भारत-योरोप आर्थिक गलियारा: समृद्धि की ओर एक नई राह
भारत वर्तमान में विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था है। भारत से अग्रणी देश हैं- अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी। ऐसा माना जा रहा है कि यदि भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था के विकास के मौजूदा दर को बनाए रखा तो 2030 तक यह देश जर्मनी और जापान को पछाड़ते हुए विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। आकलन के अनुसार अभी भारत का सकल घरेलू उत्पाद 3,730 अरब अमरीकी डॉलर के बराबर है जो 2030 तक 1,300 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
अर्थव्यवस्था के निरंतर विकास की गति को बनाए रखने के लिए किसी भी प्रभावी रणनीति का अत्यंत आवश्यक अवयव है निर्यात को निरंतर प्रोत्साहित करते रहना। इसके लिए यह जरूरी है कि भारत से निर्यात किए जाने वाले माल को तीव्र गति से और कम से कम कीमत पर दूसरे देशों तक, सुरक्षित ढंग से पहुँचाया जाए ताकि हम अपने प्रतिद्वंदी देशों से आगे रह पाएँ।
पिछले सितम्बर 2023 में संपन्न जी 20 देशों के सम्मेलन में इस दिशा में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया गया। यह था भारत से मध्यपूर्व के रास्ते योरोपीय देशों तक एक आर्थिक गलियारे का निर्माण। इस गलियारे के निर्माण के सिलसिले में हुए समझौते पर 10 सितम्बर 2023 को भारत, अमरीका संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब, फ्रांस, जर्मनी, इटली, और योरोपीय संघ ने हस्ताक्षर किए।
इस योजना के अनुसार भारत से निर्यात होने वाले माल को भारतीय बंदरगाहों पर बड़े बड़े कंटेनरों में भर कर सील कर दिया जाएगा और ये सीलबंद कंटेनर समुद्री मार्ग से चल कर संयुक्त अरब अमीरात के फुजैराह बन्दरगाह पहुँच जाएंगे। यहाँ से इन सीलबंद कंटेनरों की रेलयात्रा शुरु होगी और इजरायल के हाइफ़ा बंदरगाह तक चलेगी।
फुजैराह से हाइफा तक के रेल मार्ग का अधिकांश हिस्सा बना बनाया है। अगर हम इसे थोड़ा विस्तार से फुजैराह से सउदी अरब की सीमा पर समझें तो स्थित ग़वीफ़ात शहर तक 605 किलोमीटर का रेल रास्ता मज़े में काम कर रहा है। गवीफ़ात से सउदी अरब के नगर हराद के बीच के 250 किलोमीटर मार्ग पर रेल की पटरी बिछाने का काम चल रहा है। अरब हराद से अल हदीता, जो सउदी अरब और जॉर्डन की सीमा पर स्थित है, के बीच 1392 किलोमीटर लंबी रेल लाइन भी काम कर रही है। अब केवल अल हदीता से इज़रायल के हाइफा बंदरगाह तक की 300 किलोमीटर की दूरी बची रहती है। इसका भी अधिकांश हिस्सा बना बनाया है और शेष भाग को पूरा करने में अधिक नहीं समय लगेगा। जब बीच के छूटे हुए हिस्से निर्मित हो जाएंगे तो सीलबंद कंटेनर फुजैराह बन्दरगाह से हाइफा बन्दरगाह तक निर्बाध रूप से दौड़ेगे।
इजरायल के हाइफा बंदरगाह से सीलबंद कंटेनर समुद्र मार्ग से यूनान के पुरैयस बन्दरगाह पहुँचेंगे। यहाँ से इन्हें योरोपीय नगरों में इनके गंतव्य तक पहले से ही विकसित रेलमार्गों द्वारा भेजा जाएगा। इस पूरी व्यवस्था के चालू हो जाने के बाद मार्ग में पड़ने वाले सभी देशों को लाभ मिलेगा और पूरा इलाका समृद्ध बनेगा।
वर्तमान में भारत से निर्यात होने वाला माल स्वेज नहर से होकर योरोपीय देशों में पहुँचता है। प्रस्तावित योजना के मार्ग से माल 40 प्रतिशत अधिक तीव्र गति से अपने गंतव्य तक भी पहुँचेगा एवं खर्च कम आएगा जिससे माल की लागत में कमी आएगी। साथ ही, स्वेज नहर पर निर्भरता में भी बहुत कमी आ जाएगी। इस योजना को चीन की महत्वाकांक्षी योजना, ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ के जवाब के रूप में भी देखा जा रहा है। इसे संक्षेप में ‘बी.आर. आई.’ नाम से भी जाना जाता है। 2013 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा शुरू की गयी यह योजना अत्यंत बृहद है और इसमें 155 देश शामिल हैं। इस दैत्याकार चीनी योजना के दो अवयव हैं। पहला अवयव भू-मार्ग का है जिसके अंतर्गत चीन के विभिन्न इलाके सड़कों और रेल मार्ग के माध्यम से दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और योरोप के देशों से जुड़ेंगे। दूसरा अवयव समुद्री मार्ग का है। इसके अंतर्गत चीन के बंदरगाहों को विभिन्न एशियाई और अफ्रीकी देशों के बंदरगाहों से समुद्री मार्गो से जोड़ा जाएगा। साथ ही कई दक्षिण अमरीकी देश भी इस योजना का अंग बनेंगे। जितने देश इस योजना का हिस्सा बनने के लिए हामी भर चुके हैं वे विश्व की कुल आबादी का पचहत्तर प्रतिशत है और उनका कुल सकल घरेलू उत्पाद विश्व भर के सकल घरेलू उत्पाद का आधा है।
बी.आर.आई. का दायरा अत्यंत व्यापक है। जहाँ भारत से योरोप जाने वाला प्रस्तावित गलियारा एक रेखीय हैं वहीं बी.आर.आई’ किसी विशाल वटवृक्ष की भाँति है जिसकी अनेक शाखाएं और उप शाखाएँ हैं। बी.आर.आई योजना 2013 से ही चल रही है और ज़मीनी स्तर पर इस योजना पर काफी काम भी हुआ है। इस योजना के प्रशंसकों का मानना है कि इससे वैश्विक अर्थ व्यवस्था का तीव्र गति से विकास होगा। खासकर विकासशील देशों को इस योजना का अच्छा खासा लाभ मिलेगा। मगर इस योजना के आलोचकों का मत है कि इसके कार्यान्वयन के दौरान मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है और इसके कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों की अनदेखी की जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि योजना का मूल उद्देश्य पूरे विश्व में चीन के वर्चस्व को स्थापित करना और एक नए प्रकार के साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद को जन्म देता है। कई आलोचक यह भी कह रहे हैं कि इस योजना के बहाने से चीन विकासशील देशों को कर्ज़ के जाल में फँसा रहा है और कर्ज न चुकाने की स्थिति में उन देशों की परिसंपत्तियों को अपने अधिकार में ले ले रहा है। श्रीलंका इसका जीता जागता उदाहरण है। बी.आर.आई योजना ने श्रीलंका को कंगाली की हालत में पहुँचा दिया। इटली ने तो इस योजना को अपने देश से अलविदा ही कहने का निर्णय लिया है। भारत ने हमेशा ही इस दिशा में चीन की पेशकश को ठुकराया है।
जो भी हो, फिलहाल प्रस्तावित भारत-योरोप आर्थिक गलियारे की तुलना में चीन का बी.आर.आई काफी आगे है। इतना अवश्य है कि कालांतर में प्रस्तावित योजना भी और अधिक पल्लवित और पुष्पित हो सकती है तथा इसकी भी शाखाएँ और उपशाखाएं उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि कुछ वर्षों के उपरांत दक्षिण पूर्व एशिया के देश तो इस योजना का हिस्सा बनेंगे ही, अफ्रीकी देशों को भी इससे जोड़ा जाएगा।
इस योजना के मार्ग में रुकावटें भी आ सकती हैं। चीन अपनी कूटनीति के माध्यम से इस योजना को पटरी से उतारने की पूरी कोशिश करेगा। हमास और इज़रायल के बीच चल रहा मौजूदा संघर्ष भी इस योजना के लिए परेशानियाँ पैदा कर सकता है और चीन की भी इसमे भूमिका होगी। संयुक्त अरब अमीरात और सउदी अरब के आपसी रिश्ते भी फिलहाल बहुत मधुर नहीं हैं।
लेकिन भारत को पूरी पूरी आशा है कि इन कठिनाइयों पर अंततः विजय पा ली जाएगी। इसी आशा के साथ भारत ने इस योजना पर काम शुरू कर दिया है। इस उद्देश्य से सरकार ने 3.5 लाख करोड़ का बजट निर्धारित किया है। इस राशि का इस्तेमाल देश के पश्चिमी तटों पर स्थित बंदरगाहों को रेल मार्ग से प्रभावी ढंग से जोड़ में किया जाना है ताकि भारत के किसी भी कोने से निर्यात किए जाने वाले माल को इन बंदरगाहों तक 36 घंटों के भीतर पहुंचाया जा सके।
भारत के प्रधानमंत्री ने यह आशा व्यक्त की है कि किसी दिन यह आर्थिक गलियारा वैश्विक अर्थव्यवस्था का आधार बन जाएगा और विश्व इतिहास यह याद रखेगा कि इस गलियारे की शुरुआत भारत से हुई थी।