गुपकार गठजोड़ से मोदी सरकार की बातचीत
गुपकार गठजोड़ से मोदी सरकार की बातचीत से होगी कश्मीर में आतंकवाद एवं अलगाववाद की समाप्ति और शांति एवं लोकतन्त्र की बहाली!
भारत सरकार ने 24 जून को केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ महत्वपूर्ण बैठक की है। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी इस बैठक की अध्यक्षता की और गृहमंत्री अमित शाह के अलावा अन्य कई वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा इस बैठक में उपस्थित रहे। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के 14 प्रमुख राजनेताओं को इस बैठक के लिए औपचारिक रूप से आमंत्रित किया था।
इनमें चार पूर्व मुख्यमंत्री- फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला (नैशनल कॉन्फ्रेंस), गुलाम नबी आज़ाद (कांग्रेस) और महबूबा मुफ़्ती (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी); चार पूर्व उपमुख्यमंत्री- मुजफ्फर हुसैन बेग, डॉ. निर्मल सिंह, कवीन्द्र गुप्ता और ताराचंद के अलावा अल्ताफ बुखारी (जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी), सज्जाद लोन (जम्मू कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस), एम वाई तारिगामी (माकपा), रविन्द्र रैना (भाजपा), जी ए मीर (कांग्रेस) और प्रो. भीम सिंह (पैंथर्स पार्टी) शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार द्वारा लिए गये ऐतिहासिक निर्णय के परिणामस्वरूप अनुच्छेद 370 और 35 ए की समाप्ति की गयी थी। उसके बाद 31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो केन्द्रशासित प्रदेश बना दिये गये थे। इस महत्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन के बाद कश्मीर केन्द्रित 6 दलों ने केंद्र सरकार के इस निर्णय के विरोध में पीपुल्स एलाइंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन का गठन किया था।
इस अवसरवादी और अपवित्र गठजोड़ को राजनीतिक गलियारों में गुपकार गैंग की संज्ञा दी गयी। महबूबा मुफ़्ती ने पूर्व-स्थिति की बहाली तक भारत का राष्ट्रध्वज न फहराने और फारुख अब्दुल्ला ने इस काम के लिए चीन और पाकिस्तान की मदद लेने जैसी बचकानी और राष्ट्रविरोधी बातें भी कही थीं। उनके इन बातों की देशभर में भर्त्सना हुई और उन्हें अपने बयान वापस लेकर सफाई देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
उपरोक्त घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार की पहल पर यह पहला व्यापक संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ है। सम्पर्क और संवाद लोकतन्त्र की प्राणऊर्जा है। निश्चय ही, इस बातचीत से जम्मू-कश्मीर में सक्रिय राजनीतिक दलों और केंद्र सरकार के बीच आपसी विश्वास बहाल होगा। राज्य के नागरिकों के बेहतर भविष्य के लिए आपसी विश्वास, संवाद और सौहार्द आवश्यक है। यह बैठक ‘नये कश्मीर’ के निर्माण का प्रवेश-द्वार है।
इस बैठक का घोषित एजेंडा जम्मू-कश्मीर के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर परिचर्चा था। हालाँकि, इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के भविष्य को लेकर बनायी गयी विस्तृत रूपरेखा पर भी विचार-विमर्श हुआ है। अच्छी बात यह है कि बैठक में शामिल सभी लोगों ने भारतीय संविधान में अपनी आस्था व्यक्त की और उसी के दायरे में आगे बढ़ने पर सहमति व्यक्त की। यह बैठक जम्मू-कश्मीर में विकास योजनाओं के कार्यान्वयन, राजनीतिक–प्रक्रिया शुरू करने और उसके पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली में मील का पत्थर साबित होगी। इसके लिए परिसीमन प्रक्रिया को पूर्ण करने के अलावा यथाशीघ्र विधानसभा चुनाव कराने पर भी बातचीत की गयी।
फरवरी 2020 में केंद्र सरकार ने जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन कर दिया था। लेकिन गुपकार गठजोड़ के सदस्य दल इस प्रक्रिया में भागीदारी नहीं कर रहे थे। पिछले दिनों नैशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने रुख में बदलाव करते हुए परिसीमन प्रक्रिया में भागीदारी का स्वागतयोग्य निर्णय लिया है। उम्मीद की जा सकती है कि इस बैठक के बाद अन्य दल भी इस प्रकिया में शामिल होकर इसे सर्वस्वीकृत एवं औचित्यपूर्ण बनाने और यथाशीघ्र पूरा करने में सहयोग करेंगे।
जम्मू-कश्मीर की विधान-सभा में कुल 111 सीटें थीं। जिनमें से 87 सीटें जम्मू-कश्मीर प्रदेश (जम्मू-37, कश्मीर-46, लदाख-4) के लिए और 24 सीटें पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के लिए थीं। नये परिसीमन के बाद लद्दाख की 4 सीटें कम होने और जम्मू क्षेत्र की 7 सीटें बढ़ने के बाद केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की विधान सभा में 90 सीटें हो जायेंगी। पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर की 24 सीटें यथावत रहेंगी। इससे लम्बे समय से भेदभाव के शिकार जम्मू क्षेत्र के साथ न्याय हो सकेगा और अभी तक कश्मीर केन्द्रित रही जम्मू-कश्मीर की राजनीति कुछ हद तक संतुलित हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि पण्डित प्रेमनाथ डोगरा और प्रजा परिषद ने जम्मू क्षेत्र की उपेक्षा और भेदभाव का विरोध करते हुए उसके साथ बराबरी और न्याय सुनिश्चित करने के लिए लम्बा संघर्ष किया था। संभवतः परिसीमन आयोग उनके संघर्ष को निष्फल नहीं जाने देगा।
इस बैठक में विधानसभा चुनाव कराने के साथ ही उसके पूर्ण राज्य के दर्जे की बहाली पर भी चर्चा हुई। पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर की विधान परिषद् भी बहाल हो जाएगी। पिछले दिनों मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया में जम्मू-कश्मीर के विभाजन की खबरें दिखायी दी थीं। इन खबरों में जम्मू को एक पृथक पूर्ण राज्य और कश्मीर को एक या दो केन्द्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने की बात की गयी थी। लेकिन इन ख़बरों में कोई दम नज़र नहीं आता है।
ऐसा करने से जम्मू-कश्मीर समस्या और उलझ जायेगी। इससे कश्मीर में चीन और पाकिस्तान जैसे ईर्ष्यालु पड़ोसियों के काले कारनामे और बढ़ जायेंगे। पाकिस्तान जब भी कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिश करता है, उसमें जम्मू क्षेत्र बहुत बड़ी रुकावट बनता है। इसीप्रकार उसके द्वारा छोड़े जाने वाले जनमत-संग्रह के शगूफे की काट भी जम्मू क्षेत्र ही है। आतंकवाद और अलगाववाद को भी जम्मू क्षेत्र ही काउंटरबैलेंस करता है। जम्मू को अलग राज्य बनाये जाने के बाद पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर पर भी भारत का दावा और पकड़ कमजोर होगी। इसलिए जम्मू-कश्मीर के विभाजन का विचार ख्याली पुलाव से अधिक नहीं है।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जम्मू-कश्मीर रियासत के महाराजा हरिसिंह ने अपनी पूरी रियासत का अधिमिलन भारतीय अधिराज्य में किया था। पीओजेके भी जम्मू-कश्मीर रियासत का ही हिस्सा रहा है। अतः उसपर भारत का स्वाभाविक हक है। इसलिए पीओजेके को जम्मू-कश्मीर से अलग होने देने की जो ऐतिहासिक ग़लती की गयी थी; उसका दुहराव कश्मीर को जम्मू से अलग करके नहीं करना चाहिए। बल्कि केंद्र सरकार को पीओजेके की प्राप्ति और उसके भारत में एकीकरण पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। केन्द्रशासित प्रदेश में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया और शांति की बहाली के बाद इस दिशा में काम करने की जरूरत है।
वस्तुतः यह बैठक कश्मीर समस्या के समाधान की दिशा में उठाया गया एक और निर्णायक कदम है। आतंकवाद की समाप्ति, लोकतान्त्रिक प्रक्रिया की बहाली, तमाम विकास योजनाओं के जमीनी कार्यान्वयन द्वारा जनता का विश्वास जीतकर ही जम्मू-कश्मीर में शांति, विकास और बदलाव सुनिश्चित किया जा सकता है। यह शांति और विकास ही जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय का आधार है। इसी से कश्मीर घाटी के विस्थापित हिंदुओं की घरवापसी का रास्ता भी खुलेगा।
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यथाशीघ्र ऐसा करके ही पीओजेके की प्राप्ति की ओर भी ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है। केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में निर्धारित 24 सीटों के साथ-साथ एक राज्यसभा सदस्य पीओजेके से नामित करने के प्रस्ताव पर भी विचार करना चाहिए। समयांतराल में इससे पीओजेके पर भारत का दावा और मजबूत होगा।
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली का काम पिछले साल के अंत में जिला विकास परिषद चुनावों के सफल और शांतिपूर्ण आयोजन के साथ ही शुरू हो गया था। केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर महीने में पंचायती राज से सम्बन्धित 73 वें संविधान संशोधन को जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह लागू कर दिया था। राज्य में यह कानून पिछले 28 वर्ष से लंबित था। पहले गुपकार गठजोड़ इस चुनाव का बहिष्कार करना चाहता था; लेकिन जनता का मन और माहौल देखकर उसने गठबंधन बनाकर यह चुनाव लड़ा।
इस चुनाव में भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभार ने उसे जोरदार झटका दे दिया। इसीप्रकार रोशनी एक्ट के अंधेरों के उजागर होने से भी यह गठजोड़ तितर-बितर और निष्क्रिय-सा हो गया है। इसके नेता अपने विभाजनकारी और स्वयतत्तावादी एजेंडे को जनसमर्थन न मिलने से निराश और हताश हैं। ये नेता अपने अस्तित्व-संकट से जूझ रहे हैं। पी डी पी जैसे दलों में टूट-फूट जारी है। घाटी में आतंकवाद और अलगाववाद वेंटिलेटर पर हैं।
इस पृष्ठभूमि में उनके पास इस बैठक में शामिल होने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। अगर वे बैठक में शामिल होकर सकारात्मक रुख का परिचय नहीं देते तो अलग-थलग पड़ जाते और क्रमशः अप्रासंगिक हो जाते। ऐसे भी जिला विकास परिषद चुनाव के बाद नेताओं की नयी पौध तैयार हो गयी है। पिछले दिनों केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की नयी अधिवास नीति, मीडिया नीति, भूमि स्वामित्व नीति, भाषा नीति और औद्योगिक नीति में बदलाव करते हुए शेष भारत से उसकी दूरी और अलगाव को खत्म किया गया है।
इस पृष्ठभूमि में गुपकार गठजोड़ को यह जानने-समझने की जरूरत है कि अलगाववादी एजेंडे को पीछे छोड़कर ही आगे बढ़ा जा सकता है। यही जम्मू-कश्मीर और भारत के साथ-साथ उनके लिए भी हितकर है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दल महत्वपूर्ण स्टेकहोल्डर होते हैं। जम्मू-कश्मीर के प्रमुख राजनीतिक दलों को बातचीत के लिए आमंत्रित करके केंद्र सरकार ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था और प्रक्रियाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का परिचय दिया है। यह बैठक जम्मू-कश्मीर में स्थायित्व और शांति बहाली की ठोस पहल है। इससे पाकिस्तान द्वारा किये जाने वाले दुष्प्रचार को कुंद करके अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी सकारात्मक संदेश दिया जा सकेगा।