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बाल मन के प्यारे : चाचा नेहरू

 

14 नवम्बर 1889 को प्रयागराज (इलाहाबाद) उत्तर प्रदेश में जन्मे पंडित जवाहरलाल नेहरू का बाल जीवन तीन बहनों के बीच इकलौता भाई के रूप में बहुत ही संपन्न लाड-प्यार व खुशनुमा माहौल में बीता। उस समय देश पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन चल रहा था। लेकिन उनके पिताजी मोतीलाल नेहरू प्रसिद्ध भारतीय वकील थे। जिन्होंने पंडित नेहरू को प्राथमिक शिक्षा हैरों से तथा उच्च शिक्षा के लिए विदेश ट्रिनिटी कॉलेज लंदन से कानून की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से कानून शास्त्र में शिक्षा हासिल किया। वहीं इंग्लैंड में तकरीबन सात सालों तक रह कर फेबियन समाजवाद एवं आयरिश राष्ट्रवाद पर गहन अध्ययन भी किया। विदेश से उच्च डिग्री हासिल करने के बाद भी उनका मन स्वदेश में लौटकर देश सेवा करने में लगने लगा। इस कारण उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा 26 जनवरी 1930 को लाहौर में स्वतन्त्र भारत का ध्वज फहराया तथा भारत देश को स्वतन्त्र कराने की प्रतिज्ञा ली। अंततः 15 अगस्त 1947 मध्य रात्रि को देश आजाद हुआ तब वह स्वतन्त्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री के रूप में शपथ लिए।

प्रकृतिवादी व रचनाशीलता

पंडित जवाहरलाल नेहरू को उनके अन्दर की देश सेवा की भावना ने उन्हें लोकप्रिय प्रधानमन्त्री की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। जब वह प्रधानमन्त्री पद पर रहे तभी उनकी रचनाशीलता ने न केवल उनके अन्दर विनम्रता के भाव को बरकरार बनाए रखा बल्कि वह पशु-पक्षियों को भी प्रेम करते थे। उनके जीवनी का अध्ययन करने के दौरान उनके अन्दर की प्रकृतिवादी होने का विवरण भी मिल ही जाता है, उन्हें पहाड़ और नदियों से भी उतना ही लगाव था तभी तो उन्होंने देश के प्रधानमन्त्री रहते हुए प्रथम बहुउद्देशीय नदी दामोदर घाटी परियोजना की आधारशिला रखते हुए, बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना को ‘आधुनिक भारत का मंदिर’ कहा था।

बच्चों के प्रति निर्देशक की भूमिका

वैसे तो दुनिया भर में 20 नवम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से बच्चों के बीच एकजुटता, शांति और जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए ‘अन्तरराष्ट्रीय बाल दिवस’ मनाया जाता है। जबकि देश में 1964 में नेहरू के निधन के बाद उनके जन्मदिन 14 नवम्बर को ‘राष्ट्रीय बाल दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। वह बच्चों की शिक्षा के प्रबल हिमायती थे। खासकर बच्चों के लिए स्वदेशी सिनेमा बनाने और हर बच्चों के मनोरंजन के अधिकार को बढ़ावा देने के लिए, उन्होंने 1995 में चिल्ड्रन फिल्म सोसायटी इंडिया की स्थापना की। उनका वास्तव में मानना था कि अगर देश के प्रत्येक बच्चा और युवाओं को सही शिक्षा दी जाए तो वें अपनी जीवन निर्माण के साथ देश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

स्वतन्त्र भारत के पहले प्रधानमन्त्री होने का गौरव हासिल करने के साथ ही उन्हें बच्चों से बेहद लगाव था। वह बच्चों के साथ तुरन्त घुलमिल भी जाते थे तथा बच्चों से बात करने के दौरान उनके अन्दर बच्चों के प्रति अपनापन का भाव दिखता था। जिसके कारण बच्चे भी उन्हें काफी प्यार करते थे। इसलिए वह कभी-कभी बच्चों को ‘गुलाब का फूल’ भी बुलाते थे। जो आजीवन उनके कोर्ट व कुर्ता के ऊपर वाला जेब मे बच्चों के प्रति प्रेम का प्रतीक बनकर लगा रहा। बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा नेहरू’ कह कर पुकारते थे। बच्चों की शिक्षा और बेहतर जीवन के लिए नेहरू जी हमेशा आवाज उठाते थे बल्कि उनके प्रयास से ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय प्रबंध संस्थान जैसे कई प्रमुख संस्थानों की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नेहरू जी ने कहा था कि- ‘जिस तरह से हम अपने बच्चों को पालेंगे, वहीं देश का भविष्य तय करेगा।’

वर्तमान समय में मानव ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी का उपयोग करके चांद तक पहुँच चुका है। अनगिनत खोज अभी भी जारी है लेकिन दुनिया भर के शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग में देश के एक भी शिक्षण संस्थानों के शामिल नहीं होने से उनके सपनों का भारत निर्माण कैसे संभव हो पाएगा? ऐसे में उनकी विचार की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है? बच्चों के प्रति उनकी दीर्घदृष्टि कोण, सोच, रचनाशीलता तथा प्रेम भाव उन्हें हमेशा बच्चों के ह्रदय में ‘चाचा नेहरू’ के प्रति प्रेम का भाव बना रहेगा तथा बाल दिवस बच्चों के लिए हमेशा आपसी प्रेम व एकजुटता का संदेश भी देता रहेगा

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नितेश कुमार सिन्हा

लेखक दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में स्नातकोत्तर छात्र हैं। सम्पर्क +919852533965, niteshmth011@gmail.com
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