एक हजार साल बाद की दुनिया ‘3020 ई०’
किताब – 3020 ई०
विधा – उपन्यास
लेखक – राकेश शंकर भारती (यूक्रेन के प्रवासी भारतीय लेखक)
प्रकाशक – अमन प्रकाशन कानपुर
4 नवम्बर 2016 को एनडीटीवी वाले रवीश कुमार ने एक प्राइम टाइम किया दूषित होते वातावरण को लेकर जिसमें उन्होंने कहा था। ‘इस दिल्ली की हवा में देखते-देखते कार्बन और नाइट्रोजन के खानदान के बाराती उधम मचाने लगे हैं। आम शहरी को ख़ौफ़ है कि अगणित बाराती उनके फेफड़ों को कहीं खोखला न कर दें। शरीर की नलियों में घुसकर हमला न कर दे। हवा पर किसका काबू रहा है न हुकूमत का , न आवाम का। हवा में तैरती खुशबू आजाद है। उसमें घुला जहर तो और भी आजाद है। कुछ तो है इस बार की दिल्ली की हवा में क्यूं कहते हैं 17 साल में पहली बार खराब है। बच्चों ने तो नकाब खरीद लिए, बड़ों की भी बारी है। नकाब पहने लोगों के शहर में खतरा सिर्फ सांसों को नहीं है। बंदिश में आपकी आवाज है। आफत में आपकी जान है। वो जो उनके आदमी हैं अपने चेहरे पर कार्बन पोते गश्त लगा रहे हैं। किसी का नाम PM2.5 है तो किसी का नाम PM 10. PM 2.5 तो सबसे अधिक खतरनाक है। आलम है कि PM 2.5 वाले ब्रांड से लोग डरने लगे हैं। घर तक नहीं पहुंच पाएंगे, अस्पताल की हवा खाएंगे। हर आदमी के पीछे एक आदमी है। सबको शक है ये किसका आदमी है। ये कार्बन का काल है यही तो आपातकाल है।
अब आप सोच रहे होंगे किताब की समीक्षा करते हुए प्राइम टाइम की खबर क्यों सुनाने लगा। उसका कारण है इस उपन्यास की कहानी। उपन्यास 3020 ई० कोरोना वायरस (कोविड-19), लॉकडाउन, पृथ्वी पर प्रलय और मंगल पर मानव बस्ती पर आधारित उपन्यास है। इस उपन्यास में तीन कहानियाँ समानांतर चलती है। जिसमें एक कहानी है लेखक की स्वयं की , दूसरी कहानी है उल्याना की और तीसरी कहानी है दादा, बेटा और पोते की। दादा धर्मपाल, बेटा द्वारपाल और पोता रामपाल। उल्याना की तीन शादी हुई है। पहले बाइस साल की उम्र में उसे प्यार हुआ लेकिन उसका पति उसी की सहेली के साथ चल निकला दूसरे का भी यही हुआ और तीसरा जो डॉक्टर था वह कोरोना के कारण मर गया। उल्याना की कहानी सबसे ज्यादा मार्मिक है और प्रेम में विफल होने के साथ-साथ यह कहानी स्त्री विमर्श के मुद्दे पर भी ठहर कर बात करती है। एक औरत जो कहीं भी रहती हो इस दुनिया में उसके साथ हमेशा ऐसा ही होता है कि जीवन में स्थाई मर्द की तलाश में वह कई मर्दों की बेवफाई का शिकार होती है।
इसके बाद जो बाप, दादा और पोते की कहानी है वह भी उल्याना की तरह 2020 ई० की दास्तान है। दादा, बेटा अपने जीवन में प्रेम की सार्थक परिणीति को नहीं पा सके इसलिए वे पोते के प्रेम के भी खिलाफ हैं लेकिन जैसे ही कोरोना नाम का वायरस आया और वे तीनों इसकी चपेट में आए तो दादा और बाप का सोया जमीर जाग उठा और उन्होंने बेटे को उसका प्रेम दिलवा दिया उनकी शादी करवा दी। अब तीसरी कहानी जिसमें लेखक है उसकी पत्नी है और बेटा, बेटी है। लेखक का बेटा दवित जिसे मंगल ग्रह के बारे में ज्यादा से ज्यादा ज्ञान हासिल करना है अपनी जिज्ञासाओं का शमन करना है। वह अपने पिता से इसके बारे में पूछता है और कार्टून के अलावा मंगल ग्र से जुड़ी फिल्में देखता है। कहानी एकदम से मोड़ लेती है और एक हजार साल आगे चली जाती है। जहां लेखक और उसका बेटा मंगल पर पहुंच चुके हैं उनके साथ-साथ देश-विदेश के 4 हजार लोग आए हैं। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी भी आए हैं। भई इनको तो वैसे ही पूरी दुनिया घूमने का चस्का लगा हुआ है। जनाब जब तक घूम नहीं लेंगे चैन से नहीं बैठेंगे। अब कल्पना में ही सही लेखक ने उन्हें दुनिया से अलग मंगल पर भी अपने साथ शामिल कर लिया है। कमाल की कल्पना शक्ति है। उपन्यास में कुछ अच्छी बातें भी है तो कुछ कल्पना की अतिशयता में इतनी डूबी हुई है कि वमन करने की इच्छा जाग्रत होती है।
एक हजार साल बाद जब मंगल पर लोग रहने लगे हैं तो वहां स्कूल ,कॉलेज, अस्पताल, विश्वविद्यालय भी खुल गए हैं और करीबन 40-45 साल बाद लेखक का अंत भी वहीं होता है। जो 4 हजार लोग गए थे वे अब संतति उत्पन्न करके 25 हजार हो गए हैं। एक तरफ वहां मंगल पर बैठे मोदी जी जनसंख्या नियंत्रण के बारे में भी चर्चा करते दिखाई देते हैं और एक साल बाद मोदी जी तो वापस हिंदुस्तान यानी पृथ्वीलोक आ जाते हैं लेकिन बाकी लोग वहीं जीवन यापन करते हैं। उन्हें धरती की याद आती है लेकिन वे आ नहीं पाते। क्योंकि आएंगे तो बहुत ज्यादा खर्चा होगा। पहले ही धरती का इतना दोहन कर चुके हैं कि एक बार वहां कुछ लोगों को जीवन शुरू करने के लिए भेज दिया तो उन्हें वापस क्यों लाना। हम मानव जाति वैसे भी प्रकृति को चुनौती देने में आगे रहते हैं तभी तो यह हाल हो गया है कि हिंदुस्तान की जनसंख्या 5 अरब को पार कर गई है 3020 में। जब तब धरती का तापमान एकदम से बढ़ जाता है और जब तब एकदम से गिर जाता है। उपन्यास में टाइम ट्रेवल यानी यात्रा समय भी दिया गया है। सारा लोचा इस टाइम ट्रेवल से ही होता है और सिर धुन लेने को मन करता है। एक बारगी आधा उपन्यास पढ़ लेने के बाद मन करता है इसे छोड़ दिया जाए इसकी अतिशय कल्पना शक्ति के लिए लेकिन धैर्य रखते हुए जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं तो मंगल ग्रह के अलावा हमें और भी कई जानकारियां मिलती हैं। इसके अलावा इस उपन्यास में तृतीय विश्व युद्ध का जिक्र भी है। जिसमें परमाणु हमले हुए और धरती से बहुत कुछ खत्म हो गया है। हालांकि गायत्री परिवार के संस्थापक , तपस्वी और 35 सौ से भी अधिक किताबों के लेखक श्री राम शर्मा आचार्य ने एक बार कहा था कि तीसरा विश्वयुद्ध ऐसा होगा कि वह पत्थरों से लड़ा जाएगा। मतलब पाषाण युद्ध होगा। क्योंकि उस समय हर देश परमाणु शक्ति से सम्पन्न होगा और धरती के होने वाले वाले नुकसान को देखते हुए निर्णय लिया जाएगा कि युद्ध पत्थरों से लड़ा जाए।
हिंदी साहित्य में प्रयोग हमेशा से होता रहा है और यह उपन्यास भी इसी प्रयोगधर्मिता का उदाहरण है कि इसमें खगोल विज्ञान का जिक्र है जो मेरे ध्यान में आज तक किसी उपन्यास में नहीं लिखा गया है हिंदी में। हालांकि इस उपन्यास में लेखक के साथ ही दूसरे देश से लोग आते हैं तो उसमें एक अन्य प्रवासी साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा भी आते हैं। मोदी जी वहां आकर अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताते हैं कि उन्होंने चाय बेची थी। भाई ये 3020 ई० के भारत की आप बात कर रहे हैं और उसमें भी मोदी का संघर्ष वैसा ही रखा है जैसा आज हम देखते सुनते और पढ़ते हैं। इसके अलावा लेखक राष्ट्रवाद का चोला पहन कर व्यक्ति विशेष की तारीफ करते हुए इतना डूब जाते हैं कि सदानारायनी नीरा माँ गंगा को भी 500 सालों में ही धरती से चलता कर देते हैं। माना कि हजारों नदियां आज लुप्त हो गई हैं लेकिन माँ कहीं जाने वाली गंगा तो वरदान में मिली है तपस्वी भगीरथ को। भगीरथ की मानस पुत्री गंगा पुण्य सलिला, पापमोचिनी और सदियों से मोक्ष दिलाने वाली है। जिसे भगीरथ अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए लाए थे। महाराज भगीरथ अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशी राजा थे । वह राजा दिलीप के पुत्र और महाराज अंशुमान के पौत्र थे। अंशुमान महाराज सगर के पुत्र थे। एक प्रचलित कथा के अनुसार अशुमान ने अपने पूर्वजों के मोक्ष की जिम्मेदारी लेते हुए राज-पाट अपने पुत्र दिलीप को सौंप दिया था। उन्होंने इसके लिए घोर तपस्या की और अपना शरीर त्याग दिया। महाराज दिलीप ने भी गंगा को धरती पर लाने के अथक प्रयास किए और रुग्णावस्था में स्वर्ग सिधार गए। अब महाराज भगीरथ ने प्रण किया की वह किसी भी हालत में गंगा को धरती पर लाएंगे और अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलवाएंगे। उन्होंने घोर तप किया और गंगा को धरती पर लाने में सफल हुए।
भगीरथ ने जब गंगा को धरती पर लाने के संकल्प लिया तब उनका कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने राज-पाट अपने मंत्रियों को सौंपा और गोकर्ण तीर्थ में जाकर घोर तपस्या में लीन हो गए। जब स्वयं ब्रह्मा उनको वरदान देने के लिए आए तो उन्होंने दो वर माँगे पहला पितरों की मुक्ति के लिए गंगाजल और दूसरा कुल को आगे बढ़ाने वाला पुत्र। ब्रह्मा ने उनको दोनों वर दिये। साथ ही यह भी कहा कि गंगा का वेग इतना अधिक है कि पृथ्वी उसे संभाल नहीं पाएगी इसलिए हे भगीरथ गंगा के धरती पर अवतरण के लिए तुमको महादेव से सहायता मांगनी होगी। महादेव को प्रसन्न करने के लिए भगीरथ ने पैर के अंगूठों पर खड़े होकर एक वर्ष तक कठोर तपस्या की और भूतभावन ने प्रसन्न होकर भगीरथ को वरदान दिया और गंगा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया । लेकिन गंगा को अपने वेग पर बड़ा अभिमान था। गंगा का सोचना था कि उनके वेग से शिव पाताल में पहुँच जायेंगे। शिव को जब इस बात का पता चला तो उन्होने गंगा को अपनी जटाओं में ऐसे समा लिया कि उन्हें वर्षों तक शिव-जटाओं से निकलने का मार्ग नहीं मिला।
जब गंगा शिवजटाओं में समाकर रह गई तो भगीरथ ने फिर से तपस्या का मार्ग चुना। तब भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर गंगा को बिंदुसर की ओर छोड़ा । गंगा यहां से सात धाराओं के रूप में प्रवाहित हुईं। ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित हुई। सुचक्षु, सीता और महानदी सिंधु पश्चिम की तरफ प्रवहमान होने लगी। सातवीं धारा ने राजा भगीरथ का अनुसरण किया। राजा भगीरथ गंगा में स्नान करके पवित्र हुए और अपने दिव्य रथ पर चढ़कर चल दिये। गंगा उनके पीछे-पीछे चलने लगी। रास्ते में जह्नमुनि का आश्रम था गंगा के जल से जह्नमुनि की यज्ञशाला बह गयी। क्रोधित होकर मुनि ने सम्पूर्ण गंगा जल पी लिया। इस पर चिंतित होकर समस्त देवताओं ने जह्नमुनि का पूजन किया और गंगा को उनकी पुत्री बताते हुए क्षमा-याचना की।
देवताओं की प्रार्थना पर जह्न ने कानों के मार्ग से गंगा को बाहर निकाला। तभी से गंगा जह्नसुता जान्हवी भी कहलाने लगीं। इसके बाद भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तट तक पहुँच गयीं। यहां से भगीरथ गंगा को कपिल मुनि के आश्रम ले गए और अपने पितरों की भस्म को गंगा के स्पर्श से मोक्ष दिलवाया। इस पर प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने वरदान दिया कि ‘हे भगीरथ , जब तक समुद्र रहेगा, तुम्हारे पितर देवतुल्य माने जायेंगे और गंगा तुम्हारी पुत्री कहलाकर भागीरथी नाम से विख्यात होगी। साथ ही वह तीन धाराओं में प्रवाहित होगी, इसलिए त्रिपथगा कहलायेगी।’
अब कोई कहे कि मिथकों में प्रचलित है यह कहानी तो हमारा , आपका लेखन भी तो कल्पना का सहारा पाकर ही अपनी बेल को पुष्पित-पल्लवित कर रहा है। और विज्ञान के बहुत सारे परिणाम में इन मिथक और धर्म शास्त्रों की बात को एक माना गया है। भगवान हनुमान छलांग लगाकर समुद्र पार कर गए हजारों मील का, हैरी पॉटर झाड़ू के सहारे आसमान में उड़ रहा है तो मोदी जी 3020 में क्यों नहीं चाय बेचने के बाद राजनीति में नहीं आ सकते। और 3020 में भी वे उतनी ही राज्यसभा, लोकसभा सीट जीत रहे हैं जितनी 21 वीं सदी में जीती है हकीकत में और हमें अपने कल का नहीं पता लेकिन हम कल्पना करके एक हजार साल बाद लोकसभा, राज्यसभा में मोदी को देख रहे हैं। है न कमाल की कल्पना। कल्पना है क्या ही कीजिएगा। वैसे भी एक रूसी भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने भी भविष्यवाणी की थी कि 21 वीं सदी में हिंदुस्तान में एक ऐसा नेता सत्ता में आएगा जिसके बाद भारत पुनः विश्ववगुरु कहलाएगा।
नास्त्रेदमस की कई भविष्यवाणी सच होने के बाद सम्भवतः लेखक ने 3020 ई० में भी मोदी को अपने साथ ले आए हैं। हालांकि उपन्यास में कुछ तथ्य भी दिए गए हैं मसलन कोरोना से मरने वाले लोगों का आंकड़ा, पाकिस्तान और उसके बाद चीन के साथ गलवान घाटी में मरने वाले सैनिकों के नाम भी उपन्यास में बड़ी श्रद्धा भाव, आदर भाव से लिए गए हैं जो अच्छे भी लगते हैं और तर्कसंगत भी। लेकिन भाषा शैली की बात करूं तो जब लेखक का बेटा या अन्य कोई पात्र विदेशी भाषा में या मंगल पर ही मैथिली भाषा में बात करता है तो उन संवादों को हिंदी में दिया गया है। अच्छा होता उन्हें उन्हीं भाषा में लिखा जाता और बाद में हिंदी में उसका अर्थ बताया जाता तो भाषा शैली के लिहाज से यह उपन्यास और सुदृढ हो सकता था। कथा वस्तु औसत है कल्पना की अतिशयता में डूबी हुई है लेकिन सकारात्मक भी लगती है कहीं-कहीं और लेखन हमें सकारात्मक होना ही सिखाता है।
मोदी जी का जन्मदिन केक भी मंगल ग्रह पर काटा गया है। अभी मात्र नौ माह ही हुए हैं और वहां खाना बनने लगा है। जबकि खगोल विज्ञान के मुताबिक मंगल पर ऑक्सीजन नहीं है इसका भी जिक्र है कि कुछ किलोमीटर के दायरे में जो दुनिया वहां बसाई गई है उसमें हर तरह के संसाधन मौजूद हैं। उपन्यास का अंत बड़ा ही दुखद है। बेहतर होता कि लेखक पृथ्वीलोक पर वापस अपने आप को ला पाते। पृथ्वी लोक पर आने के लिए उनके भीतर जो तड़प है उसे महसूसा जा सकता है। कुलमिलाकर हिंदी साहित्य में यह प्रयोगधर्मी उपन्यास के रूप में जाना जाएगा। मुझे लगता है कि कोरोना महामारी की आपदा को अवसर में बदलने का यह अच्छा कार्य है। सर्जनात्मक कार्य है लेकिन इसे लिखने में जल्दबाजी कि गई है। इससे पहले ‘इस जिंदगी के उस पार’ तीसरे वर्ग के लोगों पर आधारित हिंदी साहित्य का पहला कहानी संग्रह अमन प्रकाशन से और अब ‘3020 ई०’ भी अमन प्रकाशन से आ चुका है। इसके अलावा ‘मैं तेरे इंतज़ार में’ पुरुष वेश्यावृत्ति पर आधारित उपन्यास प्रलेक प्रकाशन , ‘नीली आँखें’ नवजागरण प्रकाशन आ चुके हैं। यूक्रेन में रहते हुए लेखन कर रहे लेखक राकेश शंकर भारती का कथा संसार हमेशा नया रहता है।
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