अतृप्त आत्मा की कहानी
किवतंदियों में जैसा सुना गया है, भूत, साया और रूह (अगर हैं तो) इन्हें अंधेरा पसन्द है। आधी रात। 12 बजे के बाद वाली रात। जयंती रंगनाथन का उपन्यास ‘शैडो’ भी आधी रात के बाद से ही शुरू होता है। जब तंत्र विद्या जानने वाले तैयार हो रहे होते हैं। ब्रह्म मुहुर्त में। यही कोई 4 बजे के आसपास पिछले जन्म की अतृप्त आत्मा की कहानी है ‘शैडो’। कहानी का मुख्य किरदार एक लेखक है। रात कहें या तड़के तीन बजे तक जागना उसकी दिनचर्या का हिस्सा है। अपनी गर्ल फ्रैंड पूर्वा की सुनाई एक सच्ची कहानी की ‘काव्या’ उसे प्रभावित करती है और वो उस पर ही अपना अगला उपन्यास प्लान कर लेता है। बस ये प्लानिंग ही उसे भूतों-रूहों की दुनिया में ले जाती है।
पूरा उपन्यास इस जन्म में पिछले जन्म और उससे पिछले जन्म की घटनाओं, असर और समाधान की तलाश में खत्म हो जाता है। पूर्वा, उमा, नोरा, काव्या, मेघना और मारिया से घिरा मयंक कभी ये नहीं मान पाता कि पिछले जन्म की बातें जानकर कोई व्यक्ति इस जन्म में गलतियाँ ठीक कर सकता है। लेकिन मेघना/काव्या की रूह अपने पिछले जन्म के प्रेमी/पति को किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहती और एक छोटी सी चर्चा के बाद ही उसे दिल्ली से वायनाड आने पर मजबूर कर देती है।
उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते कई जगह पर आपको उपन्यास के नायक से जलन भी महसूस होगी। वो कई लड़कियों से घिरा है। लेकिन ज्यों-ज्यों आप आगे बढ़ेंगे राहत महसूस करने लगेंगे। जैसे हैं, वैसे ठीक हैं।
उपन्यास का हर किरदार दिलचस्प है। उपन्यास में एक ही लड़के के इर्द-गिर्द कई लड़कियों के होने से कभी-कभी पाठक अटक भी सकते हैं। सावधानी बरतेंगे तो कहानी साफ-साफ समझ आएगी। ये फिर भी समझ में नहीं आएगा कि कौन सी लड़की मयंक (नायक) को अपना बनाना चाहती है, वो भी पूर्व जन्म के आधार पर। आप दिमाग लगाते रहेंगे, लेकिन लेखिका अंत तक ये बात छुपाकर रखने में सफल रहती है कि इतनी सारी लड़कियों में से रूह वाली लड़की कौन सी है। जितनी भी लड़कियाँ मयंक (नायक) के सम्पर्क में हैं, वो उन सभी से एक जैसा व्यवहार करता ही दिखाई देता है। सभी लड़कियाँ भी उससे वैसे ही मिलती हैं। सस्पेंस आखिर तक बना रहता है।
मयंक के अलावा एक और अहम किरदार है शोभित। पास्ट लाइफ कोच है। रिग्रेशन थेरेपिस्ट। लोगों को पिछले जन्म में ले जाता है। उपन्यास में रोजर सबास्टियन नाम का एक और दिलचस्प किरदार है। जो रहस्यमयी सा लगता है। राजा संतोष के नाम से आश्रम बनाया हुआ है। लेखिका उपन्यास में तिलिस्म बुनती हैं। सभी किरदारों को बड़ी ही खूबसूरती से एक-दूसरे से जोड़े रखती है।
भूत-प्रेत वाले इस उपन्यास में अगर पाठक ने हिम्मत रखी तो वो खूबसूरत वायनाड भी घूम सकता है। खूबसूरत केरल के उत्तर पूर्व का एक जिला। केरल के एकमात्र पठार की झलक भी पा सकते हैं, शर्त यही है कि उपन्यास के नायक और कथानक के साथ-साथ अनकही भौगोलिकता को आप देख सकें। जब मयंक आधी रात को मजबूरी में ऊटी के रास्ते से वायनाड लौटने को मजबूर होता है। ‘।।।दूर उसे हल्की टिमटिमाती रोशनी दिख रही थी, कोहरे की चादर में लिपटी।।। उसे पता नहीं था कि उसके पैरों के नीचे ज़मीन है या आसमान।
साया आगे जाकर रूक गया। मयंक ने अबकी तेज़ आवाज़ में कहा, “आर यू लिसनिंग? प्लीज़ टेल में द वे। होटल वायनाड सफ़ायर?” साया पीछे घूमा। लंबे गाउन में सिर पर स्कार्फ़ बांधे उस साये की बस दो चमकती आँखें दिख रही थीं। देखते-देखते साया ग़ायब हो गया। मयंक डर के मारे नीचे बैठ गया। टॉर्च की रोशनी जैसे ही ज़मीन पर पड़ी, उसके होश गुम हो गए। वह एक चट्टान पर बैठा था। आगे-पीछे कुछ नहीं था। चट्टान के नीचे गहरी खाई थी।’
आम तौर पर ऐसी चट्टानें आपको रोमांचित करती हैं। आप बैठकर समय गुजारना चाहते हैं, लेकिन जब दिमाग़ में साया चल रहा हो तो ये चट्टान ही डर भी पैदा करती हैं। जान का डर। लेखिका कहानी का तिलिस्म तो रचती हैं, लेकिन वायनाड की खूबसूरती का जिक्र साथ-साथ करती चलती हैं। जैसे उनका लंबा वक्त गुजरा हो वहाँ। एयरपोर्ट से वायनाड जाते हुए भी शहर की खूबसूरती का जिक्र देखिए, ‘ वह गाड़ी के शीशे से बाहर देखने लगा। क़रीने से सजी दुकानें, दुकानों के बाहर लटके बड़े केले के गुच्छे। स्कूटर चलाते साफ़-सफ़ेद धोती पहने हट्टे-कट्टे, साँवले-से आदमी, उनके पीछे साड़ी या चूड़ीदार कुर्ता पहनकर और बालों में गजरा लगाए बैठी लड़कियाँ। साइकिलों पर स्कूल से लौटते बच्चे। सब कुछ साफ़ और सुंदर।’
एक और जगह देखिए। ‘उन दोनों के बैठते ही टैक्सी ड्राइवर ने पूछा, “वेयर टू गो सार?” उमा ने मयंक की तरफ देखकर कहा, “कालीपेट्टा। सूचीपारा वॉटर फॉल।” ड्राइवर ने हाँ में सिर हिलाते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी। यह नया रास्ता था। रास्ते में कॉफ़ी के बाग़ान थे। मयंक ने खिड़की खोल ली। कॉफ़ी की भीनी-भीनी ख़ुशबू अंदर बसने लगी। हर तरफ़ हरियाली।’ जब आप इस उपन्यास को पढ़ना शुरू करते हैं, तो फिर ठहरने का मन नहीं करता। आँखें शब्दों पर होती हैं और दिमाग़ में जैसे फिल्म सी चलनी शुरू हो जाती है। सिनेमा हॉल में जैसे इंटरवल बाधक लगता है, वैसे ही इस उपन्यास के साथ भी है। शुरू किया तो रूक नहीं पाएंगे। और खास बात ये है कि उपन्यास ‘शैडो’ खत्म भी ब्रह्म मुहुर्त में ही होता है, जब रोजर अपनी शक्ति से भटकती रूहों को मुक्ति दिला देता है। मयंक नई जिन्दगी शुरू करता है।
नोट – उपन्यास पढ़ने वाले किसी घटना को पिछली जिन्दगी से ना जोड़ें, पास्ट लाइफ कोच की तलाश ना करें। उपन्यास की कहानी को सच्ची घटना ना मानें।