“गंगा” नाम सुनते ही मन श्रद्धा से झुक जाता है. गंगा केवल एक नदी नहीं, भारतीय अस्मिता का अभिन्न अंग है. लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसकी अविरल, निर्मल धारा अब न केवल बाधित होती जा रही है, इसका जल भी दूषित होता जा रहा है. जगह जगह बाँध बनाकर नदी को मानो जान-बूझकर उजाड़ा जा रहा है. चुनाव के आते ही इस गंगा की दुहाई देने वाले, “माँ गंगा ने मुझे बुलाया है” का उद्घोष करने वाले तो चुनाव जीतने के बाद इस माँ को भूल गए, लेकिन एक 86 वर्ष का संत, संत सानंद, नहीं भूला.
कोई ऐसा वैसा संत नहीं. यह संत कभी IIT कानपूर में सिविल और एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और अध्यक्ष थे. पर्यावरण के प्रति समर्पित यह संत आज 110 दिन के उपवास के बाद जल भी त्याग रहे हैं. किसलिए? केवल गंगा की अविरल और निर्मल धारा के लिए. ताकि कभी जल से भरपूर, कभी न सूखने वाली गंगा पर आज जहां देखो बाँध बना दिए गए हैं. और तो और अब इस नदी में 9 महीने ही पानी रह जाता है. और वो भी दूषित!
सरकार आंकड़े गिनाती है, कई हज़ार करोड़ की स्कीम सुनाती है, लेकिन सब व्यर्थ. क्या हम इस संत की आवाज़ बनेंगे? गंगा केवल एक नदी नहीं, हमारी सभ्यता की प्राणदायिनी है. क्या हम माँ के दर्द को समझेंगे?
#Fight4Ganga
योगेंद्र यादव
लेखक स्वराज अभियान के संयोजक हैं.
यह लेख योगेंद्र यादव के फेसबुक पेज से साभार लिया गया है.

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