झारखंड

मधुपुर उपचुनाव : सहानुभूति की जीत, सांप्रदायिकता की हार

 

झारखण्ड ने नई सरकार के डेढ़ साल के कार्यकाल में तीसरा उपचुनाव भी देख लिया। तीनों उपचुनाव में सत्ताधारी पार्टियों को जीत मिली और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। मधुपुर के उपचुनाव में टीम हेमन्त की तरफ से हफीजुल अंसारी मैदान में थे, जो दिवंगत हाजी हुसैन अंसारी के बेटे हैं और चुनाव के पहले ही झामुमो के कोटे से मन्त्री बनाये जा चुके हैं। पिता के नाम की सहानुभूति के बाद हफीजुल की जीत की दूसरी बड़ी वजह उनका मन्त्री बनाया जाना ही है।

मैदान में टीम बाबूलाल की तरफ से गंगा नारायण थे, जो पहले आजसू की टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। आजसू से चुनाव लड़ने के बाद भी हाजी हुसैन जैसे वरिष्ठ और प्रसिद्ध नेता के खिलाफ उन्होंने 45 हजार वोट लेकर सबको चौंका दिया था। जबकि भाजपा की तरफ से राजपलिवार भी मौदान में थे औऱ महज 65 हजार वोट लाकर हाजी साहब से चुनाव हार गये थे। गंगानारायण के व्यक्तिगत प्रभाव से ही प्रभावित होकर भाजपा ने उन्हें टिकट दिया, भले ही पुराने साथी और मन्त्री रह चुके राजपलिवार का टिकट काटना पड़ा। भाजपा को यह भरोसा था कि राजपलिवार को मिलने वाले 65 हजार वोट भाजपा के हैं और वे कहीं नहीं जाएंगे। दूसरी तरफ गंगानारायण को टिकट नहीं देने पर मुकाबला त्रिकोणीय होने का डर था, जिसका नुकसान भाजपा को ही होता। लेकिन राजनीति की गणित पिता से नाम के सहानुभूति के सामने फीकी पड़ गई। दोनो तरफ की जोरदार कोशिश के बीच हफीजुल ने गंगा नारायण को 5247 वोट से हरा दिया है।

मधुपुर का उपचुनाव राज्य के बाकी चुनावों से अलग नहीं रहा। इसमें भी दो खेमे थे, एक में नेता थे, दूसरे में जनता थी। जनता की जरूरतों और नेताओं के मुद्दों में जमीन और आसमान का अन्तर था। महीने भर चले चुनावी रस्साकसी में एक तरफ मरहूम पिता के नाम पर सहानुभूति के नाम पर वोट मांगे जा रहे थे और दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता का जहर बोया जा रहा था। चुनावी प्रचार के पूरे दौर में मानो मधुपुर चीखकर अपने मुद्दे बता रहा था, लेकिन चुनावी शोर में उसे कोई सुन नहीं पा रहा था।

मधुपुर के चुनाव से पहले कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत हो चुकी थी। झारखण्ड सहित सभी राज्यों में कोविड की वजह से हो रही मौतों के आंकड़े लगातार बढ़ने लगे थे। चुनावी प्रचार के आखिरी दिनों में राज्य के अस्पतालों में बेड की किल्लत भी शुरू हो चुकी थी। लेकिन किसी भी प्रत्याशी ने एक भी बार अस्पताल बनवाने, उनमें बेड बढ़वाने या फिर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कोई भी बात नहीं की। किसी ने करोना से बचाव को लेकर किसी तरह की अपील तक नहीं की। सवाल है कि सदी की सबसे बड़ी महामारी के दौर में भी अगर स्वास्थ्य का मुद्दा चुनावी मैदान में नहीं उठता है, तो फिर सरकारों और नेताओं की प्राथमिकता को लेकर गहरे सवाल खड़े होते हैं।

ऐसा नहीं है कि दरकिनार किये जाने वाले मुद्दों में सिर्फ स्वास्थ्य ही है। वे तमाम मुद्दे दरकिनार किये गये हैं, जो मधुपुर के लिए लिये जरूरी थे, ठीक वैसे ही जैसे पूरे राज्य में दरकिनार किये जाते रहे हैं। अजीब बात ये है कि विपक्षी पार्टी भाजपा ने भी उन मुद्दों को उठाना जरूरी नहीं समझा, जिसपर सरकार को आसानी से घेरा जा सकता था। रोजगार को लेकर किसी भी दूसरे राज्य से अधिक आन्दोलन झारखण्ड में हुए हैं। यहाँ तक कि सरकार से नाराज छात्रों का एक समूह भी मधुपुर में सरकार के खिलाफ प्रचार प्रसार करने पहुंचा था। लेकिन शायद भाजपा को अपने सांप्रदायिकता के दांव पर ज्यादा भरोसा था।

मधुपुर में चुनावी प्रचार प्रसार का एक दौर ऐसा भी रहा, जब भाजपा विधायक रणधीर सिंह रोड शो में कह रहे थे “जो हिन्दुओं को आँख दिखाएगा, उसका आँख निकाल लेंगे”, जबकि निशिकान्त दूबे कह रहे थे कि कोई अंसारी, कोई खान और कोई हुसैन मधुपुर पर राज नहीं करेगा। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अन्तिम दिनों के आकलन के बाद भाजपा ने मधुपुर में ध्रुवीकरण का पूरा प्रयास किया था और इसमें काफी हद तक सफल भी हुई। उसी का नतीजा है कि भाजपा को एक लाख से अधिक वोट मिले और गंगा नारायण बहुत कम वोट से हारे। जीत का मार्जिन कम होने की खीज परिणाम के बाद हफीजुल के बयानों में भी दिखी। इधर हारने के बाद गंगा ने भी प्रशासन और कुछ अज्ञात लोगों को जमकर कोसा।

ध्रुवीकरण की पराकाष्ठा बहुत ही स्वाभाविक तौर पर पाकिस्तान के नाम के साथ हुई। भाजपा के सीनियर नेता अमर बाउरी ने सार्वजनिक मंच पर यह करने से परहेज नहीं किया कि भाजपा का हारना हिन्दुस्तान का हारना है और दूसरी पार्टियों का जीतना पाकिस्तान का जीतना। उन्होंने कहा था कि अगर मधुपुर की जनता चाहती हैं कि यहाँ हिन्दुस्तान जिंदाबाद के नारे लगे, तो भाजपा को वोट दीजिए, वरना यहाँ पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगेंगे। अमर बाउरी जब यह सब कह रहे थे तो बाबूलाल मरांडी उनके पास ही बैठे थे। यहाँ तक कि बाबूलाल ने भी अपने भाषण में पाकिस्तान का जिक्र किया। उन्होंने कश्मीर, अनुच्छेद 370, पुलवामा और बालाकोट एयर सट्राइक को भी मधुपुर के चुनाव में भुनाना चाहा। जबकि दर्जनों मुद्दे थे जिसपर सरकार को घेरा जा सकता था।

दूसरी ओर हफीजुल सक्रिय राजनीति में पहली बार कदम रख रहे हैं। लेकिन उन्होंने अपने बारे में सिर्फ यही बताया कि वे हाजी साहब के बेटे हैं। जिस शहर में उनका पूरा बचपन गुजरा वहाँ के विकास के लिए कोई विजन नहीं, वहाँ की समस्याओं का समाधान तो दूर, समस्याओं का जिक्र तक नहीं किया। खुद हेमन्त भी लगातार हाजी साहब का ही नाम लेते रहे। ऐसा लग रहा था कि दिवंगत हाजी साहब ही चुनाव लड़ रहे हैं। हेमन्त खेमे से यह जरूर हुआ कि साम्प्रदायिक मसलों से ये दूर रहे और सहानुभूति का दामन थामे रहे। हफीजुल के पक्ष में बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी रैलियाँ कीं। उन्होंने भी लालू यादव, हाजी साहब और मोदी के अलावा कोई और बात नहीं की। उन्होंने मधुपुर की जनता या यहाँ की समस्याओं के बारे में एक भी बात नहीं की।

मधुपुर उपचुनाव में किसी की भी जीत से राज्य की राजनीति पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला था। इसकी बड़ी वजह है कि सत्ताधारी पार्टियों के पास बहुमत से कहीं ज्यादा सीटें हैं। लेकन यह बात जरूर है कि यह सीट हेमन्त और बाबूलाल की प्रतिष्ठा पर आ बनी थी। हेमन्त के लिए यह सीट जीतनी इसलिए जरूरी था , क्योंकि 2019 में यहाँ से जेएमएम ही जीती थी और सरकार होते हुए हारना ज्यादा बुरा होता। वहीं बाबूलाल के लिए यह सीट जीतना जरूरी था क्योंकि भाजपा में आने के बाद उनके नेतृत्व में पार्टी दो उपचुनाव हार चुकी थी। हालांकि तीसरी हार में मार्जिन बहुत कम है, लेकिन फिर भी यह सब जितना बुरा पार्टी के लिए है, उससे ज्यादा बुरा बाबूलाल मरांडी के लिए है।

मधुपुर का दंगल राज्य में मुद्दाविहीन राजनीति का सबसे ताजा तरीन उदाहरण है। नेताओं के अपने स्वार्थ के सामने जनता के मुद्दे गौण हो जाते हैं। क्योंकि राजनीतिक पार्टियों की अपनी लाइन है, जिससे इतर हटकर राजनीति करने का अबतक शायद कोई ठोस वजह उन्हें नहीं मिल सका है। सहानुभूति के नाम पर 1 लाख 10 हजार 812 वोट और ध्रुवीकरण के नाम पर 1 लाख 5 हजार 565 वोट हासिल होने पर कौन सी पार्टी अपनी समीक्षा में मुद्दों पर बात करने का मन बनाएगी? इस राजनीति का सबसे बड़ा नुकसान जनता का ही है।

.

Show More

विवेक आर्यन

लेखक पेशे से पत्रकार हैं और पत्रकारिता विभाग में अतिथि अध्यापक रहे हैं। वे वर्तमान में आदिवासी विषयों पर शोध और स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। सम्पर्क +919162455346, aryan.vivek97@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x