Democracy4youलोकसभा चुनाव

कन्हैया की जीत भारत के आम जनता के सपने की जीत होगी

  •  मणीन्द्र नाथ ठाकुर

कन्हैया ने अपना नामांकन पत्र दाख़िल किया।  विशाल जनसमूह ने नामांकन रैली में शामिल होकर अपना समर्थन दिखा दिया। बहुत दिनों के बाद किसी युवा नेता ने सीधे प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी को चुनौती दी है, वह भी ऐसे प्रधानमंत्री को जो सर्वशक्तिमान होने का दावा करता हो और वैसी पार्टी का प्रमुख हो जो अपनी सांगठनिक क्षमता के लिए जानी जाती हो।  छात्र जीवन से सीधे राजनीति में प्रवेश करने की प्रक्रिया किसी बड़े आंदोलन के बाद ही सम्भव होती रही है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)  के ख़िलाफ़ जो प्रपंच पिछले दिनों रचा गया, उसने जल्दी ही कन्हैया को साम्प्रदायिक और पूँजीवादी व्यवस्था के विरोध का प्रतीक बना दिया।
जो कोई भी भारत के कल्याणकारी लोकतंत्र के प्रति आस्था रखता है,उसकी सहानुभूति और उसका समर्थन कन्हैया के साथ है। मेरी मुलाक़ात किसी के इलाज के सिलसिले में दिल्ली के एक प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन से हुई। उन्हें जैसे ही मालूम हुआ कि मैं जेएनयू में राजनीति पढ़ाता हूँ, जल्दी-जल्दी मरीज़ को निपटा कर मुझसे कन्हैया के बारे में पूछने लगे। मुझे लगा आम तौर पर डाक्टरों को राजनीति की ज़्यादा समझ नहीं होती है इसलिए मुझे भारतीय मध्यवर्ग के एक व्यक्ति को वही  बातें बतानी होंगी कि ऐसे नारे कौन लगा गया हमें पता नहीं, कन्हैया उसमें शामिल नहीं था, आदि आदि। लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें कहते सुना कि देश की उम्मीद कन्हैया जैसे युवाओं पर टिकी है। मेरा ख़याल  सही था कि लम्बे समय तक अख़िल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में काम करने वाले इस डाक्टर को यह पता है कि कन्हैया उन आम ग़रीब लोगों के उस सपने का प्रतीक बन गया है जिनके अनुसार लोक कल्याणकारी राज्य हमारा सपना है।
जिस आज़ादी के नारे से उसके प्रतिद्वंद्वी घबराते हैं वह राष्ट्र का सपना है, ग़रीबी से आज़ादी, भुखमरी से आज़ादी, उत्पीड़न से आज़ादी, यही तो सपना था जिसके लिए राष्ट्रीय आंदोलन चला। इस देश के लिए जिन लोगों ने अपनी जान दी उन्होंने इसलिए तो यह सबकुछ नहीं किया होगा कि अस्पताल से लेकर विश्वविद्यालय तक को लाभ कमाने के लिए पूँजीपतियों को बेच दिया जाए। कन्हैया उस सपने का प्रतीक बन गया है जो इस देश के आम लोगों ने देखा है। अमर्त्य सेन जैसे अर्थशास्त्री ने भी कहा है कि भारत लोक कल्याणकारी स्वरूप को छोड़ने का प्रयास करेगा तो यह आम लोगों के हित के ख़िलाफ़ होगा।
बेगूसराय भी कभी इसी सपने का शहर हुआ करता था जिसने इसे ‘लेनिनग्राद’ का नाम दिया था। कई बार मुझे इस शहर में जाने  का मौक़ा मिला है। यहाँ एक ‘विप्लवी पुस्तकालय’ हुआ  करता है। इसकी स्थापना भगत सिंह के अनुयायियों ने की थी। बायलीस के आंदोलन में इस गाँव के लोगों ने जो विप्लव किया था उसके लिए अंग्रेज़ सरकार ने पूरे गाँव को आर्थिक दंड दिया था। स्वतंत्रता के बाद उन्हें यह पैसा लौटा दिया गया था। उस पैसे का उपयोग कर गाँव वालों ने पुस्तकालय को बढ़ाया। आज देश के कुछ ऐसे पुस्तालयों में जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर लेखकों की सभाएँ होती हैं, नाटक और फ़िल्म फ़ेस्टिवल होता है। यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि यहाँ सात सौ से ज़्यादा लोग किसी बौद्धिक बातचीत को सुनने के लिए जामा हो जाते हैं और बहस में हिस्सा भी लेते हैं।
इसी तरह बेगूसराय में एक चन्द्रशेखर चिकित्सालय हुआ करता है। यहाँ एक लोकप्रिय  डाक्टर गुप्ता हुआ करते थे। लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने अपना सारा जीवन यहाँ की जनता को लगभग मुफ़्त चिकित्सा सुविधा देने में लगाया था। उनके प्रयासों और जनसहयोग के द्वारा यह चिकित्सालय बना था। यदि कन्हैया उस सपने को जीवंत करने का प्रयास कर रहा है तो यह मानना चाहिए कि समाज में साकारात्मक पहल हो रही है और राजनीति जनोन्मुखी हो रही है। जिस तरह देखते-देखते कन्हैया के चुनाव खर्च  के लिए सत्तर लाख रुपए लोगों ने जमा कर दिये, इससे  स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की याद ताजा हो गयी। नया भारत बनाने का  सपना अभी मरा नहीं है और इस सपने को कोई  अन्धराष्ट्रवाद और आक्रामक हिन्दुत्व के बुलडोजर से चूर नहीं कर सकता।
कन्हैया जीतेगा या हारेगा यह तो समय बताएगा। लेकिन कन्हैया का सपना ज़रूर जीतेगा। उसे हरा पाना  सम्भव नहीं है। समस्या है कि राजनैतिक दलों ने पूँजी के सामने घुटने टेक दिए हैं। इस देश पर कौन राज करेगा इसे मुनाफाखोर  पूँजीपति तय करने की कोशिश कर रहे हैं। बेगूसराय ने यह सन्देश दिया है कि यदि पार्टियाँ जनहित में काम करें तो जनता उनके साथ होगी। और जब जनता सोच लेती है तो पूँजी और चुनाव प्रबंधन धरे के धरे रह जाते हैं। भूख और ग़रीबी जाति और धर्म से ज़्यादा महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। धर्म और संस्कृति  की दुहाई वही देते हैं जो ग़रीबी, बेरोज़गारी और भुखमरी से उठने वाले सवालों से मुँह मोड़ना चाहते हैं।
कन्हैया  ने बेगूसराय को जाने-अनजाने अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर ला कर खड़ा कर दिया है। हो सकता है यहाँ के चुनाव से निकला संदेश केवल भारत के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए पुनः लोक कल्याणकारी राज्य के युग में लौटने का प्रस्थानबिंदु हो।

लेखक समाजशास्त्री और जे.एन.यू. में प्राध्यापक हैं|

सम्पर्क- +919968406430, manindrat@gmail.com

.

.

.

सबलोग को फेसबुक पर पढने के लिए लाइक करें|

कमेंट बॉक्स में इस लेख पर आप राय अवश्य दें। आप हमारे महत्वपूर्ण पाठक हैं। आप की राय हमारे लिए मायने रखती है। आप शेयर करेंगे तो हमें अच्छा लगेगा।

लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

3 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments


डोनेट करें

जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
sablog.in



विज्ञापन

sablog.in






3
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x