सामयिक
आप ने मास्क नहीं पहना तो उन पर क्या फर्क पड़ेगा?
आप कार में जा रहे हैं। मास्क पहनना भूल गए हैं। अचानक पुलिस आप को रास्ते में रोक कर मोबाइल में आप का फोटो खींच लेती है। आप क्या करेंगे? मास्क नहीं पहना, इसलिए साॅरी कह कर चुपचाप जुर्माने की रकम भर देंगें? या फिर मेरा फोटो क्यों खींचा कह कर शोर मचाएंगें? अस्पताल जा रहा हूं, कोई मर गया है आदि बिना सिरपैर के बहानों का इमोशनल पैंतरा आजमाएंगें? पटाने के लिए कुछ रुपए भरी मुट्ठी सामने करेंगे या फिर मीटिंग में जाने के लिए दैर हो रही है की किचकिच करते हुए मां-बहन समान गाली दे कर उनका अपमान करेंगे?
हकीकत में आप उसकी मौसी के बेटे नहीं हैं।आप उसके सगे दादा के भाई के बेटे या बेटी के बेटे भी नहीं हैं। इसलिए आप मास्क पहनो या न पहनो, इससे उन पर कोई फर्क नहीं पड़ते वाला। आप को कोरोना होता है तो उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं होने वाला और आप को कोरोना न हो तो भी उनकी जिंदगी वैसी की वैसी ही रहने वाली है, जैसी है। यह जानते हुए भी वे 42 डिग्री तापमान में रास्ते के बीचोबीच खड़े हो कर हम सब को मास्क पहनने के लिए समझाते हैं।
आप नहीं पहनते तो नियम तोड़ने के अपराध में आप से जुर्माना वसूल करते हैं, जिससे आप जुर्माना भरने के डर से मास्क पहनें। कोरोनाकाल में डाक्टरों ने जितना काम किया, उतना ही काम पुलिस वालों ने भी किया है।आप ने उन्हें धमकाया, अपमानित किया, गालीगलौच की, पर उन्होंने रास्ते पर खड़े रहना नहीं छोड़ा। जिस तरह कुछ डाक्टरों ने रेमडिसिवर की कालाबाजारी कर इस बात को सच साबित किया है कि आम अच्छा भी होता है और खराब भी, उसी तरह कुछ पुलिस वालों ने डंडेबाजी कर के, धमका कर, गलत तरह से गुस्सा उतार कर मानवता की ऐसीतैसी की है। इन पुलिस वालों की वजस से सभी पुलिस वालों को तो खराब नहीं कहा जा सकता। सभी पुलिस वाले खाऊ नहीं होते और सभी पुलिस वाले गुंडागर्दी भी नहीं करते।
जिस तरह हम सब के अंदर मानवता होती है, उसी तरह ऊन लोगों के अंदर भी मानवता होती है। इन लोगों की भी छाती की बाईं ओर एक दिल होता है, जो धड़कता भी है। खाकी वर्दी के पीछे इन्होंने एक कफन संभाल रखा है। शायद इसीलिए इन्हें किसी तरह का डर नहीं सताता। भूकंप की कंपकंपाहट के बीच ये कांपते नहीं, बाढ़ में ये बहते नहीं, कोरोना जैसी भीषण महामारी के बीच लंबी छुट्टी ले कर ये घर में भी नहीं बैठ सकते। भारी तूफान के बीच भी ये व्यवस्था करने में लगे रहते हैं। हम इन्हें अपने मापदंडों से मापते हैं। हमारी शिकायत के आधार पर ये लोग चोर-खूनी-बलात्कारी को पकडंते हैं तो भगवान जैसे लगते हैं।
पर यही पुलिस जब नियम तोड़ने पर चालान काटती है तो यमराज की तरह लगती है। आखिर ऐसा क्यों? आप ने कभी काम के प्रेशर का अनुभव किया है? बिना एसी 42-45 डिग्री तापमान में भरी दोपहरी काली त्वचा के साथ घंटोंघंटों खड़े रहते हैं। असह्य गर्मी के बीच पसीने से लथपथ आप अपना आपा खो बैठते हैं। चीखते चिल्लाते हैं। प्रेशर में आने पर हाथ में आने वाली चीजों को इधर-उधर फेंकते हैं। एक बार सोच कर देखो कि इस कोरोना के समय में घरपरिवार से दूर रास्ते पर खड़े पुलिस वाले पर कितना प्रेशर होता होगा। नींद पूरी न होने पर हमारा दिमाग खराब हो जाता है। जबकि हमारे प्रोटक्शन के लिए रात में 4-5 घंटे सोने वाली पुलिस अपने दिमाग को कैसे काबू में रखती होगी? इनकी मां वर्क फ्राम होम करने के लिए नहीं कहती होगी? पत्नी और बेटी घर में रहने के लिए नहीं समझाती होगी? तब भी ये रास्ते पर खड़े रहते हैं पहरा देने के लिए। बुरे समय में भी अपने परिवार के साथ रहने के बजाय खाकी वर्दी चढ़ा कर रास्ते पर भटकते रहते हैं।
लोगों में पुलिस का डर होना चाहिए। पुलिस का खौफ भी होना चाहिए। पुलिस के डंडे के डर से चोरी होना रुक जाना चाहिए। पर पुलिस के झंझट में कौन पड़े, यह डर जनता में बिलकुल नहीं होना चाहिए। सामान्य आदमी को एफआईआर की, धाराओं की भाषा नहीं आती, उसे चार्जशीट और पंचनामा की भी जानकारी नहीं है। सामान्य आदमी थाने में बैखौफ दाखिल हो सके, पुलिस को इस तरह की कोशिश करनी चाहिए।
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बेशक पुलिस का काम मुश्किल है। व्हाट्सएप मैसेज से इन्वस्टिगेशन करने वालों की समझ में यह नहीं आएगा। ये लोग आत्महत्या करने के लिए पुल पर चढ़े लड़के को समझा कर नीचे उतारते हैं और उसे उसके घर तक पहुंचाते हैं। आधी रात को आत्महत्या करने घर से निकली पत्नी को खोज निकालते हैं। पति-पत्नी के बीच समझौता कराते हैं। यही लोग खूनी को खोज निकालते हैं और कोर्ट में बलात्कारी को सजा मिल सके, इसकी भी तैयारी करते हैं। हम सब रात को चैन से सोते है, इसमें थोड़ी-बहुत भूमिका पुलिस की भी होती है। पुलिस वसूली करती है, यह कहने का अधिकार मात्र उन्हें ही है जिन्होंने सौ या पचास की नोट निकाल कर जाने देने के लिए गिड़गिड़ाया नहीं है। जिन्होंने रांग साइड में वाहन नहीं चलाया, जिन्होंने रास्ता लंबा न पड़े, इसलिए डायवर्जन से कट नहीं मारा, इस तरह के लोग बेवक पुलिस की वसूली के सामने आंखें लाल कर सकते हैं। पर जो नियम-कानून को जेब में रख कर चलने की हिम्मत रखते हैं तो पुलिस भी हाथ में डंडा पकड़ने की हिम्मत रखती है। कुछ पुलिस वाले यह सब जरूर करते हैं, पर ऐसे लोगों की वजह से पूरे के पूरे पुलिस विभाग को तो खराब नहीं कहा जा सकता।
आप अपने इलाके के पुलिस वालों के चेहरे ध्यान से पहचानते हैं। जिस आदमी की वजह से आप की रातों की नींद नहीं खराब होती, आप का परिवार सुरक्षित रहता है और आप के बच्चे सड़क पर आराम से घूमफिर सकते हैं। अगर यह पुलिस वाला सामने आ जाए तो पहचान लेंगें न? अगर नहीं तो एक बार जा कर अपने इलाके के पुलिस वालों से जरूर मिलें। उन्हें थैंकयू कहिए, उनके परिवार वालों को थैंकयू कहिए। अपने जीवन की हिफाजत करने वाले के लिए इतना तो बनता ही है।