नये आपराधिक कानून
1 जुलाई 2024 से देश के अन्दर नये आपराधिक कानूनों को लागू कर दिया गया हैं, जिसके बाद अँग्रेजों के जमाने के भारतीय दण्ड संहिता (इण्डियन पीनल कोड), दण्ड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसेड्योर कोड) और साक्ष्य अधिनियम (एविडेंस एक्ट) को ख़त्म कर दिया हैं। अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने आईपीसी (1860) की, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने सीआरपीसी (1898/1973) की और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 ने इण्डियन एविडेंस एक्ट (1872) की जगह ले ली है।
सार्वजनिक मंचों एवं विचार-विमर्शों में यह बात आती रही है कि अँग्रेजों ने अपनी औपनिवेशिक ताकत को मजबूत करने के लिए जो दण्ड विधान बनाये और भारत में लागू किये थे, उनको क्या अबतक, स्वतन्त्रता के साथ दशक बाद भी, उसी पूर्व स्वरूप में जारी रखना चाहिए? समय समय पर इस विषय पर अदालतों की टिप्पणियाँ भी आती रही हैं।
नये कानून के तहत 1 जुलाई से केस दर्ज होने शुरू हो गये हैं। इन कानूनों से जुड़े विधेयक को पिछले साल 2023 में संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) से पास करवाया गया था। 25 दिसम्बर 2023 को राष्ट्रपति ने तीनों कानूनों को अपनी मंजूरी दे दी थी। इस कानून के लागू होने के बाद से कई धाराओं और सजा के प्रावधानों में बदलाव आये हैं। पर कुछ राजनीतिक दल इसका जमकर विरोध भी कर रहे हैं।
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023
भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में कुल 358 धाराएँ हैं। पहले आईपीसी में 511 धाराएँ थीं। बीएनएस में 20 नये अपराध शामिल किए गये हैं। 33 अपराधों में सजा की अवधि बढ़ाई है। 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा का प्रावधान है। 83 अपराधों में जुर्माने की राशि बढ़ा दी गयी है। 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा का प्रावधान किया है। अधिनियम में 22 धाराओं को निरस्त किया गया है। साथ ही 8 नयी धाराएँ जोड़ी गयी हैं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में कुल 531 धाराएँ हैं। सीआरपीसी में 484 धाराएँ थीं। कुल 177 प्रावधान बदले गये हैं। इसमें 9 नयी धाराओं के साथ-साथ 39 नयी उपधाराएँ भी जोड़ी गयी हैं। 44 नये प्रावधान और स्पष्टीकरण जोड़े गये हैं। 35 सेक्शन में समय-सीमा जोड़ी गयी है और 35 सेक्शन पर ऑडियो-वीडियो प्रावधान जोड़ा गया है। कुल 14 धाराएँ निरस्त कर दी गयीं हैं।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए), 2023
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) में कुल 170 धाराएँ हैं। कुल 24 प्रावधान बदले गये हैं। दो नयी धाराएँ और छह उप-धाराएँ जोड़ी गयी हैं। 6 प्रावधान निरस्त किये गये हैं। नये कानून में छीना-झपटी से जुड़े मामले में बीएनएस की धारा 302 के तहत केस दर्ज होगा। पहले आईपीसी में धारा 302 में हत्या से जुड़े मामले का प्रावधान था। इसी तरह, गैर कानूनी रूप से एकत्र होने पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 144 लगाई जाती है। अब इसे धारा 187 कहा जाएगा।
जीरो एफ आई आर
पहली बार आपराधिक कानून के तहत ‘जीरो एफ आई आर’ का प्रावधान किया गया है। ‘जीरो एफआईआर’ का मतलब है कि, अब कोई भी व्यक्ति किसी भी पुलिस थाने में जाकर अपनी प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, भले ही अपराध उस थाना के अधिकार क्षेत्र में नहीं हुआ हो। नये कानून में जुड़ा एक दिलचस्प पहलू यह है कि गिरफ्तारी की सूरत में व्यक्ति को अपनी पसन्द के किसी व्यक्ति को अपनी स्थिति के बारे में सूचित करने का अधिकार है। इससे गिरफ्तार व्यक्ति को तुरन्त सहयोग मिल सकेगा।
45 दिन के अन्दर फैसला
गृहमन्त्री अमित शाह ने कहा था कि इन कानूनों को भारतीयों ने, भारतीयों के लिए और भारतीय संसद द्वारा बनाया है तथा ये औपनिवेशिक काल के न्यायिक कानूनों का खात्मा करते हैं। नये कानूनों के तहत आपराधिक मामलों में फैसला मुकदमा पूरा होने के 45 दिन के भीतर आएगा और पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय किए जाएँगे।
राजद्रोह की जगह देशद्रोह
कानूनों में संगठित अपराधों और आतंकवाद के कृत्यों को परिभाषित किया गया है, राजद्रोह की जगह देशद्रोह लाया गया है। पहले आतंकवाद की कोई व्याख्या नहीं थी, पर अब सशस्त्र विद्रोह्, विध्वंसक गतिविधियाँ, अलगाववाद, भारत की एकता, सम्प्रभुता और अखण्डता को चुनौती देने जैसे अपराधों की पहली बार इस कानून में व्याख्या की गयी है और इस अपराध में जो भी संलिप्त पाये जाते हैं, उनकी सम्पत्ति जब्त करने का भी प्रावधान है।
यहाँ यह भी चिन्ता जताई जा रही है कि ऐसे प्रावधानों द्वारा असहमति की अभिव्यक्ति या अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर खतरा हो सकता है और विपरीत विचार व्यक्त करने वाले कितनी आसानी से पुलिस तन्त्र के कब्जे में आ सकते हैं।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर नया अध्याय
नये कानून में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर एक नया अध्याय जोड़ा है, किसी बच्चे को खरीदना और बेचना जघन्य अपराध बनाया गया है और किसी नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म के लिए मृत्युदण्ड या उम्रकैद का प्रावधान जोड़ा गया है। दुष्कर्म पीड़िताओं का बयान कोई महिला पुलिस अधिकारी उसके अभिभावक या रिश्तेदार की मौजूदगी में दर्ज करेगी और मेडिकल रिपोर्ट 7 दिन के अन्दर देनी होगी। शादी का झूठा वादा करने, नाबालिग से दुष्कर्म, भीड़ द्वारा पीटकर हत्या करने, झपटमारी आदि केस दर्ज किए जाते हैं, लेकिन मौजूदा भारतीय दण्ड संहिता में ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं थे। भारतीय न्याय संहिता में इनसे निपटने के लिए प्रावधान किये गये हैं। नये कानून में महिलाओं, 15 वर्ष की आयु से कम उम्र के लोगों, 60 वर्ष की आयु से अधिक के लोगों तथा दिव्यांग या गम्भीर बीमारी से पीड़ित लोगों को पुलिस थाने आने से छूट दी जाएगी और वे अपने निवास स्थान पर ही पुलिस सहायता प्राप्त कर सकते हैं।
सामुदायिक सेवा
अब छोटे-मोटे अपराधों के लिए गिरफ्तार लोगों को सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा करनी होगी। संशोधित नये कानून में आत्महत्या का प्रयास, लोक सेवकों द्वारा अवैध व्यापार, छोटी-मोटी चोरी, सार्वजनिक नशा और मानहानि जैसे मामलों में सामुदायिक सेवा के प्रावधान शामिल हैं। सामुदायिक सेवा अपराधियों को सुधरने का मौका देती है। जबकि जेल की सजा उन्हें कठोर अपराधी बना सकती है। अब तक अदालतें पहली बार अपराध करने वाले या छोटे अपराध करने वालों को सामुदायिक सेवा की सजा देती रही हैं, लेकिन अब यह एक स्थायी कानून बन गया है। नये कानून के तहत पहली बार ऐसा प्रावधान किया है, जिसमें नशे की हालत में उपद्रव मचाने या 5,000 रुपये से कम की सम्पत्ति की चोरी जैसे छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा को दण्ड के तौर पर माना गया है।
जानकारों ने बताया खतरा
कानूनी विशेषज्ञों ने इन कानूनों को लेकर अपनी अलग-अलग राय दी है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अब कानून लागू करने वाली एजेंसियों, न्यायिक अधिकारियों और कानूनी पेशेवरों के लिए आगे बड़ी चुनौतियाँ हैं। ये कानून बड़ी संख्या में नागरिकों को उनके जीवन में किसी न किसी समय प्रभावित करेंगे। कई कानूनी जानकारों की ये भी दलील है कि नये आपराधिक कानूनों में, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बिना किसी नियन्त्रण और सन्तुलन के निरंकुश शक्तियाँ दी हैं, इससे खतरा भी हो सकता है। पुलिस की हिरासत की अवधि में वृद्धि जैसे नियमों से पुलिस उत्पीड़न के मामले और आम लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। पहले केवल 15 दिनों की पुलिस रिमाण्ड दी जा सकती थी, इसे बढ़ाकर 60 या 90 दिन कर दिया गया है। ट्रायल शुरू होने के पहले इतनी लम्बी पुलिस रिमाण्ड के प्रावधान पर विधि विशेषज्ञ चिन्ता जता रहे हैं। संविधान की सातवीं सूची के अनुसार ये कानून समवर्ती सूची में आते हैं, जिसके तहत राज्यों को भी इन विषयों पर कानून बनाने और उनमें बदलाव करने का अधिकार है।
नये आपराधिक कानून के लागू होने से पहले बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी समेत कई नेताओं ने केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर इसे रोकने की माँग की थी। कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे कई विपक्ष शासित राज्य नये कानून को लागू करने का विरोध कर रहे हैं। कॉंग्रेस सहित कई विपक्षी दल इस कानून का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों का कहना है कि इस कानून को बिना किसी व्यापक चर्चा के लागू किया गया है।
गौरतलब है कि संसद से ये विधेयक बीते साल ध्वनि मत से पारित किये गये थे. इन्हें दोनों सदनों से पारित करने के लिए सिर्फ 5 घण्टों की बहस हुई थी और ये तब पारित किए गये थे जब विपक्ष के 140 सांसद संसद से निलम्बित थे। विपक्ष ने माँग की है कि संसद नये आपराधिक कानूनों की फिर से जाँच करे, उनका दावा है कि ये देश को पुलिस राज्य में बदलने की नींव रखते हैं। हालाँकि बताया यह भी जाता है कि इन तीनों कानूनों को बनाने के पीछे बहुत लम्बी प्रक्रिया रही है। चार वर्षों तक चले गहन विचार- विमर्श के बाद इन्हें तैयार किया गया है। 18 राज्यों, 6 केन्द्र शासित प्रदेशों, सर्वोच्च न्यायालय, 16 उच्च न्यायालयों, 5 न्यायिक अकादमियों, 22 विधि विश्वविद्यालयों, 142 सांसदों, लगभग 270 विधायकों समेत जनता ने अपने सुझाव दिये हैं।
एक नजर में बदलाव
- 1 जुलाई से पहले दर्ज हुए मामलों में नये कानून का असर नहीं होगा। यानि जो केस 1 जुलाई 2024 से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जाँच से लेकर ट्रायल तक पुराने कानून का हिस्सा होगी।
- 1 जुलाई से नये कानून के तहत प्राथमिकी दर्ज हो रही है और इसी के अनुसार जाँच से लेकर ट्रायल पूरा होगा.
- नये कानून में ऑडियो-वीडियो यानि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर जोर दिया गया है। फॉरेंसिंक जाँच को अहमियत दी गयी है।
- कोई भी नागरिक अपराध के सिलसिले में कहीं भी जीरो प्राथमिक दर्ज करा सकेगा। जाँच के लिए मामले को सम्बन्धित थाने में भेजा जाएगा। अगर जीरो एफआईआर ऐसे अपराध से जुड़ी हैं जिसमें 3 से 7 साल तक सजा का प्रावधान है तो फॉरेंसिक टीम से साक्ष्यों की जाँच करवानी होगी।
- अब ई-सूचना से भी प्राथमिकी दर्ज होगी। हत्या, लूट या रेप जैसी गम्भीर धाराओं में भी ई-एफआईआर हो सकेगी। वॉइस रिकॉर्डिंग से भी पुलिस को सूचना दे सकेंगे। ई-प्राथमिकी के मामले में फरियादी को 3 दिन के भीतर थाने पहुँचकर प्राथमिकी की कॉपी पर साइन करना जरूरी होगा।
- फरियादी को एफआईआर, बयान से जुड़े दस्तावेज भी दिए जाने का प्रावधान किया गया है। फरियादी चाहे तो पुलिस द्वारा आरोपी से हुई पूछताछ के बिन्दु भी ले सकता है।
- प्राथमिकी के 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी जरूरी होगी। चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे।
- मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के भीतर जजमेंट यानि फैसला देना होगा। जजमेंट के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी।
- पुलिस को हिरासत में लिए गये शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में जानकारी देनी होगी। ऑफलाइन और ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी।
- महिलाओं-बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर बीएनएस में कुल 36 धाराओं में प्रावधान किया गया है। रेप का केस धारा 63 के तहत दर्ज होगा। धारा 64 में अपराधी को अधिकतम आजीवन कारावास और न्यूनतम 10 वर्ष कैद की सजा का प्रावधान है।
- धारा 65 के तहत 16 साल से कम आयु की पीड़ित से दुष्कर्म किए जाने पर 20 साल का कठोर कारावास, उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है। गैंगरेप में पीड़िता यदि वयस्क है तो अपराधी को आजीवन कारावास का प्रावधान है।
- 12 साल से कम उम्र की पीड़िता के साथ रेप पर अपराधी को न्यूनतम 20 साल की सजा, आजीवन कारावास या मृत्युदण्ड का प्रावधान है। शादी का झांसा देकर संबंध बनाने वाले अपराध को रेप से अलग अपराध माना है। यानि उसे रेप की परिभाषा में नहीं रखा गया है।
- पीड़ित को उसके केस से जुड़े हर अपडेट की जानकारी हर स्तर पर उसके मोबाइल नम्बर पर एसएमएस के जरिए दी जाएगी। अपडेट देने की समय-सीमा 90 दिन निर्धारित की गयी है।
- राज्य सरकारें अब राजनीतिक केस (पार्टी वर्कर्स के धरना-प्रदर्शन और आन्दोलन) से जुड़े केस एकतरफा बन्द नहीं कर सकेंगी। धरना-प्रदर्शन, उपद्रव में यदि फरियादी आम नागरिक है तो उसकी मंजूरी लेनी होगी।
- गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान है। तमाम इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कागजी रिकॉर्ड की तरह कोर्ट में मान्य होंगे।
- मॉब लिंचिंग भी अपराध के दायरे में आ गया है। शरीर पर चोट पहुँचाने वाले अपराधों को धारा 100-146 तक बताया गया है। हत्या के मामले में धारा 103 के तहत केस दर्ज होगा। धारा 111 में संगठित अपराध के लिए सजा का प्रावधान है। धारा 113 में टेरर एक्ट बताया गया है। मॉब लिंचिंग के मामले में 7 साल की कैद या उम्रकैद या फांसी की सजा का प्रावधान है।
- चुनावी अपराध को धारा 169-177 तक रखा गया है। सम्पत्ति को नुकसान, चोरी, लूट और डकैती आदि मामले को धारा 303-334 तक रखा गया है। मानहानि का जिक्र धारा 356 में किया गया है। दहेज हत्या धारा 79 में और दहेज प्रताड़ना धारा 84 में बताई गयी है।
- सभी जघन्य अपराधों के वारदात स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान शामिल किए गये हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य को हानि पहुँचाने को क्रूरता माना गया है। इसके तहत, यदि किसी महिला को आत्महत्या के लिए उकसाया जाता है या उसके जीवन या फिर उसके स्वास्थ्य को खतरे में डाला जाता है, तो उसे क्रूरता मानते हुए दोषी को तीन वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है।
- इन नये कानून से अपराधों की धारा संख्या में परिवर्तन आ गये हैं और वकीलों, न्यायालयों यहाँ तक कि आम जनता की जुबान पर चढ़ी ये आइपीसी की धाराएँ अब बदल गयी हैं और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की नयी धाराएँ हो गयी हैं। जैसे – हत्या की धारा 302 अब 103, हत्या का प्रयास 307 की जगह 109, गैर इरादतन हत्त्या 304 की जगह 105, रेप, गैंग रेप 375,376 की जगह 63,64,70, दहेज हत्त्या 304 बी अब 80, दहेज प्रताड़ना 498 ए अब 85, धोख़ाधड़ी 420 की जगह 318, चोरी 379 अब 303, लूट 392 अब 309, डकैती 395 अब 310 आदि।
21.सजा माफी के प्रावधान के दुरुपयोग से बचने के लिए नये प्रावधान कर दिये गये हैं। पूर्ण सजा माफी की जगह अब मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास, आजीवन कारावास कों कम से कम सात वर्ष की सजा और सात वर्ष के कारावास को कम से कम तीन वर्ष तक की सजा में बदल जा सकेगा अर्थात किसी गुनाहगार को पूरी माफी नहीं मिलेगी।
उम्मीद करनी चाहिए कि ‘दण्ड की जगह न्याय’ के जिस उद्देश्य से ये नये कानून लाये गये हैं, उस पर ये खरे उतरें परन्तु देश की न्याय व्यवस्था को बदलने वाले कानूनों को गहन विचार-विमर्श और पर्याप्त बहस के बाद लागू करना चाहिए। अधूरी संसद में सीमित समय में चर्चा कर विधेयक लागू करना प्रश्न पैदा करता है।