बिहार

इस मंदिर में आज भी ‘घटोत्कच’ को लोरियां सुनाता है ‘भीम’

 

शेखपुरा, बिहार राज्य का एक छोटा सा गांव। लेकिन विविधताओं, संस्कृति के साथ प्रकृति से भरपूर शेखपुरा मुंगेर जिले से साल 1994 में अलग करके जिला घोषित किया गया। 2011 की जनगणना तक यह बिहार का सबसे कम आबादी वाला जिला रहा है। 2011 में जनसंख्या रजिस्टर में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि यहां की आबादी 1 लाख 11 हजार के करीब है। 

छोटा सा शहर लेकिन पहचान रखता है पुरातात्विक इतिहास से और उसे अपने भीतर गहरे दबाए हुए भी है हजारों वर्षों से। शेखपुरा जिले का एक अन्य छोटा सा गांव गिरिंडा जो महाभारत काल की कहानियों में भी दर्ज है। यही वजह है कि यह अपने गर्भ में पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक महत्व को समेटे रहने के कारण अब धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में देश भर में पहचान चाहता है।

बड़े ही दुःख की स्थिति है कि गिरिंडा जो असल में गिरिहिंदा है लेकिन स्थानीय लोगों के बोलचाल और भाषा के चलते अब गिरिंडा के रूप में रूढ़ शब्द हो गया है। वहां महाभारत काल में महाबली भीम द्वारा स्थापित एक बेहद ही प्राचीन शिवलिंग प्रशासन की बेरुखी झेल रहा है। बिहार का शेखपुरा पश्चिमी सीमांत पर स्थित मगध एवं अंग संस्कृति का संधि स्थल है। जिसका अतीत स्वर्णिम और उज्ज्वल रहा है। इस शहर को महाभारत कालीन महाबली भीम की नगरी, बौद्ध धर्म के प्रचारक गौतम बुद्ध की साधना स्थली और लोकपरोपकारी सम्राट शेरशाह की कर्मभूमि के रूप में भी जाना जाता है।

महाभारत कालीन शहर के गिरिहिंडा पहाड़ पर स्थित कामेश्वर नाथ शिव मंदिर लोकगाथाओं में वर्णित है और इसकी कहानी जो यहां के महंत राम प्रवेश दास ने मुझे बताई वह यही कि गिरिहिंडा पहाड़ पर हिडिंबा नामक दानवी से महापराक्रमी महाबली भीम ने गंधर्व विवाह किया। जिसके बाद उन्हें हुंडारक/घटोत्कच नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जबकि यहां के आम लोगों की धारणा है कि भीम अपने निर्वासन काल के दौरान गिरिहिंडा पहाड़ पर शिवलिंग की स्थापना की थी। यही जगह बाद में गिरिहिंडा पहाड़ के नाम से जानी गई। महाभारत काल में भीम द्वारा स्थापित शिवलिंग आज इसी कामेश्वरनाथ शिवमंदिर में है।

 

पहाड़ के करीब पांच सौ से छह सौ फीट ऊंची चोटी पर स्थित यह शिव मंदिर शेखपुरा शहर को भगवान शिव की प्राचीन नगरी के रूप में गौरवान्वित करता है। इस प्राचीन मंदिर को देखने लिए पहाड़ पर जाने वाले श्रद्धालु प्रकृति की अनुपम छटा को देख वशीभूत हो जाते हैं और यहां मेरी तरह बार-बार आने की अपनी इच्छा जताते हैं। पहाड़ की चोटी से नीचे देखने पर टेढ़ी-मेढ़ी नदियां, उजले रेत, बगीचों की झुरमुट तथा लहलहाते खेत अत्यंत मनोरम दृश्य से लगते हैं। बारिश के मौसम में इस पहाड़ पर आना तो जैसे मानों किसी स्वर्ग स्थान का दर्शन कर लेना हो।

यहां के वर्तमान महंत राम प्रवेश दास ने यह भी बताया कि प्रशासन से कई बार गुहार लगाई जाती है। कई बार पत्रकार लोग खास करके मेले के दौरान आते हैं। जानकारियां लेकर लेख छापते हैं अखबारों में लेकिन इतना सब भी इस पहाड़ और मंदिर की देखरेख के लिए प्रशासन को चेताता नहीं है। हालांकि कुछ प्रशासन की मदद से ही यहां पानी पीने की व्यवस्था हुई, बोरिंग खुदा, पहाड़ का रास्ता सुगम बनाने के लिए रोड भी बनाई गई। लेकिन सुरक्षा के लिहाज से यहां कुछ नहीं हुआ। न ही मंदिर का जीर्णोद्धार समय पर हो पाता है। प्रशासन की उपेक्षा का शिकार भीम आज भी प्रशासन को चीख-चीख कर पुकार रहा है।

गिरिंडा के पहाड़ों पर तुलसी भी सबसे अधिक अपने आप ही उग गई है। पूरा पहाड़ी इलाक़ा तुलसी से आच्छादित है। पहाड़ पर चढ़ने के दौरान आप तुलसी की खुशबू को अपने भीतर समाहित करते हुए मंदिर के भीतर प्रवेश करते हैं और सामने विराट शिवलिंग देख नतमस्तक हो उठते हैं। बरसात के दिनों में हल्की बारिश की बौछारें मानों अमृतमयी बूंदों के समान आपके ऊपर अमृतवर्षा कर रही है। साथ में बहती तेज हवाएं / पुरवाई आपके कानों में मधुर संगीत की तान सुनाती है। एकदम चिर शांत खड़ा गिरिंडा का यह भीमकाय पहाड़, यहां का भीम द्वारा स्थापित शिवलिंग , यहां की सुरम्यता, सौंदर्यता आपको मोहती है।

साल में दो बार यहाँ शिवरात्रि भी बनाई जाती है और स्थानीय भक्तों, श्रद्धालुओं एवं दूर बिहार राज्य से आने वाले भक्तगण भी शिव भोले की बरात में शामिल होते हैं। लंगर के अलावा भांग का प्रसाद भी भक्तों को वितरित किया जाता है उन्हीं के आर्थिक सहयोग और सहायता से ही यह सब सम्भव हो पाता है।

यहां के महंत ने इस मंदिर की खोज के बारे में भी एक रोचक जानकारी दी कि यहीं के एक लाला ने इस मंदिर की खोज करीबन 200-300 साल पहले की थी। महंत और उनके परिवार के नाम पर उनकी एकमात्र पत्नी इस मंदिर में पिछले 18-20 सालों से सेवा कर रहे हैं। एक साहित्यकार ‘लालमणि’ बताते हैं कि इसी पहाड़ पर विश्वामित्र ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन भीम को शक्तिमंत्र दिया था।

यहां  पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन क्यूल, गया , शेखपुरा आदि हैं। शेखपुरा से आप रिक्शा लेकर मात्र 5 से 10 मिनट के भीतर ही महाबली भीम की पुकार को सुन सकते हैं। यह  जिला हिन्दू बहुल जिला है। जिसमें हिंदुओं की जनसंख्या 93.68% है।

ऐसी मान्यता है कि भीम ने यहां पर एक शिवलिंग स्थापित किया था। भगवान शिव के आदेश पर विश्वकर्मा जी ने रातों रात यहां एक मंदिर का निर्माण किया। जिसे बाद में बाबा कामेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। ऐसी मान्यता है इस मंदिर में पूजा करने से और भगवान शिव का जलाभिषेक करने से निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति होती है।

जब यह जिला मुंगेर जिले से अलग होकर अस्तित्व में आया था तब तत्कालीन विधायक राजो सिंह के प्रयास से तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे जिले का दर्जा दिया। इसके साथ ही इसके सीमावर्ती इलाके बरबीघा को अनुमंडल बनाने की भी घोषणा की गई। लेकिन विभिन्न राजनीतिज्ञ कारणों से बरबीघा को अनुमंडल तो नहीं बनाया जा सका। लेकिन 31 जुलाई 1994 को ही बरबीघा के कुछ हिस्से को काटकर शेखोपुरसराय के नाम से अलग प्रखंड अवश्य ही बना दिया गया। इस जिले में मात्र 6 प्रखंड शेखपुरा, बरबीघा, अरियरी, चेवाड़ा, घाट कोसुम्भा एवं शेखोपुरसराय है। जबकि अनुमंडल भी शेखपुरा अब तक सिर्फ शेखपुरा ही है। इस जिले में मात्र दो ही विधानसभा क्षेत्र बरबीघा और शेखपुरा है। जबकि दोनों का लोकसभा क्षेत्र अलग-अलग है। 

शेखपुरा शहर के नामांकन के बारे में एक मान्यता यह भी है कि यहां एक महान सुफी संत ‘हजरत मखदुम शाह शोभ शेफ रहमतुल्ला अलेह’ ने शेखपुरा शहर की स्थापना की थी। शेख साहब ने पहाड़ों एवं जंगलों के हिस्से को कटवाकर शहर बसाया और खुद भी यहीं के होकर रह गए। जिससे इस शहर का नाम उनके नाम पर शेखपुरा हो गया।

अब बात इस शिव मंदिर की महत्ता की तो इसकी महत्ता को भांपकर प्रशासन ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की योजना भी बनाई जो आज तक सिरे से कारगर नहीं हो सकी। यहां मंदिर तक जाने के लिए साल 2003 में तत्कालिक डीएम आनंद किशोर के व्यक्तिगत प्रयास से 5 सौ फीट ऊंचे पहाड़ पर पीसीसी सड़क, गेस्ट हाउस, काफी हाउस, चिल्ड्रेन पार्क बनवाए गए थे जो आज उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। हालांकि इसके अलावा पहाड़ पर हाई मास्ट लाइट तथा पेयजल की भी व्यवस्था की गयी। दो साल पहले शहरी विकास योजना के तहत बड़ी राशि खर्च करके सैकड़ों साल पुरानी पत्थर की सीढ़ी को सुव्यवस्थित किया गया तथा सीढ़ी के किनारों पर रेलिंग लगायी गयी। लेकिन समय-समय पर उसकी देखरेख न होने से वे अब जर्जर सी होने लगी हैं।

हालांकि इस शहर का कोई वास्तविक इतिहास किसी भी किताब या रिकॉर्ड में दर्ज नहीं मिलता। लेकिन यहाँ के विभिन्न स्रोतों के इतिहास से एकत्रित ज्ञान के अनुसार यह शहर महाभारत की उम्र के समय की समाप्ति है।

भगवान शिव का भारत देश तथा यहां की धार्मिक मान्यताओं में सर्वोच्च स्थान है। मृत्युंजय महाकाल की आराधना का मृत्यु शैया पर पड़े व्यक्ति को बचाने में विशेष महत्व है। खासकर तब जब व्यक्ति अकाल मृत्यु का शिकार होने वाला हो। इस हेतु एक विशेष जाप से भगवान महाकाल का लक्षार्चन अभिषेक किया जाता है-

‘ॐ ह्रीं जूं सः भूर्भुवः स्वः,
ॐ त्र्यम्बकं स्यजा महे
सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्‌।
उर्व्वारूकमिव बंधनान्नमृत्योर्म्मुक्षीयमामृतात्‌
ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ’

इसी तरह सर्वव्याधि निवारण हेतु इस मंत्र का जाप किया जाता है।

“ॐ मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम
जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः।”

औढरदानी, प्रलयंकारी, दिगम्बर भगवान शिव का यह सुहाना सुसज्जित सुंदर स्वरूप देखने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। इसे ‘सेहरा’ के दर्शन कहा जाता है। अंत में श्री महाकालेश्वर से परम पुनीत प्रार्थना है कि इस शिवरात्रि में इस अखिल सृष्टि पर वे प्रसन्न होकर प्राणी मात्र का कल्याण करें –

‘कर-चरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम,
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व,
जय-जय करुणाब्धे, श्री महादेव शम्भो॥’

अर्थात् हाथों से, पैरों से, वाणी से, शरीर से, कर्म से, कर्णों से, नेत्रों से अथवा मन से भी हमने जो अपराध किए हों, वे विहित हों अथवा अविहित, उन सबको है करुणासागर महादेव शम्भो! क्षमा कीजिए, एवं आपकी जय हो, जय हो

नोट – एक विशेष बात इस मंदिर को ओर ख़ास बनाती है। वह यह कि यहां एक करीबन तीन किलो से ज्यादा वज़न वाला पत्थर भी रखा हुआ है। जो रामसेतु पुल का पत्थर है। हालांकि इस पर राम नाम लिखा हुआ तो अब नहीं दिखाई देता लेकिन यह एक छोटे से एक्वेरियम में संजो कर रखा गया है और यह पानी में तैरता हुआ नज़र आता है।

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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