- पवन कुमार
हमेशा ट्रेन की प्रतीक्षा में हमने हाजीपुर जंक्शन पे 2-3 घन्टे सुबह के बिताये, जो कुछ हमने देखा, वो सब यहाँ बताना चाहता हूं.
सबसे पहले साफ सफाई पे लोग काफी लगे दिखे, इसके साथ कुछ लोग रिक्शा चालक व दो पहिया वाहन को हड़काते दिखे. ये सब अतिक्रमण के नाम पे किया जा रहा था. एकाध के मुंह से ये सुना कि पता नहीं कब किस अधिकारी का दौरा हो जाए. कुछ समय बीतने के उपरांत सूचना कक्ष से ये ऐलान करवाया गया कि जिसका वाहन नो पार्किंग जोन में पाया जायेगा उसे C R P F द्वारा जप्त कर लिया जायेगा.
सुबह होने के साथ पुलिस डंडे से सोये हुए लोग को जगा रहे थे, जो लोग निम्न तबके से संबंधित थे वो पुलिस के लिए आंखों की किरकिरी बनी हुई थी.
यहाँ सबसे अमानवीय चेहरा स्टेशन से संबंधित कर्मी जो कि सादे लिवास में थे उनका दो मानसिक रूप से अस्वस्थ महिलाओं के प्रति रहा. उन्हें लगातार दुत्कारा गया, भेडर वाले से डंडे की मांग की गई. जब दोनों महिलाये बाहर चली गई, तब भी उनको परिसर से बाहर किया गया.
इन सब वजह से पूछताछ काउंटर पूरी तरह से खाली हो गया, मुश्किल से इक्का दुक्का लोग बचे.
डिसप्ले व सूचनापट्ट पे गाड़ी की सूचना में असमानता दिखाई दी. जहाँ डिसप्ले पे गाड़ी की सूचना 6:10 दर्शायी जा रही थी, वहीं गाड़ी की सूचना पट्ट पे 7:45 लिखी हुई थी. डिसप्ले हमें स्टेशन परिसर में सभी जगह दिख जाता है, वहीं सूचना पट्ट पे हाथ से लिखी बात एक ही जगह दिख जाती है.
प्लेटफार्म 2-3 के बाहरी छोर पे निम्न तबके लोग दिखाई दिये, यहां कोई उनसे टोका टोकी न कर रहा था.
जब पैसेजर गाड़ी आई तो उसमें हमें गंदगी के रूप में मूंगफली के छिलके दिखाई दिये, जाहिर तौर पे गाड़ी में सफाई न की गई थी, यात्री सीट लकड़ी के थे. पहले इस पे हमें कवर की वजह से सीट आराम व मुलायम लगते थे.
इन सब के बीच राष्ट्रवाद का प्रतीक तिरंगा हमें लहराता दिखा.
कुछ अच्छे स्टेशन का निजीकरण किया गया है, कहीं ये निजीकरण के पूर्व की तैयारी तो नहीं.
लेखक उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक में कार्यालय सहायक हैं|
सम्पर्क- +917991139491

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