसल, बाजारवाद के इस दौर में साहित्यिक पत्रकारिता बहुत कठिन कार्य है। जो भी साहित्यिक पत्रकारिता कर रहा है, उसे संबल, समर्थन और सहयोग करने की आवश्यकता है। उन्होंने अनेक उदाहरण बताते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में साहित्यिक पत्रकारिता की एक समृद्ध परंपरा रही है। रतलाम जैसी छोटी जगह से एक समय में सात साहित्यिक पत्रिकाएं प्रकाशित होती थीं। इससे पूर्व कार्यक्रम के संयोजक एवं मीडिया विमर्श के कार्यकारी संपादक प्रो. संजय द्विवेदी ने सम्मान की भूमिका विस्तार से बताई। उन्होंने बताया कि अपने पूज्य दादाजी की स्मृति में साहित्यिक पत्रकारिता के सम्मान की यह परंपरा उन्होंने शुरू की है। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि यह कहने में जरा भी हिचक नहीं कि साहित्य पत्रकारिता से ज्यादा समाज की सेवा करता है। वहीं, रायपुर से आए सद्भावना दर्पण के संपादक श्री गिरीश पंकज ने बताया कि इस सम्मान की निष्पक्षता पर किसी तरह का कोई संदेह नहीं है। यह सम्मान किसी विचारधारा से प्रभावित नहीं है। कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से आईं पत्रकार सुश्री कात्यायनी चतुर्वेदी ने और आभार ज्ञापन डॉ. श्रीकांत सिंह ने किया।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं|
सम्पर्क – +919893598888, mediavimarsh@gmail.com
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