झारखंड

झारखण्ड में बांग्लादेशी घुसपैठ: एक गम्भीर खतरा और चुनौती

 

भारत, विशेषकर झारखण्ड के संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा बीते कुछ वर्षों में तीव्रता से बढ़ा है। यह न केवल क्षेत्रीय जनसांख्यिकी को प्रभावित कर रहा है, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने को भी गम्भीर खतरे में डाल रहा है। झारखण्ड के संथाल परगना के जिलों—पाकुड़, साहिबगंज, दुमका, जामताड़ा और गोड्डा में बांग्लादेशी घुसपैठियों की लगातार बढ़ती संख्या एक ऐसी समस्या बन गई है, जिसे अब नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं है।

घुसपैठियों  की रणनीति और बढ़ता प्रभाव

बांग्लादेश से आए ये घुसपैठिए पहले पश्चिम बंगाल के रास्ते भारत में प्रवेश करते हैं। पश्चिम बंगाल में उनकी संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि अब ममता सरकार के लिए यह एक “पॉकेट वोट” बन गए हैं। घुसपैठियों ने बंगाल में अपनी स्थिति इतनी मज़बूत कर ली है कि ममता सरकार के संरक्षण में उन्होंने न केवल अपना अस्तित्व सुरक्षित किया, बल्कि अपनी राजनीतिक और सामाजिक पकड़ भी सुदृढ़ की। बंगाल में घुसपैठियों को दिए गए राजनीतिक संरक्षण के कारण उन्होंने अपने “जेहादी एजेंडे” को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

बांग्लादेशी घुसपैठ

यही प्रक्रिया अब झारखण्ड में भी देखी जा रही है। झारखण्ड के ग्रामीण इलाकों में घुसपैठिए पहले स्थानीय आदिवासियों के साथ घुलमिल जाते हैं। वे उनके सुख-दुख के साथी बनते हैं और धीरे-धीरे उनकी बहू-बेटियों से विवाह कर उनके घर-जमीन पर अधिकार जमा लेते हैं। यह एक योजनाबद्ध रणनीति है, जिसके माध्यम से ये लोग नागरिकता प्राप्त कर क्षेत्रीय राजनीति और संसाधनों में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर रहे हैं।

 झारखण्ड के आदिवासी समुदाय पर प्रभाव

संथाल परगना में आदिवासी समुदाय पर इसका सीधा प्रभाव पड़ रहा है। ये घुसपैठिए न केवल उनकी सामाजिक संरचना को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि उनकी संस्कृति, जमीन और रोज़गार पर भी कब्ज़ा कर रहे हैं। झारखण्ड जैसे राज्य, जो अपनी जनजातीय संस्कृति और मूल्यों के लिए प्रसिद्ध हैं, अब बाहरी घुसपैठ के कारण अपने मूल स्वरूप को खोने के कगार पर हैं।

राजनीतिक संरक्षण और वोट बैंक की राजनीति

झारखण्ड की हेमंत सोरेन सरकार ने कभी इस घुसपैठ को स्वीकार नहीं किया। यह अकारण नहीं है। यह घुसपैठियों को एक संभावित वोट बैंक के रूप में देखने का नतीजा है। विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने हाल ही में वक्फ बोर्ड के निर्णय के तहत इंडियन एलायंस पार्टी को एकजुट होकर वोट देने का फरमान जारी किया। इस प्रकार के संगठित प्रयास न केवल स्थानीय हिंदू समुदाय बल्कि पूरे राज्य की स्थिरता और सांस्कृतिक संतुलन के लिए खतरा बन गए हैं।

सांस्कृतिक और धार्मिक संतुलन पर प्रभाव

घुसपैठियों की संख्या में वृद्धि के साथ ही झारखण्ड और बंगाल में धार्मिक और सांस्कृतिक असंतुलन तेजी से बढ़ रहा है। उनका एकमात्र उद्देश्य अपने धार्मिक एजेंडे को आगे बढ़ाना और क्षेत्र में बहुसंख्यक बनने का है। इसके लिए वे हर प्रकार की रणनीति अपना रहे हैं—चाहे वह जनसंख्या वृद्धि हो, स्थानीय समुदायों को आर्थिक रूप से कमजोर करना हो, या फिर सांस्कृतिक और धार्मिक विभाजन पैदा करना हो।

 समाज और सरकार की भूमिका

बांग्लादेशी घुसपैठ के बढ़ते खतरे को देखते हुए समाज और सरकार को तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। यह केवल एक राजनीतिक या सामाजिक मुद्दा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है। सीमाओं की कड़ी निगरानी, घुसपैठियों की पहचान और निर्वासन, और स्थानीय समुदायों को जागरूक करना इस समस्या के समाधान के लिए आवश्यक कदम हैं।

इसके साथ ही, राज्य सरकारों को अपनी वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होगा। यदि इस समस्या को गम्भीरता से नहीं लिया गया, तो भविष्य में यह स्थिति न केवल झारखण्ड और बंगाल, बल्कि पूरे भारत के लिए एक बड़े संकट का कारण बन सकती है।

संभव समाधान और जनजागरण

  1. सीमा सुरक्षा: भारत-बांग्लादेश सीमा पर सख्त निगरानी और निगरानी तंत्र को मजबूत करना आवश्यक है।
  2. घुसपैठियों की पहचान: झारखण्ड और बंगाल में बसे बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान और उनका पंजीकरण होना चाहिए।
  3. सामाजिक जागरूकता: स्थानीय समुदायों को इन घुसपैठियों की रणनीतियों और उनके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में जागरूक करना होगा।
  4. राजनीतिक इच्छाशक्ति: सरकारों को वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक संतुलन को प्राथमिकता देनी चाहिए।
  5. आदिवासी समुदाय का सशक्तिकरण: आदिवासी समुदाय को उनकी जमीन, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा केवल झारखण्ड या बंगाल तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश के लिए एक गम्भीर चुनौती है। यदि समय रहते इस पर कदम नहीं उठाए गए, तो इसका असर भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति पर गहरा और दीर्घकालिक होगा। भारत की संप्रभुता, संस्कृति और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी

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कैलाश केशरी

लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं। सम्पर्क +919470105764, kailashkeshridumka@gmail.com
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