जम्मू-कश्मीर

महिला प्रधान है लद्दाख का समाज

 

वर्त्तमान में लद्दाख का लेह इलाका दुनिया भर की ख़बरों की सुर्खियाँ बना हुआ है। इससे पहले कोरोना महामारी की चुनौती को कारगर तरीके से निपटने के प्रयासों को लेकर भी इस क्षेत्र की काफी सराहना की गयी है। लेकिन इन सब से अलग इस क्षेत्र की जो सबसे बड़ी पहचान है, वह है यहाँ का समृद्ध और सकारात्मक विचारों वाला समाज। जहाँ महिला और पुरुष में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। जहाँ लड़कों की तरह लड़कियों को भी समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने और जीवन में आगे बढ़ने की आज़ादी होती है। कई क्षेत्रों में तो पुरुषों की तुलना में महिलाओं का दर्जा अधिक ऊँचा है। ख़ास बात यह है कि स्थानीय लद्दाखी संस्कृति और परम्परा को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुँचाने में महिलाएँ रचनात्मक भूमिका निभा रही हैं।

कोई भी संस्कृति अथवा परम्परा उस वक्त तक जिन्दा नहीं रह सकती है जब तक उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का विकल्प न हो। देश में ऐसे कई इलाके हैं जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी प्राचीन संस्कृति को जिन्दा रखने और उसे हूबहू अगली पीढ़ी तक पहुँचाने की परम्परा बरकरार है और नई पीढ़ी इसे गर्व के साथ ग्रहण भी करती है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख भी देश का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ की महिलाएँ पिछले कई दशकों से इस मन्त्र को अपनाती रही हैं और अपनी क्षमता तथा सकारात्मक ऊर्जा को अगली पीढ़ी तक पहुँचाती हैं। खास बात यह है कि उनका यह कार्य सर्दियों में सबसे अधिक होता है। यह वह समय होता है जब महिलाएँ इकठ्ठा होती हैं और अपनी प्राचीन शिक्षा, संस्कृति, परम्परा और हुनर की प्रेरणादायक कहानियों और कार्यों को अगली पीढ़ी के साथ साझा करती हैं। सच बात तो यह है कि लद्दाख की महान संस्कृति, परम्परा और विरासत के संरक्षण और नई पीढ़ी तक पहुँचाने का सेहरा वहाँ की महिलाओं को ही जाता है।महिला प्रधान है लद्दाख का समाज ...

लद्दाख की दस्तकारी और हाथों से तैयार कालीन आज भी दुनिया भर में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है और इस हुनर को जीवित रखने में लद्दाखी महिलाओं का विशेष योगदान है। सर्दी के दिनों में जब समूचा लद्दाख सफ़ेद बर्फ की चादर में लिपट जाता है और जनजीवन पूरी तरह से ठप्प हो जाती है, ऐसे समय में लद्दाखी महिलाएँ अधिकतर समय दस्तकारी करने और कालीन बनाने में गुज़ारती हैं। इन महिलाओं के लिए सर्दियों में यह न केवल वक्त गुज़ारने का सबसे अच्छा तरीका है बल्कि आमदनी का भी एक अच्छा माध्यम साबित होता है। यही वह समय भी होता है जब पूरा कुनबा एक साथ बैठ कर बड़े बुज़ुर्गों से अपनी महान संस्कृतियों से जुड़ी कहानियाँ सुनता है और घर की महिलाओं को दस्तकारी करते तथा कालीन बुनते बहुत करीब से देखता और सीखता भी है। वैसे तो इस क्षेत्र में दस्तकारी और कालीन बुनने का काम सालों भर होता है, लेकिन सर्दी के समय इसमें तेज़ी आ जाती है क्योंकि परिवारों के पास इसके अतिरिक्त और कोई काम नहीं होता है।

यूँ तो बहुत से लोग बचपन से ही पारम्परिक हुनर सीखना शुरू कर देते हैं, लेकिन बरसों की मेहनत और प्रयासों के बाद ही वह इस कला में पारंगत हो पाते हैं। इस सम्बन्ध में एक बुज़ुर्ग बताती हैं कि जब उन्होंने पहली बार पारम्परिक बुनाई का काम शुरू किया तो वह अक्सर इसमें नाकाम हो जाती थीं। दस्तकारी में वह निपुणता नहीं आ पाती थी जो उनके परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा आसानी से बना लिया जाता था। इसके बाद वह ख़ामोशी से कई दिनों तक अपने बड़े बुज़ुर्गों द्वारा किये जा रहे कामों को देखती रहीं। बुनाई में प्रयोग किये जाने वाले औज़ारों को चलाने के तरीकों को बारीकियों से सीखना शुरू किया। जिसके बाद धीरे धीरे उन्होंने इस कला में महारत हासिल कर ली। वर्त्तमान में वह किसी भी मौसम में सभी प्रकार की कालीन को बनाने में सक्षम हैं।विशेष : महिला प्रधान है लद्दाख का ...

मथांग गाँव की 35 वर्षीय महिला स्पॉलजर एँगमों स्थानीय ऑरियंटल क्राफ्ट इंटरप्राइजेज की सदस्या हैं। एँगमों बताती हैं कि लद्दाखी महिलाएँ अपने रोज़मर्रा के कामकाज से कुछ समय निकाल कर ऐसे काम करती हैं जो उन्हें जुनून की हद तक पसंद होती है। बुनाई और कढ़ाई पैसे कमाने में न केवल मददगार साबित होते हैं बल्कि उन्हें सशक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सर्दियों के मौसम में चूँकि पूरा क्षेत्र बर्फ से ढंक जाता है ऐसे में खेती अथवा दूसरे कोई काम नहीं हो सकते हैं। इस खाली समय का लद्दाखी महिलाएँ भरपूर इस्तेमाल करते हुए एक साथ बैठ कर दस्तकारी और कालीन बुनने का काम करती हैं। इन तैयार कालीनों को गर्मी के मौसम में लद्दाख आने वाले सैलानियों को बेचा जाता है।

दस्तकारी और कालीन बुनने के अलावा लद्दाखी महिलाएँ खेलकूद में भी अपने हुनर का प्रदर्शन करती हैं। लद्दाख में आइस हॉकी काफी प्रसिद्ध है। इस खेल को देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी आते हैं। लद्दाख की युवा लड़कियाँ भी बड़ी संख्या में इस खेल में भाग लेती हैं। लद्दाख वुमेन आइस हॉकी की संस्थापक स्काल्ज़ पुतित के अनुसार लद्दाखी लड़कियों के बीच आइस हॉकी काफी प्रसिद्ध है। सर्दियों के मौसम में बड़ी संख्या में लद्दाख के दूर दराज़ के गाँवों से लड़कियाँ इसकी ट्रेनिंग लेने आती हैं। इस खेल में अच्छा प्रदर्शन करने वाली कई लड़कियाँ स्कॉलरशिप तक पा चुकी हैं।

लद्दाखी महिलाएँ केवल अपने कामों में ही व्यस्त रहकर समय नहीं गुज़ारती हैं बल्कि इस बात का भी ख्याल रखती हैं कि उनका पारम्परिक हुनर अगली पीढ़ी तक भी पहुँचता रहे। अपने बुज़ुर्गों से सीखे हुए पारम्परिक हुनर को न केवल सहेजती हैं बल्कि अपनी अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में सेतु का काम भी करती हैं। वर्षों पुरानी लद्दाखी परम्परा, रीति रिवाज और हुनर को सहेजने और अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए लद्दाखी समाज सदैव इनका ऋणी रहेगा।

(यह लेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2019 के अन्तर्गत लिखा गया है)

थिनले नोरबू

लेह, लद्दाख

 

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