जम्मू-कश्मीर

भारत की एकता और अखण्डता का हो उद्घोष!

 

26 अक्टूबर, 2022 को जम्मू-कश्मीर रियासत के भारतीय अधिराज्य में अधिमिलन के 75 वर्ष पूरे हो गये हैं। उल्लेखनीय है कि तत्कालीन जम्मू-कश्मीर रियासत के भारतीय संघ में अधिमिलन के सम्बन्ध में तथाकथित इतिहासकारों और लेफ्ट-लिबरल बुद्धिजीवियों द्वारा तथ्यों और ऐतिहासिक घटनाओं को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता रहा है। इसी साजिश का परिणाम है कि भारत का सिरमौर जम्मू-कश्मीर भारतवासियों का सिरदर्द बन गया। अधिमिलन दिवस की 75 वर्ष पूरे होने पर इतिहास की इन विकृतियों का पर्दाफाश करना आवश्यक है। जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में अबतक जो मैकॉले-मार्क्स पुत्रों द्वारा औपनिवेशिक और वामपंथी नैरेटिव पढ़ाया-सुनाया जाता रहा है, उसके बरक्स राष्ट्रवादी पाठ को जानना-समझना जरूरी है।

जम्मू-कश्मीर के अधिमिलन में हुई देरी और उसके दुष्परिणामों के दोष से तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी को बरी करने के लिए महाराजा हरिसिंह को कठघरे में खड़ा किया जाता रहा है। बार-बार यह बताया जाता है कि महाराजा हरिसिंह अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर को भारतीय अधिराज्य या पाकिस्तानी अधिराज्य में शामिल न करके स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने की संभावनाएं टटोल रहे थे। जबकि तथ्य यह है कि भारत स्वतन्त्रता अधिनियम-1947 में तमाम रियासतों के राजाओं-नवाबों के पास दो ही विकल्प थे- या तो वे अपनी रियासत को भारतीय अधिराज्य में शामिल कर सकते थे या फिर पाकिस्तानी अधिराज्य में शामिल हो सकते थे। अपनी रियासत को स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने जैसा कोई तीसरा विकल्प किसी भी रियासत के पास नहीं था। महाराजा हरिसिंह का भारत-प्रेम सन् 1931 में लन्दन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में जगजाहिर हो गया था। उस सम्मलेन में उन्होंने तमाम रजवाड़ों के प्रतिनिधि के तौर पर भारत की स्वतन्त्रता और एकता-अखण्डता की पुरजोर वकालत की थी। इस सम्मेलन में अंग्रेजों के विरोध में और भारत के पक्ष में दिए गए अपने राष्ट्रवादी भाषण के परिणामस्वरूप वे अंग्रेजों के निशाने पर आ गए थे। इससे पहले भी वे जम्मू-कश्मीर रियासत में किये जा रहे अनेक लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील कामों के कारण अंग्रेजों की आँख की किरकिरी बने हुए थे।

इसी तरह अधिमिलन काल के एक अन्य मिथ्या प्रवाद की सच्चाई जानना आवश्यक है। 22 अक्टूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर पर हुए आक्रमण को आजतक कबाइली हमला लिखा-पढ़ा जाता रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ पाकिस्तानी सेना द्वारा कबाइलियों के वेश में अंजाम दिया गया था। पाकिस्तानी और अंग्रेज जान-समझ रहे थे कि महाराजा हरिसिंह अपनी रियासत को हर-हाल में भारत में ही शामिल करेंगे। वे ऐसा होने से पहले ही उसे छीन लेना चाहते थे। जम्मू-कश्मीर के जल-स्रोतों, प्राकृतिक संसाधनों और भू-रणनीतिक स्थिति पर पाकिस्तान की नज़र गढ़ी हुई थी। इसीप्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शीतयुद्ध की छाया में पनपी ‘द ग्रेट गेम’ की राजनीति के तहत अमेरिका और ब्रिटेन भारत को एक सशक्त राष्ट्र के रूप में नहीं उभरने देना चाहते थे। इसलिए वे किसी भी तरह पाकिस्तान को मजबूत करते हुए उसे भारत के सामने खड़ा करना चाहते थे। पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन मेजर जनरल अकबर खान ने अपनी पुस्तक ’रेडर्स इन कश्मीर’ में और हुमायूँ मिर्जा ने अपनी पुस्तक ‘फ्रॉम प्लासी टू पाकिस्तान’ में इसका खुलासा किया है।

अकबर खान ने लिखा है कि तत्कालीन भारतीय नेतृत्व द्वारा जम्मू-कश्मीर के भारत में अधिमिलन में की जा रही देरी के मद्देनज़र पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली सहित शीर्ष राजनीतिक और अंग्रेजी सैन्य नेतृत्व ने अगस्त-सितम्बर माह में ही उसे सैन्य-शक्ति द्वारा जम्मू-कश्मीर को हड़पने की रणनीति बनाने का काम सौंप दिया था।  इस योजना को उसने अपने साथियों लेफ्टिनेंट कर्नल मसूद, ज़मान कियानी, खुर्शीद अनवर और एयर कमोडोर जंजुआ के साथ मिलकर सर्दियाँ शुरू होते ही 22 अक्टूबर,1947 को अमलीजामा पहनाया। दरअसल, नेहरू जी अपने मित्र शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर की बागडोर सौंपने के लिए महाराजा हरिसिंह पर दबाव बनाने के कारण अधिमिलन में देरी कर रहे थे। यह वही शेख अब्दुल्ला था जो सन् 1931 से ही जम्मू-कश्मीर में साम्प्रदायिकता का बीज बोकर प्रजावत्सल और प्रगतिशील महाराजा हरिसिंह के ख़िलाफ़ मुहिम चला रहा था। वह खुद वजीरेआजम बनने के ख्वाब देख रहा था। उसकी क्रमशः बढ़ती इस्लामपरस्ती और पाकिस्तानपरस्ती के कारण अंततः नेहरू जी को ही अपनी ‘मित्रता और मुस्लिम तुष्टिकरण’ की नीति का परित्याग करके उसे जेल में डालना पड़ा। लेकिन तब तक अपूरणीय क्षति हो चुकी थी।

1947 के अपने आक्रमण के दौरान पाकिस्तानी सेना ने पुंछ, राजौरी, मीरपुर और मुजफ्फराबाद जैसे क्षेत्रों में क्रूरतम नरसंहार किया। इस आक्रमण में हजारों निर्दोष लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। लाखों लोगों को अपना घर-द्वार छोड़कर विस्थापित होना पड़ा। हजारों माताओं-बहनों का शीलभंग हुआ। लाखों की संख्या में घर उजड़ गये। उनके बाशिंदे दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हुए। जम्मू-कश्मीर की सरकारों ने भी प्रायः उनकी उपेक्षा की। इसलिए वे देश के अलग-अलग स्थानों पर कैम्पों में रहने को अभिशप्त हुए। उनके बच्चे अपनी घर वापसी चाहते हैं। नागरिक अधिकार, सम्मान और सुरक्षा चाहते हैं। लेकिन लम्बे समय तक उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। इस ऐतिहासिक अपराध का जिम्मेदार कौन है? जम्मू-कश्मीर के अधिमिलन में जान-बूझकर देरी क्यों की गयी?

पाकिस्तानी सेना ने आक्रमण करके भारत के लाखों वर्ग किमी भू-भाग को हड़प लिया और आजतक उसपर कब्ज़ा जमाये बैठा है। हमारे आस्था के केंद्र अनेक उपासना-स्थल और तीर्थ-स्थान आजतक पाकिस्तान के कब्जे में हैं। उसकी जिम्मेदारी किसकी है? पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर और चीन अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर के बाशिंदों के साथ आज भी भेदभाव और जुल्मोसितम हो रहे हैं। उनके पास शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी-रोज़गार जैसी आधारभूत सुविधाएँ तक नहीं हैं। वे भारत की नागरिकता की गुहार लगा रहे हैं। अधिमिलन-पत्र में उल्लिखित सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर को भारत में शामिल करने की माँग कर रहे हैं। इसलिए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। उनके इस दमन और उत्पीड़न, का जिम्मेदार कौन है? उनकी इस प्रताड़ना और पीड़ा की समाप्ति कब और कैसे होगी? अधिमिलन दिवस की 75 वीं वर्षगाँठ के अवसर पर इन प्रश्नों को पूछा जाना चाहिए और इनके उत्तर ढूंढे जाने चाहिए।

5 अगस्त, 2019 को वर्तमान केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35 ए जैसे संक्रमणकालीन और अस्थायी संवैधानिक प्रावधानों की समाप्ति करके जम्मू-कश्मीर के एकीकरण की प्रक्रिया को पूर्ण करते हुए भारत की एकता, अखण्डता और प्रभुसत्ता का उद्घोष किया। पिछले तीन साल में जम्मू-कश्मीर में अनेक सकरात्मक परिवर्तन हुए हैं। जम्मू-कश्मीर में नयी औद्योगिक नीति, प्रेस नीति, फिल्म नीति, भाषा नीति और शिक्षा नीति लागू की गयी है। त्रि-स्तरीय पंचायती राज-व्यवस्था की शुरुआत करके लोकतन्त्र का सशक्तिकरण और सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया है। विधानसभा का परिसीमन करके क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त किया गया है। आरक्षण नीति के माध्यम से वंचित वर्गों और क्षेत्रों के साथ न्याय सुनिश्चित किया गया है। 225 से अधिक नागरिक सेवाओं को ऑनलाइन करके प्रशासन को पारदर्शी और जवाबदेह बनाया गया है। आतंकवादियों और अलगाववादियों की नकेल कसी गयी है।

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे अलगाववादी और आतंकी संगठनों की हवाला फंडिंग बंद करने से जम्मू-कश्मीर एक टेररिस्ट हॉटस्पॉट की जगह टूरिस्ट हॉटस्पॉट बन रहा है। इस वर्ष रिकॉर्ड 22 लाख से अधिक पर्यटक जम्मू-कश्मीर आये हैं। पर्यटकों की आमद क्रमशः बढ़ रही है। 2019 से पहले के लगभग 70 वर्ष में जम्मू-कश्मीर में कुल 15 हजार करोड़ का निजी निवेश हुआ, जबकि उसके बाद के तीन साल में 56 हजार करोड़ का निजी निवेश हुआ है। आज स्थानीय नौजवानों के हाथ में पत्थर और बंदूक की जगह किताब-कलम, मोबाइल और लैपटॉप हैं। आतंकियों और उनके आकाओं की कमर तोड़ी जा जा रही है। उनके सहयोगियों की पहचान करके उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जा रहा है और भारतीय दंड संहिता के तहत सख्त कार्रवाई की जा रही है।

एंटी करप्शन ब्यूरो और कैग जैसी संस्थाएं भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रही हैं। इससे गुपकार गैंग और आतंकी बौखलाए हुए हैं। इसलिए वे उलजलूल बयानबाजी कर रहे हैं। निर्दोष और निरीह नागरिकों की टारगेट किलिंग कर रहे हैं। यह दीये के बुझने से पहले की फड़फड़ाहट है। स्थानीय समाज भी उनकी इन कायराना हरकतों के खिलाफ सुरक्षा बलों के साथ खड़ा हो रहा है। पिछले दिनों पूर्णकृष्ण भट्ट की हत्या के खिलाफ कैंडल मार्च और शांति रैलियां निकाली गयीं, तिरंगा लहराकर हिन्दुस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये गए। यही नहीं पिछले तीन दशक से आतंकी और अलगाववादी गतिविधियों के केंद्र रहे श्रीनगर के राजबाग स्थित हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कार्यालय का होर्डिंग तोड़ डाला गया और उसके गेट को पोतकर उसपर सफ़ेद रंग से ‘इण्डिया, इण्डिया’ लिख दिया गया। दीवार पर ‘आखिर कब तक?’ का बैनर लगाया गया। यह कश्मीर में हो रहे बदलाव की बानगी है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का बेसुरा राग छेड़कर स्वयं आतंक और अशांति के हिमायती के रूप में बेनकाब हो रहा है। 

जम्मू-कश्मीर

अभी 22 फरवरी, 1994 को भारत की संसद में सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव को पूरा किया जाना शेष है। इस प्रस्ताव के अनुसार सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर राज्य (अधिमिलन-पत्र में उल्लेखित) भारतीय संघ का अविभाज्य अंग था, है और रहेगा। यही भारतीय जनमानस की सामूहिक और संगठित आकांक्षा है। इस प्रस्ताव को फलीभूत करने के लिए भारतवासियों को अपने साहस, संगठन और संकल्प का सामूहिक शंखनाद करना होगा

.

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।
Show More

रसाल सिंह

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। सम्पर्क- +918800886847, rasal_singh@yahoo.co.in
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x