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नयी राजनीतिक पार्टी हो तो नये नाम से

 

प्रिय अरुण कुमार जी,

कल 26 अप्रैल को फेसबुक से जानकारी मिली कि आपके नेतृत्व में ‘भारतीय सबलोग पार्टी’ के नाम से एक राजनीतिक दल का गठन हुआ है।

भारत में नयी राजनीतिक पार्टी का उदय और अस्त सामान्य बात है। किसी पार्टी या राजनीतिक गठबन्धन में जब किसी व्यक्ति या समूह की महत्त्वाकांक्षा फल फूल नहीं पाती तो एक नयी राजनीतिक पार्टी की जरूरत हो जाती है। यह बात अलग है कि उस जरूरत को सामाजिक वैधता प्रदान करने के लिए लोक लुभावन बातें और बड़े-बड़े क्रान्तिकारी दावे किये जाते हैं। उन बातों और दावों का हश्र क्या होता है यह इस आँकड़े से समझा जा सकता है कि भारत में पंजीकृत राजनीतिक पार्टियों की संख्या 2599 है जिसमें 6 राष्ट्रीय और 53 प्रादेशिक हैं। उन राजनीतिक पार्टियों में जिसके भी मेनिफेस्टो को आप पढ़ें तो लगेगा कि इस पार्टी का उदय संसदीय राजनीति की सामान्य प्रक्रिया नहीं बल्कि यह सामाजिक क्रान्ति और व्यवस्था परिवर्तन के लिए ही है। फिर ये 2599 राजनीतिक पार्टियाँ भारत का वर्तमान और भविष्य क्यों नहीं बदल पा रही हैं? दरअसल जमीन पर उतरते ही इस तरह की पार्टियों पर परिवार का कब्ज़ा हो जाता है और फिर भाई-भतीजावाद, जातिवाद का नंगा नाच शुरू हो जाता है। आप वर्षों संसदीय राजनीति से जुड़े रहे और जहानाबाद से दो बार सांसद रहे हैं, इन बातों को मुझसे ज्यादा आप समझते होंगे।  

इतनी राजनीतिक पार्टियों के रहते आपको एक नयी राजनीतिक पार्टी की जरुरत महसूस हुई शायद इसलिए कि आप कुछ नया करना सोच रहे होंगे। मैं यह मानता हूँ कि आपकी यह नयी पार्टी प्रचलित संकीर्णताओं से मुक्त होगी और बिहार के पुनर्निर्माण की वाहक बनेगी। मेरा यह मानना इसलिए है कि मैं जितना आपको जानता हूँ, इस अँधेरे समय और भ्रष्टाचारी परिवेश में अपेक्षाकृत आप साफ़-सुथरी छवि के सहज, निष्पक्ष और निर्भीक व्यक्ति हैं। लेकिन सच तो यह भी है कि जब कोई राजनीतिक मुहिम में उतरता है तो उसे स्वार्थी, चापलूस और मौकापरस्त लोग घेर लेना चाहते हैं। मुझे नहीं मालूम आपके घेरे में किस तरह के लोग हैं?

इस मुहिम की शुरुआती पहल में जिस नैतिकता की मैं आपसे अपेक्षा कर रहा था, उसपर आप खरे उतरते नहीं दिख रहे हैं। आपने अपनी पार्टी का नाम ‘भारतीय सबलोग पार्टी’ रखा, यह जानते हुए भी कि जनवरी 2009 से ‘सबलोग’ नाम की एक मासिक पत्रिका दिल्ली से निकल रही है।

13 जनवरी 2009 को दिल्ली के साहित्य अकादमी के सभागार में जब प्रसिद्ध समाज शास्त्री और जेएनयू के प्रोफ़ेसर आनन्द कुमार, प्रसिद्ध कथाकार उदय प्रकाश, प्रसिद्ध कलाविद और आलोचक ज्योतिष जोशी और प्रसिद्ध व्यंग्यकार और ‘अमर उजाला’ अख़बार के समूह सम्पादक यशवंत व्यास ‘सबलोग’ के प्रवेशांक का लोकार्पण कर रहे थे तो आप सभागार की अगली पंक्ति में मौजूद थे।

सबलोग के उद्घाटन के वक्त की कुछ वीडियो नीचे है–

सबलोग के उद्घाटन समारोह में किशन कालजयी

सबलोग के उद्घाटन समारोह में उदय प्रकाश

सबलोग के उद्घाटन समारोह में ज्योतिष जोशी

सबलोग के उद्घाटन समारोह में यशवंत व्यास

सबलोग के उद्घाटन समारोह में आनन्द कुमार

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यह उल्लेख उचित होगा और मेरे लिए नैतिक रूप से आवश्यक भी कि पत्रिका के प्रकाशन को प्रारम्भ करने के लिए आपने उस वक्त मुझे जरुरी हौसला दिया और अर्थसहयोग भी किया। ग्यारह वर्ष बाद जब आप इसी पत्रिका के नाम से एक राजनीतिक पार्टी बना रहे थे तो क्या यह आवश्यक नहीं था कि आप ‘सबलोग’ के सम्पादकीय परिवार से इस मुद्दे पर विचार विमर्श कर आगे बढ़ते? किसी पत्रिका के नाम से एक राजनीतिक पार्टी चलाना कानून की नजर में वैध है या अवैध, यह बात मैं अभी नहीं जानता कानून के जानकार जानते होंगे। लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आज तक किसी ने ‘धर्मयुग’, ‘दिनमान’, ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’, ‘रविवार’, ‘अवकाश’ आदि के नाम पर कोई पार्टी नहीं बनायी।

मैं यह मानता हूँ कि नाम से हमेशा महत्त्वपूर्ण काम होता है। सिर्फ उदहारण के लिए देखें तो हजारी नाम में कोई आकर्षण नहीं लगता, लेकिन जब आप हजारी प्रसाद द्विवेदी का नाम लेते हैं तो हिन्दी साहित्य का एक युग आपके सामने आ जाता है। द्विवेदी जी ने अपने काम की बदौलत इस नाम को इतना बड़ा कर दिया कि वह एक युग का प्रतिनिधि हो गया।

 कभी कभी मैं सोचता हूँ कि ‘सबलोग’ क्या सचमुच इतना लोकप्रिय और आकर्षक नाम हो गया है कि वह दूसरे को नकल करने के लिए विवश कर दे रहा है? आपके व्यक्तित्व के अनुरूप तो होना यह चाहिए था कि आप जब एक नया काम शुरू करने जा रहे हैं तो एक नये नाम से शुरू करते। ऐसा करते हुए आप अपने राजनीतिक अनुयायिओं के भीतर आत्मविश्वास भर रहे होते और आपकी यह राजनीतिक परियोजना भी पुष्ट होती। इसके पहले आपलोगों की जो एक बैठक हुई थी, उस बैठक को ‘मुनादी’ कहा गया था जो ‘सबलोग’ के सम्पादकीय स्तम्भ का नाम है। आपको भी यह जानकार आश्चर्य होगा कि आपकी पार्टी ने अपने फेसबुक पेज पर अपना जो लोगो बनाया है, वह भी ‘सबलोग’ पत्रिका के मुखपृष्ठ से ही लिया गया है। मैं नहीं समझता कि आपने अपने अनुचरों से ऐसा करने को कहा होगा। जिसे आपने सोशल मीडिया की देख-रेख सौंपी होगी, उसने गूगल पर ‘सबलोग’ सर्च करके देखा होगा तो उसे पत्रिका का ही लोगो पसन्द आया होगा और उसने कॉपी कर ली। जो चीज पसन्द आ जाए, ‘कब्जिया लो उसे’; आपको नहीं लगता कि लोकतान्त्रिक संस्कृति के विरुद्ध है यह। जो राजनीतिक पार्टी अन्याय और भ्रष्टाचार से लड़ने की बात कर रही हो वह अपने बुनियाद में ही इस तरह के अनैतिक और छीन-झपट के आचरण से लैस हो तो उसकी नीयत और उसके दीर्घायु होने पर शक स्वाभाविक है।

सबलोग

अभी आनन्द कुमार, मणीन्द्र नाथ ठाकुर, मधुरेश, आनंद प्रधान, मंजु रानी सिंह, विजय कुमार, मीरा मिश्र, सन्तोष कुमार शुक्ल और अख़लाक़ आहन ‘सबलोग’ के सम्पादकीय सलाहकार; प्रकाश देवकुलिश, राजन अग्रवाल और बसन्त हेतमसरिया संयुक्त सम्पादक; शिवाशंकर पाण्डेय, जावेद अनीस, कुमार कृष्णन और महादेव टोप्पो विभिन्न राज्यों के ब्यूरो प्रमुख; अभय कुमार झा प्रबन्ध निदेशक तथा गुलशन कुमार चौधरी वेब सहायक हैं। इन्हें या इनमें से किन्हीं को यह लग सकता है कि इस पार्टी के नामकरण के सिलसिले में मैंने आपसे कोई ‘डील’ की होगी। पिछले ग्यारह वर्षों में ‘सबलोग’ ने देश भर में अपना एक पाठक वर्ग और लेखक समाज बनाया है। उन्हें भी कोई भ्रम ना हो इसलिए इस मुद्दे पर यह स्पष्ट करना मैंने जरूरी समझा कि अपनी पार्टी का नामकरण आपने मेरी इच्छा के विरुद्ध किया है।

 आपके विवेक और आपकी शालीनता तथा ईमानदारी का स्मरण आपको ही कराते हुए मैंने यह भी जरूरी समझा कि सार्वजनिक तौर पर आपसे यह अनुरोध करूँ कि अपनी पार्टी के नाम से आप ‘सबलोग’ को हटाकर राजनीति में शुचिता और नैतिकता का उदाहरण प्रस्तुत करें।

मेरी किसी बात से आपको चोट पहुँची हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। विश्वास है आप भी मेरी चोट की परवाह करेंगे।

अभिवादन सहित                                  

किशन कालजयी

लेखक ‘सबलोग’ पत्रिका के सम्पादक हैं|
सम्पर्क- +918340436365, kishankaljayee@gmail.com

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सबलोग

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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