सेवाराम त्रिपाठी
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Sep- 2021 -11 Septemberसामयिक
खण्ड-खण्ड नहीं एक अखंड पाखंड
(कट्टरता के साए में हम) आज के ज़माने में पढ़ना ही सबसे ज्यादा बाधित हुआ है। सोशल मीडिया में नेट सिस्टम में लोग रमें हैं। फिर वस्तुनिष्ठ तरीके से बातें करने से लोग चिढ़ जाया करते हैं। बहुत संजीदा तरीक़े…
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Aug- 2021 -29 Augustसामयिक
आओ आज़ादी-आज़ादी और जनतन्त्र-जनतन्त्र खेलें
स्वाधीनता दिवस व्यतीत हो गया है जी। तब भी हमें अक्सर महात्मा गांधी याद आते रहे। वे कहा करते थे- “भारत की स्वाधीनता तब तक अधूरी है, जब तक दुनिया की कोई भी जाति पराधीन है- “इसलिए तथाकथित राष्ट्रवादियों…
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21 Augustसामयिक
अवमूल्यन के दौर में रामकाव्य
इक्कीसवीं शताब्दी एक विशेष संदर्भ में अवमूल्यन की छायाओं के नीचे साँस ले रही है। समूची दुनिया शांति, सद्भाव और भाईचारे के स्थान पर आक्रामकता, गर्वोक्तियों और मूल्यहीनताओं के घेरे में है। हमारा सोच-विचार भी बाँझ बनाया जा रहा…
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Jul- 2021 -2 Julyसामयिक
हत्यारी और तड़ीपार संभावनाओं के समानांतर
अरसे से सोच रहा हूँ कि कुछ न सोचूँ; लेकिन ऐसा किसी भी तरह हो नहीं पा रहा है कुछ भी न सोचूँ। ससुरा दिमाग़ है कि मानता ही नहीं, सोचता ही है। संभावनाएँ तो आख़िर संभावनाएँ ही हैं।…
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Jun- 2021 -7 Juneविशेष
लेखन यानी बाक़ायदा एक हलफ़िया बयान
आपत्ति में या संकट के समय लेखक की आस्था और विवेक की असली पहचान होती है। यही नहीं नागरिकों की स्वतन्त्रता की कीमत का खुलासा होता है। आस्था और विवेक कोई लुभावनी चीज़ नहीं हैं। इनकी हमेशा तलाश होती…
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May- 2021 -30 Mayविशेष
वक्त के आमने-सामने
हम अच्छे दिनों और अच्छे समय की आत्ममुग्धता की सीमा-रेखाओं में हैं। उसके बरअक्स खराब समय की जद्दोजहद के बीच और उसकी धधकती ज्वालाओं में हैं। ख़राब चीज़ों की एक लम्बी शृंखला है। वक्त के सामने हम…
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22 Mayमुद्दा
कट्टरता का समाजशास्त्र
हमारा समाज बहुत तेज़ी से सामाजिक, सांस्कृतिक राजनीतिक और धार्मिक परिवर्तनों को घटित होते बेरहमी से देख रहा है और तमाम तरह की महत्त्वपूर्ण विभीषिकाओं को अपने भीतर जज़्ब कर रहा है। इस दौर में चारों तरफ…
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Apr- 2021 -19 Aprilसामयिक
साँसत में ‘अन्नदाता’
‘’लोग कहते हैं आन्दोलन, प्रदर्शन और जुलूस निकालने से क्या होता है? इससे यह सिद्ध होता है कि हम जीवित हैं, अडिग हैं और मैदान से हटे नहीं हैं। हमें अपनी हार न मानने वाले स्वाभिमान का प्रमाण देना…
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14 Aprilशख्सियत
अम्बेडकर यानी उल्टी हवाओं में हौसला
अम्बेडकर पिछड़े हुए समाजों में भी अति पिछड़े हाशिए के लोगों यानी महार जाति से थे। ये समाज अभी भी बेहद गम्भीर स्थिति में हैं। आज़ादी और इतने विकास के बाद भी सामाजिक सरोकार, न्याय अब भी एक तरह…
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Mar- 2021 -11 Marchसामयिक
किसानों की त्रासदी के मंजर
किसान-आन्दोलन ने वह सब कुछ उजागर कर दिया है; जो अभी तक परदे में था या किसी तरह ढँका-मुँदा था। भारत वह देश है; जहाँ खेती-किसानी हमारे अधिकांश लोगों की जीवन-पद्धति है। वह हमारे जीवन की धुरी भी है।…
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