‘मैं अटल हूँ’: बेहतरीन श्रद्धांजलि
जीवनीपरक फिल्मों का निर्माण अत्यंत चुनौतीपूर्ण होता है। तथ्यों की विश्वसनीयता बनाये रखने के साथ ही दर्शक के मन में स्थापित, लोकप्रिय और वास्तविक छवि को संतुष्टिजनक ढंग से प्रस्तुत कर पाना कठिन कार्य है जो अतिरिक्त सजगता और सतर्कता की माँग करता है। विशेषतः ऐसे चरित्र जो हमारे कालखंड के रहे हैं और जिनको हमने साक्षात देखा है, उनके चरित्र का निर्वाह करना दुरूह है क्योंकि उनकी एक ख़ास छवि जन-मन में बसी होती है। मुख्य चरित्र निभाने वाले कलाकार को बाहरी रूप-रंग, कद-काठी की समानता के साथ-साथ व्यक्तित्व के अन्य पहलुओं को दर्शाने के लिए काफ़ी मेहनत करनी पड़ती है, इसके बावजूद भी चरित्र के ‘लाउड’ होने का खतरा लगातार बना रहता है।
‘मैं अटल हूँ’ भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी के जीवन पर आधरित जीवनीपरक फिल्म है। रवि जाधव द्वारा निर्देशित और ऋषि मनु द्वारा लिखित यह फिल्म अन्य स्रोतों के साथ मुख्यतः मराठी लेखक सारंग दर्शने की ‘अटलजी: कविहृदयाचये राष्ट्रनेत्याची चरितकहानी’ से प्रेरित है। भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि स्वरूप बनी इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी अटल जी भूमिका में हैं।
फिल्म अटल जी के बालपन, किशोरावस्था, युवावस्था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने, भारतीय जनसंघ तदन्तर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना और भारत के प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा को सलीके से दिखलाती है। जीवनीनुमा फिल्म होने के चलते इसमें पिछली शताब्दी की प्रमुख घटनाओं का आना स्वाभाविक है – स्वाधीनता आन्दोलन, स्वाधीनता-प्राप्ति, गाँधीजी जी की हत्या, आपातकाल, जनता पार्टी की अल्पकालिक सरकार के साथ वाजपेयी जी के प्रधानमंत्रीय कार्यकाल के प्रमुख घटनाक्रम – पोखरण परमाणु परीक्षण, लाहौर बस यात्रा, मंदिर आंदोलन, कारगिल युद्ध आदि आये हैं। कुल दो घंटे सत्रह मिनट की इस फिल्म में ये सारे घटनाक्रम एक-के-बाद-एक बहुत तेजी से आते जाते हैं।
केन्द्रीय भूमिका में होने के कारण फिल्म का पूरा दारोमदार अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार निभाने वाले अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर है। वाजपेयी जी एक सशक्त राजनेता के साथ-साथ सहृदय कवि और ईमानदार इन्सान थे। उनके विराट व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को दर्शाने में पंकज त्रिपाठी ने काफ़ी मेहनत की है। अटल जी की भाषा, पहनावा, लुक और तनिक गर्दन हिलाते हुए किंचित आँखें बंद करके बोलने का अंदाज तो है ही, इससे भी आगे पंकज अटल जी के चरित्र को जीते हुए दिखते हैं। उनके राजनीतिक जीवन के साथ निजी जीवन – विशेषतः राजकुमारी कौल के साथ वाजपेयी जी के सम्बन्ध को भी बड़ी खूबसूरती और शालीनता से पंकज निभा ले गये हैं। पूर्वार्द्ध में फिल्म की गति धीमी होने के कारण वाजपेयी जी के बचपन, कॉलेज, आरएसएस से जुड़ाव आदि के दृश्यों में हम अपने-आपको पंकज त्रिपाठी में अटल जी को ढूँढते-से पाते हैं लेकिन उत्तरार्द्ध में फिल्म जैसे ही अपनी गति पकड़ती है, अटलजी का चरित्र और पंकज एकमेक हो जाते हैं। एक वोट से सरकार गिरने के समय संसद में दिये गये भाषण वाले दृश्य में पंकज का अभिनय अपने चरम पर है और अटलजी की गरिमा के साथ पूरा न्याय करता है। अन्य पात्रों में अटल जी के पिता की भूमिका में पीयूष मिश्र को देखना बहुत मज़ेदार लगा है। लालकृष्ण आडवाणी, पं. दीनदयाल उपाध्याय, श्यामाप्रसाद मुकर्जी, राजकुमारी कौल, गुरु गोलवलकर, सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम आदि का अभिनय करने वाले कलाकारों ने भी ठीक-ठाक काम किया है।
पटकथा और संवाद चुस्त हैं। कई स्थलों पर संवाद काफ़ी प्रभावशाली बन पड़े हैं। गीत-संगीत कर्णप्रिय है। दृश्यों का फिल्मांकन भी रुचिकर है। एक ख़ास बात यह कि अटल बिहारी वाजपेयी का एक पार्टी विशेष और एक विचारधारा विशेष से जुड़ाव होने के कारण इस फिल्म के प्रचारात्मक बन जाने का पूरा-पूरा खतरा था लेकिन फिल्मकार इस खतरे के बहुत पास से सफलतापूर्वक गुजर आये हैं।