
‘हिट’ द फर्स्ट केस; अभी सुलझा नहीं है
हिट द फर्स्ट केस तेलुगु फिल्म का रिमेक है जिसे हिन्दी में भी तेलुगु फिल्म के निर्देशक शैलेश कोलानु ने किया है। किस तरह बिना किसी दृश्यांकन के अभिनयात्मक चेष्टाओं से परिस्थिति की भयावहता को अनुभव किया जा सकता है, ऐसे ही एक भयंकर दृश्य से ‘हिट फर्स्ट केस’ फिल्म का आरम्भ होता है एक जख्मी लड़का किसी सुष्मिता को पुकार रहा है जो बर्फ की पहाड़ियों में कहीं खो चुकी है अगले ही पल उसका चीत्कार ‘मैं यहाँ हूँ मुझे बचाओ विक्रम ’ हमें डरा देता है, जिज्ञासा जोर पकड़ने लगती है और नायक विक्रम की दर्द और बेबसी भरी आवाज़ में आप खुद को बेबस अनुभव करने लगतें हैं।
लड़की पर बिना कैमरा घुमाए चीखती आवाज़े इतना ही स्पष्ट कर पाती हैं कि जिस सुष्मिता को विक्रम खोज रहा था उसे कुछ अराजक तत्त्वों ने कैद किया हुआ है, तभी आग की लपटें और सब कुछ बेकाबू असहाय! विक्रम एक चीख के साथ अस्पताल के बिस्तर पर पसीने से लथपथ उठता है, डॉ जो मित्र भी है उसे नौकरी छोड़ने के लिए समझा रही है लेकिन वो उसकी बात को समझे बिना बाहर निकल जाता है। यहीं से सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म ‘हिट फर्स्ट केस’ का रोमांच शुरू हो जाता है।
नायक विक्रम यानी राजकुमार राव का चरित्र किसी हॉलीवुड फिल्म के पुलिसकर्मी की तरह गढ़ा गया है जिसका काला वीभत्स अतीत उसे बार बार उसे परेशान करता है और जब वह खुद को असहाय पाता है तो अपने सहयोगी पुलिसकर्मी से झगड़ बैठता है उसकी चतुराई का कोई सानी नहीं, एक खुशबु को अपने जहन में बैठाकर कातिल तक पहुंचना चाहता और पहुँच भी जाता है। जिसे अपने काम से ज्यादा कोई और प्यारा नहीं, नायिका नेहा भी नहीं जिसके साथ कई रोमांटिक दृश्य फिल्माएँ गयें है लेकिन उसके गायब होने के बाद वह बेचैन हो जाता है। कॉलेज की एक लड़की प्रीति एक अनाथालय से गोद ली हुई है अचानक गयाब हो जाती है, प्रीति का केस हाई प्रोफाइल बन जाता है होमीसाइड इंटरवेंशन टीम जो अमेरिकी फिल्मों की तरह जासूसी इन्वेस्टीगेशन टीम होती है। हॉलीवुड पुलिसवालों की तरह वह हर केस को व्यक्तिगत संवेदना के साथ जुड़कर निभाता है फिल्म के बंगले, हाईवे का दृश्यांकन भी हॉलीवुड फिल्मों के तरह है लेकिन रोमांचित करता है।
वास्तव में फ़िल्म सस्पेंस थ्रिलर है और आपको बाँधने की कोशिश में भी सफल हो रही है राजकुमार राव मिलिंद गुणाजी, दिलीप ताहिल सान्या मल्होत्रा सभी अपना बेस्ट दे रहें हैं, मूल तेलुगु फिल्म तेलंगाना परिवेश में रची गई जबकि यह राजस्थानी पृष्ठभूमि पर है सस्पेंस थ्रिलर के अतिरिक्त अगर फिल्म के कुछ बारीक पक्षों को पकड़े जो इस रोमांच में आसानी से पकड़ में नहीं आते तो कई संवादों को बहुत सावधानी से निर्मित किया गया है, जैसे किडनैपिंग के केस में विक्रांत कहता है ‘मैंने गलती से ड्रग डीलर को पकड़ लिया … फोन के पीछे क्या कहा गया उसका अंदाजा अगले संवाद से लगा सकते हैं –‘कहा न गलती से पकड़ लिया … तुमको अरेस्ट करने में इंटरेस्ट नहीं है तो छोड़ देता हूं इसको।और वह ड्रग डीलर बाद में खुला ही दिखाई देता है यानी उसे अरेस्ट नहीं किया गया था स्पष्ट है इस तरह नशे के धंधों में अक्सर पुलिस की जानकारी में होती हैं लेकिन यहाँ कि संकेत भर देना ही फिल्मकार का उद्देश्य है क्योंकि सीधे-सीधे सच्चाई दिखाना आज के परवेश में खतरे से खाली नहीं।
फिल्म बढ़ने के साथ साथ राजस्थान में होने वाले बढ़ते क्राइम धीरे धीरे नजर आने लगते है, फ़िल्म के परिवेश को उभारने के लिए जयपुर के हवामहल की एक झलक दिखाई देती है, राजस्थानी संवादों का प्रयोग है तो केमिस्ट्री ‘नाईट क्लब’ भी है। विदेशियों के लिए राजस्थान भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, फरवरी 2022 की एक खबर की माने तो जयपुर में दर्जनों नाईट क्लब हैं जहाँ मुंबई, दिल्ली की डांस बार बालाओं को पकड़ा गया है हुक्के शराब और अन्य नशे के साथ इन्हें पकड़ा गया, फ़िल्म में एक स्टूडेंट प्रीति जो गायब है उसके आधुनिक कपड़ों से उसका एक सर परेशान है चंद्रशेखर सर के साथ थोड़ी टेंशन चल रही थी ‘मैं मेरी आंखों के सामने अच्छे स्टूडेंट को बिगड़ते नहीं देख सकता कैसे-कैसे कपड़े पहनने लगी थी वह छोटी स्कर्ट जींस शॉर्ट स्किन टाइट जींस छोटे टॉप 4- 4 इंच की कमर दिखती है’ तब वह कहता कि ‘वह उस गंजेड़ी अजय के साथ रहने लगी है’ यानी हमारे बुजुर्गों को संस्कृति की खराबी लड़कियों के कपड़ों में ही दिखती है नेता, अभिनेता और अमीरों के लड़कों के नशे में नहीं ,अजय के नशे से उसे कोई शिकायत नहीं, लेकिन फ़िल्म ड्रग एंगल को एलजीबीटीक्यू के एंगल से जोड़कर पूरे परिदृश्य को एक झटके में विस्मृत कर देती है।
दूसरे, एक बड़ी उम्र की तलाकशुदा लड़की का कॉलेज गोइंग गर्ल से इतना प्रगाढ़ सम्बन्ध भी संदेहास्पद है जबकि उसका मार्मिक संवाद तलाकशुदा महिलाओं के प्रति सामाजिक चोट पर प्रहार करता है कि ‘मैं तलाकशुदा हूं और आपसे अब नहीं समझ सकते तलाकशुदा होना कितना बड़ा स्टिग्मा है’ यानी कलंक। तलाक की वजह कोई भी हो कलंक स्त्री ही झेलती है इसी सन्दर्भ में एक और संवाद माताओं की ममतामयी मूर्ति को भी खंडित करती हैं ‘एक मां अपने बच्चे की झूठी कसम नहीं खा सकती… हमारे जेलों में ऐसी बहुत सी माएँ हैं जिन्होंने अपने बच्चों का कत्ल किया है इसलिए यह फिल्मी डायलॉग मत मारो’। एक माँ भी पहले वह एक इंसान है’ विक्रम का जूनियर कहता है कि ‘विक्रम बहुत फैअर आदमी है वह क्रिमिनल में डिफरेंटशिएट नहीं करता तुम्हें भी क्रिमिनल वही ट्रीटमेंट मिलेगा जो किसी को भी मिलना चाहिए’।
नायिका कहती है ‘औरत से काम लेने में आर्डर लेने में तकलीफ होती है तो घर जाओ यहां काम का आदमी चाहिए नाम का नहीं’ यह स्त्री की बदलती कामकाजी भूमिकाओं को फोकस में लाने का प्रयास है इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो में उच्च पद पर तथा अन्य क्षेत्रों में भी लड़कियों को इस तरह की मानसिकता का सामना करना पड़ता है। तथा महत्त्वपूर्ण पात्र पुलिस इंस्पेक्टर इब्राहिम जिसने प्रीति से आखरी संवाद किया था मुसलमान है उसका संवाद ‘भरोसा करके तो देखो साहब’ सरफ़रोश का इंस्पेक्टर याद आता है जो धर्म विशेष के कारण संदेह के घेरे में है।
यदि सस्पेंस को क्रेक करने के शौक़ीन हैं तो भी यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है बारी बारी से सभी चरित्रों पर शक होता है आपका अंदाजा हर बार गलत साबित होता है तो आपकी जियासा और रोमांच बढ़ता है लेकिन अंत में दर्शकों को निराशा ही हाथ लगती है, यहाँ एलजीबीटीक्यू एंगल फ़िल्म का मज़ा किरकिरा कर देता है जो एकदम बनावटी है। टी सीरीज़ से जुडी होने पर भी संगीत लोकप्रिय नहीं हो पाया क्योंकि कर्णप्रिय नहीं है फ़िल्म कई प्रश्न छोड़ जाती है सुष्मिता की कहानी जो नायिका को अभी तक नहीं पता हिट सेकंड केस में पता चलेगी बाकी सवाल भी फिल्म के सीक्वल की भूमिका के लिए रखे गए हैं ताकि आप दूसरा भाग भी देंखे।