राजनीति

ममता बनर्जी की चमक

 

अनोखे जीवट वाली ममता बनर्जी भारतीय राजनीति की जानकार हैं। राजनीतिक हवा की तासीर भाँपने के लिए उन्हें किसी पीके के आँकड़ों की जरूरत नहीं पड़ती। जनता का मिजाज भी समझती हैं और राजनीतिक चाल भी। यह भी जानती हैं कि अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में वे चौबीस में संभवतः आखिरी लोकसभा चुनाव देखेंगी। मगर इस बार वैसे नहीं देखना चाहतीं जैसे लोकसभा चुनावों को अबतक वे देखती आईं हैं। चौबीस के लोकसभा चुनाव के चौसर पर वे दाँव लगा रही हैं, यह जानते हुए कि उन्हें कुछ भी खोना नहीं है। कुछ न पाया जा सके, यह तो हो सकता है मगर खोना कुछ नहीं है, यह पक्का है। पश्चिम बंगाल में अगला चुनाव छब्बीस में होगा। चौबीस और छब्बीस में दो साल का अन्तराल है, इतने दिनों में बंगाल को नए सिरे से साधा जा सकता है, अगर कुछ बिगड़ गया तो…। ममता बनर्जी सिद्ध योद्धा हैं।

ममता बनर्जी की राजनीति क्या है और लक्ष्य क्या है, यह जानने के लिए पीछे चलते हैं।

यह सन उन्नीस सौ पचहत्तर है, जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कांग्रेस को समेट देने का आन्दोलन चला और एक बार तो ऐसा लगने ही लगा कि काँग्रेस सिमट चुकी है, मगर ऐसा हुआ नहीं। जयप्रकाश आन्दोलन का फल यह हुआ कि तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सारे देश में क्षेत्रीय पार्टियों का उदय हुआ। दूसरी ओर संगठित पार्टी यानी सीपीएम को सरकार बनाने का मौका मिला। वह भी बंगाल की क्षेत्रीय पार्टी है, ऐसा ही उसने सिद्ध किया।

सीपीएम समेत सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने यह काम मुस्तैदी और ईमानदारी से किया कि कांग्रेस को अपने अपने इलाके में फिर से घुसने नहीं दिया। इसी दौर में जनसंघ में जान आई, और नए अवतार में वह भाजपा बनी। वह केन्द्र में बनी सरकारों को गिराती पड़ाती रही और खुद भी गिरती उठती रही। अन्ततः निर्णायक हैसियत उसने गुजरात में हासिल की। तब जयप्रकाश आन्दोलन को दूसरी आजादी के रूप में देखा गया था। इस दूसरी आजादी के बाद सभी राज्य सूबे में बदल गए और सभी मुख्यमन्त्री निरंकुश सूबेदार।

दूसरी आजादी के बाद ही निरंकुश सूबेदारों के मार्फत बड़े पैमाने पर राजनीति में अपराधियों के लिए जगह बनी। भारतीय राजनीति का अपराधीकरण हुआ। लोकतन्त्र का क्षरण हुआ। हालांकि जयप्रकाश आन्दोलन लोकतन्त्र की रक्षा और मजबूती के लिए हुआ था, मगर आन्दोलन की सफलता के बावजूद लोकतन्त्र में सूराख किया जाता रहा और दूसरी ओर जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने का कानून, जो जयप्रकाश आन्दोलन का अहम मुद्दा था, भी नहीं बना।

जयप्रकाश नारायण का आन्दोलन जब परवान पर था, ममता बनर्जी ने बंगाल की राजनीति में उछलना कूदना शुरू किया था। वे काँग्रेस के विद्यार्थी विंग छात्र परिषद में थीं। जयप्रकाश नारायण के आंदोलन का तीव्र विरोध कर रही थीं। उग्रता, तीव्रता और तीख्तता उनके व्यक्तित्व और राजनीति की पहचान बनी – भाषा और कार्रवाई दोनों स्तरों पर। वे बंगाल में हल्ला बोल राजनीति की नायिका बनीं। सीपीएम को ललकारती रहीं, लाठी खाती रहीं और मजबूती से टिकी रहीं। आजाद भारत की राजनीति में वे ऐसी इमेज वाली अकेली स्त्री हैं। आज की राजनीति में ऐसा कोई मर्द भी नहीं है। आज भी ममता बनर्जी अपनी इस पहचान की रक्षा करती रहती हैं।

ममता बनर्जी काँग्रेस में थीं, मगर उनकी राजनीति में काँग्रेस उनके लिए क्रमशः ‘अनकमफर्टेबल जोन’ बनती गई। ममता बनर्जी को सीपीएम को ललकारना था। मगर काँग्रेस ललकार वाली भाषा के आसपास भी नहीं है। काँग्रेस और सीपीएम का रिश्ता भी द्वन्द्वात्मक था। थोड़ा खट्टा और थोड़ा मीठा। ऐसी स्थिति में कांग्रेस और ममता बनर्जी का ‘क्लैश ऑफ इंटरेस्ट’ गहराता गया। ममता बनर्जी काँग्रेस से अलग हुईं।

काँग्रेस से अलग होकर ममता एक ओर सूबेदारों के समूह में शामिल हो गईं और दूसरी ओर भाजपा उनके लिए ‘कम्फर्ट जोन’ बन गई। यह भाजपा वह थी जो दूसरी आजादी की कोख से निकली थी। इस ‘कम्फर्ट जोन’ में बराबर की हिस्सेदार बनकर चुनाव लड़ीं और केन्द्र सरकार की मन्त्री भी बनीं। भाजपा से उनका कुछ ऐसा आमद-रफ्त बना है कि उनकी पार्टी से भाजपा में जाना और वापस आना यानी आना जाना बना हुआ है, ठीक वैसे ही जैसे मामा के घर जाते हैं और छुट्टी बिता कर लौट आते हैं।

दूसरी आजादी के उत्तराधिकारियों का सम्बन्ध लंगी मारने और कुर्सी खींचने का है। मोरारजी देसाई से लेकर एच डी देवेगौड़ा तक के दौर में भारत ने ऐसे त्रासद अंक और दृश्य देखे हैं। एक दूसरे को गाँथने के बजाए ठिकाने लगाना इनका सामान्य व्यवहार है। जब से भाजपा का गुजरात संस्करण देश के केन्द्र पर काबिज हुआ सभी सूबेदारों का काम तमाम हुआ। ममता बनर्जी को बेरोजगार करने के लिए गुजरात मॉडल ने वह सब किया जो गुजरात मॉडल का इतिहास है।

इस जमात में ममता बनर्जी अकेली ऐसी हुईं जिन्होंने गुजरात मॉडल की लगाम थाम ली और उसे मुंह के बल गिरा दिया। उसे आत्मचिन्तन शिविर में ढकेल दिया। गुजरात मॉडल को सबसे बड़ा डर काँग्रेस के उत्तराधिकारी से लगता रहा है। गुजरात मॉडल दिल्ली मिशन पर निकलने के पहले दिन से ही उसे शहजादा और पप्पू बता कर ध्वस्त करने के लिए गोलियाँ और गालियाँ दागता जा रहा है, मगर वह आज भी चुनौती बन कर गुजरात मॉडल के सामने अड़ा हुआ है। फिलहाल कांग्रेस उत्तर प्रदेश में इस तरह सक्रिय है कि गुजरात मॉडल के होश उड़े हुए हैं।

ममता बनर्जी ने गुजरात मॉडल को बंगाल में धूल चटाने का जो पराक्रम दिखाया, उससे उनके मान का ग्राफ राष्ट्रीय स्तर पर काफी ऊँचा हो गया। ममता बनर्जी ने यह सब बंगाल के विधान सभा चुनाव में बंगाल की क्षेत्रीय अस्मिता को जगा कर ही किया। लेकिन इस पराक्रम की वजह से अचानक ममता बनर्जी क्षेत्रीयता की सीमा लांघ कर राष्ट्रीय नेता जैसी दिखने लगी हैं। जो भाजपा को सत्ता से जाते हुए देखना चाहते हैं, वे उम्मीद से ममता बनर्जी को देखने लगे हैं।

ममता ने भाजपा को ललकारा है। साथ ही काँग्रेस को भी कोसा है। दोनों को एक साथ दाग कर वे काँग्रेस और भाजपा दोनों से अपना कद बड़ा होते हुए देखने की आकांक्षी हैं। अगर ऐसा हो सका तभी ममता बनर्जी आई के गुजराल, एच डी देवेगोड़ा, चंद्रशेखर और चरण सिंह की सूची में अपना नाम शामिल होते हुए देख सकेंगी। इनकी सूची में ही इसलिए कि अभी तक गैर काँग्रेसी या गैर भाजपाई को अपना टर्म पूरा करने का मौका नहीं मिला है। अगर ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी इतिहास का नया अध्याय लिखेंगी। उन्हें राजनीति में नया अध्याय लिखने का तजुर्बा है।

ममता बनर्जी के सामने भाजपा बड़ी चुनौती है तो काँग्रेस भी छोटी चुनौती नहीं है। पिछले चालीस सालों के दरम्यान तमाम कोशिशों के बावजूद काँग्रेस को मिटाया नहीं जा सका है। उसका दीया जलता रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में अगर काँग्रेस का खाता चार राज्यों में नहीं खुला तो भाजपा का खाता भी सात राज्यों में नहीं खुला था। सीटें और वोट प्रतिशत के मामले में भी काँग्रेस नंबर दो थी। भरोसे की बात यह है ममता बनर्जी की पार्टी वोट प्रतिशत के मामले में तीसरे नंबर पर थी, मगर काँग्रेस से पंद्रह प्रतिशत की दूरी पर। ममता बनर्जी को इस खाईं पर छलांग लगानी है। देखना है कि पीके छलांग की तैयारी कैसी कराते हैं। क्या ममता बनर्जी छलांग के लिए तैयार हैं?

अंत में

राजकिशोर की एक कविता का अंश :

राजनीति,

सबने बताया,

हरजाई है

उसी ने यह दुनिया बनायी है

जिसमें सभी एक दूसरे के दुश्मन हैं

.

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मृत्युंजय श्रीवास्तव

लेखक प्रबुद्ध साहित्यकार, अनुवादक एवं रंगकर्मी हैं। सम्पर्क- +919433076174, mrityunjoy.kolkata@gmail.com
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