ब्लैक फ्राइडे : उपभोक्ताओं को ठगने का दिन
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था में ‘थैंक्सगिविंग डे’ के उत्सव के माहोल के बाद का दूसरा दिन यानी नवम्बर का चौथा शुक्रवार या ‘ब्लैक फ्राइडे’ सबसे बड़ा ‘शापिंग डे’ बन गया है। करोड़ों अमेरिकी लोग खरीददारी के लिए इस दिन स्टोरों में इस प्रकार टूट पड़ते हैं मानों क्रिसमस की शापिंग अभी ही कर काफी कुछ बचत कर लेंगे। दुकानदार यानी बड़े-बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर भी तरह-तरह के प्रमोशन और ‘आफर’ की घोषणा कर ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन ‘ब्लैक फ्राइडे’ है क्या?
‘ब्लैक फ्राइडे’ वस्तुतः व्यावसायिक दृष्टि से आज अमेरिका में सालभर का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। मूलतः इससे सम्बन्धित तरह-तरह की कथाएं हैं। शताब्दियों से काला रंग तरह-तरह की आपदाओं, संकटों, विपत्तियों के रूप में मान्य रहा है। अमेरिका में पहली बार 24 सितम्बर 1869 को दो लोगों ने न्यूयार्क स्टाक एक्सचेंज में स्वर्ण बाजार पर कब्जा करने की कोशिश की, पर सरकार ने बाजार में सोना उतार कर स्थिति को काबू में कर लिया और इस प्रकार बहुत से निवेशकों का दिवाला निकल गया।
उन्नीसवीं सदी के मध्य मेंअमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति लिंकन ने नवम्बर के आखिरी गुरूवार को ‘थैंक्सगिविंग डे’ मनाने की घोषणा कर एक नई परम्परा शुरू की, पर यह गुरूवार महीने का चौथा या पांचवां गुरूवार भी हो सकता था। लेकिन 1939 में एक बड़ी मजेदार बात हुई। उस वर्ष महीने का आखिरी गुरूवार महीने का आखिरी दिन भी रहा। ऐसी स्थिति में दुकानदारों को चिंता हुई कि उस वर्ष शापिंग सीजन कुछ कम दिनों का रहेगा। अतः उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी। रूजवेल्ट से कहा कि ‘थैंक्सगिविंग डे’ की छुट्टी एक सप्ताह पहले घोषित कर दी जाए। फलस्वरूप 1941 के अंत में कांग्रेस ने प्रस्ताव पास किया कि ‘थैंक्सगिविंग डे’ नवम्बर के चौथे गुरूवार को रहेगा और इस प्रकार क्रिसमस के पहले शापिंग के लिए एक सप्ताह का अतिरिक्त समय मिल गया।
1951 में देखा गया कि ‘थैंक्सगिविंग डे’ के दूसरे दिन यानी शुक्रवार को अमेरिका में लाखों लोगों ने बीमारी की छुट्टी ले रखी थी। उसके बाद ‘थैंक्सगिविंग डे’ के बाद का शुक्रवार प्लेग के समान एक रोग सा बन गया और दुकानदारों ने देखा कि स्टाफ की कमी से उस दिनदुकानें एक प्रकार से खाली ही रहीं। यह देख कर सबसे पहले फिलाडेल्फिया में इस दिन यानी शुक्रवार को सार्वजनिक अवकाश की घोषणा हुई। पर उस दिन छुट्टी के कारण शहर में इस प्रकार ‘जाम’ रहा कि पुलिस को नियंत्रण करना मुश्किल हो गया और इस दिन को ‘ब्लैक फ्राइडे’ कह दिया गया। उसके बाद धीरे-धीरे अन्य शहरों में भी ‘ब्लैक फ्राइडे’ की छुट्टी होने लगी और दुकानदारों ने इस तथाकथित ‘संकट’ दिवस को दुकानों में होने वाली बिक्री की बढ़त की दृष्टि से लाभकारी दिवस का रूप दे दिया।
‘ब्लैक फ्राइडे’ का नाम पिछली सदी के छठे दशक में क्रिसमस की शापिंग का सीजन शुरू होने के रूप में पडा। ‘ब्लैक’ वस्तुतः दुकानों के ‘लाल’ से ‘काले’ में आने का प्रतीक है। लाल रंग सामान्यतः सभी जगह और विशेषतः एकाउंटिंग के सन्दर्भ में ‘हानि’ को दर्शाता है और यह प्रथा तब से चली आ रही है जब खाता-बही हाथ से लिखी जाती थी। 1924 में अमेरिका में सबसे बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर मेसी द्वारा ‘थैंक्सगिविंग डे’ की परेड शुरू होने के बाद उसके दूसरे दिन यानी शुक्रवार को ‘ब्लैक फ्राइडे’ नाम दिया गया।
कहा जाता है कि उसके बाद से पूरे अमेरिका में दुकानों में इस दिन जितनी बिक्री होती है उतनी किसी अन्य दिन नहीं। नॅशनल रिटेल फेडरेशन द्वारा जारी किये गए आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष लोगों ने इस दिन अनुमानतः 59.1 अरब डालर खरीददारी में खर्च किया। लेकिन वास्तव में इसमें से कितनी रकम लाभ की है यह स्पष्ट नहीं है, पर यह जरूर है कि इस दिन दुकानदार अधिक से अधिक डिस्काउंट और तरह-तरह के आफर देने में एक-दूसरे से होड़ करने में पीछे नहीं रहते। उसके बाद तो धीरे-धीरे अन्य देशों में भी ‘ब्लैक फ्राइडे’ की लहर चल पड़ी।
‘थैंक्सगिविंग डे’ को अमेरिका की स्वाधीनता का दिन भी माना जाता है। अतः उसके बाद के दिन यानी शुक्रवार को ‘शापिंग की दीवानगी का दिन’ मानें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं॰ इसे वस्तुतः ‘दुकानदारों का दिन’ कहा जाना चाहिए। लाखों/करोड़ों लोगों के लिए ‘ब्लैक फ्राइडे’ क्रिसमस के लिए शापिंग करने का दिन होता है। यह सामान्यतः 23 और 29 नवम्बर के बीच कभी भी पड़ सकता है। यद्यपि अमेरिका में यह सरकारी तौर पर सार्वजनिक अवकाश का दिन नहीं होता, दुकानों और रिटेल स्टोरों में काम करने वाले लोगों के अतिरिक्त प्रायः अन्य सभी लोग इस दिन सामान्यतः छुट्टी ले लेते हैं।
दुकानदार इस दिन के लिए विशेष रूप से तैयार की गई जो चीजें दूकान में रखते हैं वे यद्यपि सस्ती से सस्ती और मंहगी से मंहगी भी होती हैं, पर वस्तुतः डिस्काउंट और आफर के रूप में बेची जाती हैं। उनमें से अधिकाँश तो ऐसी होती हैं जिनकी लोगों को वास्तव में आवश्यकता नहीं होती है। आजकल की पूरी अर्थव्यवस्था शापिंग की खुशी के इर्द-गिर्द बनाई जाती है। यह निश्चय ही बड़े शर्म की बात है कि जिस देश में हजारों लोग अपनी भूख शांत करने के लिए ‘फुड बैंक’ पर निर्भर हों, जहाँ रोज का खाना प्राप्त करने के लिए वे क्यू में लगते हों, वहा बेकार की अनावश्यक चीजें खरीदने पर इस प्रकार अनाप-शनाप खर्च किया जाता है।
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