हाँ और ना के बीच

संबंधों की बोनसाई

 

पारंपरिक विवाह एक ऐसी व्यवस्था है जिससे बाहर निकलने का द्वार अपवादस्वरूप ही खुलता है। लड़कियाँ जब तक उसमें प्रवेश न पा लें, तब तक घर वालों और करीबी समाज को सकून नहीं मिलता। इसलिए अधिकतर स्त्रियों को विस्थापन का यह दंश झेलना ही होता है। यह प्रवास किसी के लिए सुगम हो सकता है, किसी के लिए दुर्गम और किसी के लिए असह्य भी। भारतीय मध्यवर्ग में आज भी विवाह संस्था इतनी लचीली नहीं हुई कि कोई बिना किसी ठोस कारण के इससे बाहर आना चाहे। कानून और समाज के इतने पेच-ओ-खम हैं कि नाहक ही कौन इस दुष्चक्र में फँसे। मगर हाल में घटी एक घटना के बाद कुछ पत्नियाँ स्टाम्प पेपर पर लिखकर खुद पर पति के दावे पर मुहर लगाने के लिए मजबूर हुईं ताकि संदेह के कारण पति उनकी संभाव्यताओं और अवसरों पर अंकुश न लगाएँ।  इसका एक उदाहरण :

मैं सुशीला अपने पति श्री देव और अन्य समस्त अधिकारियों के सामने ये वचन लेती हूँ कि मेरे पति श्री देव मेरे को अपने घर से दूर जयपुर में मेरी RAS की पढ़ाई करवा रहे हैं। अगर मैं कभी भी, कितने भी दिनों में कर्मचारी बन जाती हूँ तो अपने पति को धोखा नहीं दूँगी। लेकिन फिर भी अगर ऐसा करने की मेरी मजबूरी हुई तो मेरे को मेरे पद से निलंबित कर दिया जाना चाहिए और मैं खुद भी मेरे पति और उनके परिवार को 1 करोड़ रुपए का जुर्माना दूँगी। ( सुशीला और देव काल्पनिक नाम हैं। नीचे असली पति-पत्नी के हस्ताक्षर भी हैं।) यह अलग बात है कि सिर्फ स्टैंप-पेपर पर लिख देने भर से कोई दस्तावेज़ क़ानूनी वैधता नहीं पा सकता।

      घटना इतनी ही है कि एक स्त्री विवाह के बाद प्रतियोगी परीक्षा पास करके प्रशासनिक अधिकारी बनती है। ऐसा विवाह से पहले होता तो उसे माँ-बाप से सहयोग और संसाधन मिलते। पीसीएस अधिकारी बनने के लगभग 7 साल बाद वह इस निर्णय पर पहुँची कि वह इस रिश्ते में नहीं रह सकती। मार्च 2023 में उसने पति पर झूठ के बल पर शादी करने, दहेज की माँग और मोबाइल फोन की क्लोनिंग और संदेशों में छेड़-छाड़ के आरोपों के साथ फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी। मगर प्रिंट, दृश्य-श्रव्य और सोशल मीडिया में यह मामला तब चर्चित हुआ जब पति ने अश्रुपूरित आँखों से अपनी दुखकथा सुनाई कि जिस पत्नी को पढ़ाने और तैयारी करवाने में उसने इतनी ऊर्जा और धन लगाया, वही उसे इस कारण छोड़ना चाहती है कि वह सफाईकर्मी है। पत्नी के निजी संदेश मीडिया से शेयर करते हुए उसने यह भी बताया कि उसकी पत्नी का किसी से विवाहेतर संबंध चल रहा है और उन दोनों ने पति को रास्ते से हटाने की धमकी भी दी है। उसने एक डायरी भी मीडिया को दिखाई जिसमें, बकौल उसके, पत्नी की ही हस्तलिपि में उसके द्वारा ली गई रिश्वत के ब्यौरे हैं जो उसके भ्रष्ट आचरण की पोल खोलते हैं।

पति-पत्नी दोनों तरफ से दायर किए गए मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं । दावों की जांच और दोषी व्यक्ति पर कानूनी कार्यवाही करना न्यायालय का काम है। इस आलेख का मकसद यह पड़ताल करना है कि मीडिया में एक साथ उद्घाटित तमाम बातों में से लोगों ने क्या सुना, क्या अनसुना किया, किस पर चुप्पी बरती और किस पर उत्तेजक प्रतिक्रियाएं दीं। इस पड़ताल के जरिये समाज के मन की एक झलक हमें मिल सकती है ।

जिम्मेदार पद पर रहते हुए लाखों रुपए की हेर-फेर पर कई दिनों तक न आम दर्शकों से कोई प्रतिक्रिया आयी, न मीडिया ने ही उसे खास तवज्जो दी। देश में ‘समान नागरिक संहिता’ पर व्यापक विमर्श तो नहीं हुआ मगर परंपरा से स्त्री का  विचलन राष्ट्रीय मुद्दा बन गया। पढ़ाने-लिखाने वाले पति को छोड़ने का ख्याल लाने वाली अफसर पत्नी खलनायिका बना दी गयी। सोशल मीडिया में तो लोगों ने इस पर इतना लिखा और अभी तक लिख रहे हैं कि अन्य मुद्दों पर कुछ कहते हुए भी इस स्त्री को कोसना धिक्कारना जारी रहता है। उसके बर-अक्स अन्य स्त्रियों की प्रशंसा करके भी उसे समाज में नकारात्मक चरित्र की तरह पेश किया जा रहा है। अधिकांश प्रतिक्रियाओं में पति के लिए सहानुभूति और पत्नी की भर्त्सना थी। पारंपरिक पुरुष उत्तेजित आवाज में पत्नी को धिक्कारते नजर आए और पारंपरिक स्त्रियाँ खुद को उससे पृथक ‘अच्छी’ और चरित्रवान साबित करती हुईं। इसके बाद भी (कुछ)पतियों का भरोसा कंपायमान रहा तो उन्होंने पढ़ाई में अपनी-अपनी पत्नियों को सहयोग देना बंद कर दिया। एक कोचिंग-टीचर ने बताया कि पतियों द्वारा अनेक स्त्री अभ्यर्थियों की पढ़ाई छुड़वा दिए जाने से उनकी अब तक की मेहनत निष्फल जा रही है। बहुत कोशिश करने पर भी पति लोग पत्नियों को आगे पढ़ने देने और उन पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हुए तो चंद महत्वाकांक्षी पत्नियों ने स्टैंप पेपर पर लिखकर पतियों के प्रति समर्पित रहने का यकीन दिलाया।

विवाह में छिपी दासता को तो इस घटनाक्रम ने उघाड़ा ही है, मगर ‘स्टैंप पेपर’ का इस्तेमाल आधुनिकता की सुगबुगाहट का संकेत भी है। सदियों से जारी परिवार, विवाह आदि संस्थाएँ ऐसी मजबूत और निष्कंप सामाजिक वैधता अर्जित कर चुकी हैं कि उसमें होने का अर्थ स्त्री के लिए संपूर्ण निष्ठा होता ही है। हमारे समाज में यह एक लगभग निर्विकल्प व्यवस्था है। फिर भी परंपराप्रदत्त अधिकारों को अबाध जारी रखने के लिए पतियों को वादों के दोहराव की जरूरत पड़ी है तो इन संस्थाओं की गहरी जड़ों में कहीं कुछ तो हिला है। हांलाकि ऐसे में जकड़ और कसने लगती है। मगर शिक्षा और आधुनिक बोध से लगातार मजबूत होती स्त्री इन शिकंजों से पार पाने का रास्ता भी देर-सवेर निकाल ही लेगी जो उसके व्यक्तित्व को कुंठित और संभावनाओं को सीमित करते हैं। राहत की बात यह है कि जेंडर संवेदित कुछ लोगों नें इस मुद्दे से उघड़ आयी मर्दवादी प्रवृत्तियों पर तीखे प्रहार किए और एक स्त्री के चरित्र को इस तरह उछालने का सख्त विरोध करते हुए उसका पक्ष लिया । विवाहेतर संबंधों और कथित प्रेमी पर भी काफी बातें हुईं। बल्कि इस मुद्दे से खबरों में आए उस शख्स के खिलाफ जाँच चल रही है और उसे अन्य अपराधों का दोषी पाने के कारण निलंबित भी कर दिया गया है।

विडम्बना यह है कि मर्दवाद और स्त्री-सरोकार दोनों के पक्षधर ‘यौनिकता’ को ही केन्द्रीय महत्व दे कर नैतिकता और उचित-अनुचित पर विमर्श करते रहे। काम के प्रति निष्ठा, कुशलता और आर्थिक भ्रष्टाचार आदि आयामों पर शायद ही किसी ने बात की। जबकि इस मामले में जो बातें उजागर हुईं, उनसे पद और सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग, रिश्वतखोरी जैसे भ्रष्ट आचरण आदि को प्रश्नांकित किया जाना जरूरी था। ‘रूल ऑफ लॉ’ के मुताबिक उचित-अनुचित की पड़ताल में बाकी परतें भी सामने आतीं ही। हमारे समाज में पति-पत्नी से अपेक्षित भूमिकाएँ, उनका निर्वहन और उल्लंघन, ऐसी स्थिति में बच्चों की स्थिति, विवाहेतर संबंधों के औचित्य-अनौचित्य पर भी लोगों की प्रतिक्रियाएँ आना स्वाभाविक था लेकिन केवल इन्हें ही महत्त्व देना और पद से जुड़े दायित्वों एवं आर्थिक तकाजों को नजरअंदाज करना दिखाता है कि आर्थिक भ्रष्टाचार सहज स्वीकार्य है।

  घटना के कई दिनों बाद अब अनुचित माध्यम से पैसे की लेन-देन के आरोप की जाँच के लिए लोकायुक्त को शिकायत दर्ज कराई गई है। आम जन तो अभी भी पत्नी की बेवफाई और कृतघ्नता और विवाहेतर संबंधों की उत्तेजना से ही कंपित हैं। मगर कुछ व्यक्तियों का ध्यान आर्थिक पहलू पर भी जाना शुरु हुआ है। अगर भ्रष्टाचार साबित होता है तो कार्यरत स्त्री के खिलाफ, उचित ही, कार्यवाही भी होगी ही मगर ऐसा होने पर क्या पति हर आलोचना से बरी होना चाहिए? वह खुद भ्रष्टाचार से अर्जित साधनों-सुविधाओं में हिस्सेदार था लेकिन पत्नी से अलगाव और सुख-सुविधाओं में खलल पड़ने की आशंका होने पर उसका नैतिक कायाकल्प हो गया। घर-बाहर की संस्थाएँ अबाध ढंग से अनैतिक और अलोकतांत्रिक कृत्यों को पोषण-समर्थन देती रहती हैं। किसी घटना से घरों और दफ्तरों की दीवारों में सेंध लग जाती है तो दुर्गंध बाहर आती है। कमोबेश यही सबकी कहानी है मगर जिसकी कहानी छिपी रहती है वह अन्यों पर उंगली उठाने का हक पा जाता है। पाखण्ड और छल-कपट में गर्क समाज में यह अस्वाभाविक भी नहीं।

पारिवारिक मू्ल्यों को महत्वपूर्ण मानने वाले एक लोकतांत्रिक समाज में यह घटना लोगों में यह बोध जगाने का बायस बनती कि अधिकारों की ‘धौंस’ से संबंधों में स्थायित्व और सौंदर्य नहीं आता। रिश्तों के लिए पात्रता अर्जित करनी होती है। अपने साथी के आर्थिक-बौद्धिक-संवेदनात्मक विकास के साथ व्यक्ति खुद अपने व्यक्तित्व का भी विकास करें तो वे सभी रिश्ते बचे रहेंगे जिनमें दोनों पक्षों ने लंबे समय तक भौतिक-भावनात्मक निवेश किया हो। पौधे के विकास के साथ गमला बड़ा करने के बजाय शाखों को ही कतरना इस बात का सबूत है कि हमारे परिवार लोकतंत्र से कितना दूर हैं। उनमें किस आसानी से बौनी अपेक्षाओं के लिए व्यक्ति की तमाम संभाव्यताओं की बलि दे दी जाती है

.

Show More

रश्मि रावत

लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अध्यापन और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में नियमित लेखन करती हैं। सम्पर्क- +918383029438, rasatsaagar@gmail.com
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Related Articles

Back to top button
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x