सत्रहवीं लोकसभा चुनाव का परिणाम और अठारहवीं लोकसभा का चुनाव
सत्रहवीं लोकसभा चुनाव की घोषणा चुनाव आयोग ने 10 मार्च 2019 को की थी। संभव है, आगामी लोकसभा चुनाव की घोषणा उसी समय हो, उसके आसपास हो। पिछला चुनाव सात चरणों में सम्पन्न हुआ था। 11 अप्रैल 2019 को 91, 18 अप्रैल को 97, 23 अप्रैल को 115, 29 अप्रैल को 71, 6 मई को 51, 12 मई को 59 और 19 मई को 59 सीटों पर मतदान हुआ था। 23 मई 2019 को चुनाव-परिणाम घोषित हुआ था। इस चुनाव में मतदाताओं की संख्या 91 करोड़ 19 लाख 50 हजार 734 थी, जिनमें 67.40 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था। पिछले लोकसभा चुनाव (2014) से इस चुनाव में कांग्रेस की 8 और भाजपा की 21 सीटें बढ़ी थीं। कांग्रेस की सीट 44 से बढ़कर 52 और भाजपा की सीट 282 से बढ़कर को 303 हुई थी। भाजपा को 37.36 और कांग्रेस को 19.49 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। भाजपा का मत 6.36 प्रतिशत बढ़ा था और कांग्रेस का मात्र 0.18 प्रतिशत। भाजपा के पास गठबंधन (राजग) की कुल 353 सीट थी और कांग्रेस के पास 91। अन्य दलों को 98 सीट प्राप्त हुई थी।
अठारहवीं लोकसभा चुनाव की घोषणा अभी तक चुनाव आयोग ने नहीं की है। इस चुनाव-पारिणाम के बाद ही यह मालूम होगा कि किस राजनीतिक दल और गठबन्धन ने क्या हासिल किया है और उसे कितना नुकसान पहुँचा है। भाजपा को सत्रहवें लोकसभा चुनाव में कुल 22 करोड़ 90 लाख 76 हजार 879 मतदाताओं ने वोट दिया था और कांग्रेस के मतदाताओं की कुल संख्या 11 करोड़ 94 लाख 95 हजार 214 थी। इस संख्या को देखने-समझने के बाद ही आगामी लोकसभा के चुनाव परिणामों का आसानी से अनुमान किया जा सकता है। सत्रहवीं लोकसभा में कुल 36 राजनीतिक दलों के सांसद हैं। इन दलों की कुल सांसद और वोट-संख्या को जानकर ही हम इनके संबंध में कुछ अनुमान कर सकते हैं। अब चुनाव में जन-जीवन के मुद्दे बहुत प्रभावशाली नहीं रहते। सामान्य जन-मानस को जिस प्रकार अपने पक्ष में प्रभावित और अनुकूलित किया गया है, उस ओर भी हमारा ध्यान नहीं जाता। सब कुछ बदला जा चुका है। मन मस्तिष्क पर कब्जा जमाने का सिलसिला जारी है। भारत में चुनावी लोकतंत्र के समक्ष न कोई मूल्य है, न आदर्श। भाजपा अबकी बार चार सौ पार का नारा लगा रही है। जो गर्भ में है, उसके लिंग, रूप आकार आदि के बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। पिछले चुनाव परिणामों को सामने रखकर अठारहवीं लोकसभा के चुनाव-परिणामों का कुछ अन्दाज लगाया जा सकता है। इसलिए बेहतर है, हम सत्रहवीं लोकसभा की दलीय उपलब्धियों पर ध्यान दें।
पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में भाजपा और कांग्रेस के बाद सर्वाधिक सीटें द्रमुक को प्राप्त हुई थी -23 ।द्रमुक को 2.26 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ था। कुल 1 करोड़ 38 लाख 77 हजार 992 मतदाताओं ने इसके पक्ष में वोट डाले थे। इसके बाद दो राजनीतिक दलों – तृणमूल कांग्रेस और वाई एस आर कांग्रेस पार्टी की सांसद संख्या 22 थी। तृणमूल कांग्रेस को 4.07 प्रतिशत मत मिले थे और 2 करोड़ 49 लाख 29 हजार 330 मतदाताओं ने उसे वोट दिये थे। वाई एस आर कांग्रेस पार्टी की सांसद संख्या तृणमूल कांग्रेस की सांसद संख्या के बराबर थी, पर वोट प्रतिशत और मतदाताओं की कुल संख्या में अंतर था। वाई एस आर कांग्रेस पार्टी को 2.53 प्रतिशत वोट मिले थे और उसके मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 55 लाख 37 हजार 06 थी। शिवसेना में टूट बाद की घटना है। 2019 में शिवसेना एक थी, उसका विभाजन नहीं हुआ था। उसके सांसदों की संख्या 18 थी, वोट प्रतिशत 2.10 था और मतदाता थे- 1 करोड़ 28 लाख 58 हजार 904। इस चुनाव में जदयू ने लोकसभा की 16 सीटों पर जीत हासिल की थी। उसका वोट प्रतिशत 1.46 था और उसके पक्ष में 89 लाख 26 हजार 679 मतदाताओं ने मतदान किया था। सत्रहवीं लोकसभा में केवल 8 दलों कांग्रेस, द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस, वाई एस आर कांग्रेस पार्टी, शिवसेना, जदयू और बीजद (बीजू जनता दल) और बसपा की सांसद-संख्या दो अंकों में थी। बीजद को इस चुनाव में 1.66 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ था और उसे कुल 1 करोड़ 17 लाख 4 हजार 21 मत प्राप्त हुए थे। उसके सांसदों की संख्या 12 थी। मायावती की पार्टी बसपा ने 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। इस पार्टी का वोट प्रतिशत 3.63 था और कुल 2 करोड़ 22 लाख 46 हजार 501 मतदाताओं ने बसपा को वोट दिया था।
सत्रहवीं लोकसभा में भाजपा के सांसद कांग्रेस के सांसदों से लगभग छह गुना अधिक थे। सौ से ऊपर केवल भाजपा के ही सांसद थे। दो अंकों में केवल आठ दलों के सांसद थे। इसके बाद सभी राजनीतिक दलों के सांसद की संख्या केवल एक अंक में ही रही थी। तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 9 लोकसभा की सीटों पर जीत हासिल की थी। इस पार्टी का वोट प्रतिशत 1.26 था और इसके मतदाताओं की संख्या 76 लाख 96 हजार 848 थी। लोजपा के सांसद 6 थे, वोट प्रतिशत 0.52 था और मतदाता 32 लाख 6 हजार 979 थे। सपा (समाजवादी पार्टी) और राकांपा (राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी) ने लोकसभा की पाँच-पाँच सीटें जीती थीं। सपा का वोट प्रतिशत 2.55 था और इसके मतदाता 1 करोड़ 56 लाख 47 हजार 206 थे। राकांपा का वोट प्रतिशत 1.39 था और मतदाता थे 85 लाख 331। सत्रहवीं लोकसभा में निर्दलीय सांसद 4 थे, निर्दलीयों का वोट प्रतिशत 2.68 था और 1 करोड़ 64 लाख 85 हजार 773 मतदाता इनके साथ थे। तेदेपा (तेलुगु देशम पार्टी), भाकपा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और नेशनल कॉन्फ्रेंस चार ऐसे दल थे, जिनके सांसदों की संख्या समान थी, तीन। तेदेपा को 2.04 प्रतिशत वोट मिले थे। इनके मतदाताओं की संख्या 1 करोड़ 25 लाख 15 हजार 345 थी। माकपा वोट प्रतिशत 1.77 था। इस पार्टी को 1 करोड़ 7 लाख 44 हजार 908 मतदाताओं ने वोट दिया था। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का वोट प्रतिशत 0.26 था, जिनके मतदाता 15 लाख 92 हजार 467 थे। नेशनल कॉन्फ्रेंस का वोट प्रतिशत 0.05 था और इस पाटी के पक्ष में 2 लाख 80 हजार 356 मतदाताओं ने मतदान किया था। जिन चार दलों की संख्या 2 थी, वे थे – शिरोमणि अकाली दल, जिनका वोट प्रतिशत 0.62 और मतदाता 37 लाख 78 हजार 574 थे। 0.58 वोट प्रतिशत के साथ भाजपा के दो संसद चुनाव जीते थे। इनके पक्ष में 35 लाख 76 हजार 184 वोट पड़े थे। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के 2 सांसद थे। इस पार्टी को 0.20 प्रतिशत वोट मिले थे। मतदाताओं की संख्या 12 लाख 1 हजार 542 थी। अपना दल (सोनेलाल) का वोट प्रतिशत 0.17 था और इस पार्टी को 10 लाख 39 हजार 478 वोटरों ने वोट दिये थे।
सत्रहवीं लोकसभा में 15 दलों के सांसदों की संख्या एक-एक थी। इनका वोट प्रतिशत एक से कम था। अन्नाद्रमुक, जनता दल सेकुलर, आम आदमी पार्टी, झामुमो, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, आजसू, विदुथलाई चिरुथिगल काच्ची, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, केरल कांग्रेस (एम), नागा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पीपुल्स पार्टी, मिजोनैशनल फ्रंट और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के सांसद सत्रहवीं लोकसभा में केवल एक-एक थे। इनका वोट प्रतिशत क्रमशः 1.28, 0.56, 0.44, 0.35, 0.23, 0.12, 0.11, 0.11, 0.08, 0.08, 0.07, 0.06, 0.07, 0.04, और 0.03 था और मतदाताओं की संख्या क्रमशः 78 लाख 30 हजार 146, 34 लाख 57 हजार 107, 27 लाख 16 हजार 629, 19 लाख 1 हजार 976, 14 लाख 2 हजार 88, 7 लाख 9 हजार 685, 6 लाख 60 हजार 51, 6 लाख 48 हजार 277, 5 लाख 7 हजार 643, 5 लाख 510, 4 लाख 2 हजार 46, 3 लाख 63 हजार 527, 4 लाख 25 हजार 986, 2 लाख 24 हजार 286 और 1 लाख 66 हजार 922 थी।
सत्रहवीं लोकसभा का यह आँकड़ा संभवत: अठारहवीं लोकसभा के चुनाव को दलीय दृष्टि से समझने और विचार करने में कुछ सहायता करे, उन तमाम अटकलों-अनुमानों को खारिज भी करे, जो अभी किये जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के साथ अन्य दलों का गठबंधन विगत पाँच वर्ष में बनता-बिखरता रहा है। बहुमत में आने के बाद भी भाजपा अन्य छोटे दलों को अपने साथ लाने और उसे बनाये रखने में सावधान है। अठारहवीं लोकसभा चुनाव के पहले अब तक बना भाजपा गठबंधन बरकरार है। केवल कांग्रेस में ही नहीं, अन्य क्षेत्रीय दलों में भी उसने जिस प्रकार तोड़-फोड़ की है, उसका अब तक के चुनावी इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। भाजपा और नरेन्द्र मोदी को किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए, चुनाव में जीत चाहिए। चुनाव जीतने के लिए वह कुछ भी कर सकती है। राजनीतिक दल और उनके मुखिया जो कभी सोच भी नहीं सकते थे, वे सब उनके सामने घटित हो रहे हैं। मोदी-शाह एक चाल के बाद दूसरी क्या चाल चलेंगे, अनुमान करना कठिन है। झटके पर झटके लग रहे हैं, ‘इंडिया’ गठबंधन बुरी तरह बिखर चुका है। प्रायः सभी दल अपनी नग्न अवस्था में हैं चुनाव जीतने के जितने तरीके और हथकण्डे हो सकते हैं, वे सब आजमाये जा रहे हैं। अठारहवीं लोकसभा का चुनावी दृश्य अभी पूरी तरह साफ नहीं है। एक ओर राहुल गाँधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा है, दूसरी ओर कांग्रेस के भीतर ही तोड़-फोड़ है। राजनीति बदल चुकी है। शुचिता का अब कोई अर्थ नहीं रहा। गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव से पहले ही सी ए ए (नागरिकता संशोधन अधिनियम) लागू किये जाने की घोषणा की है। राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी धर्म और हिन्दुत्व की राजनीति मौजूद है। इस बार की घेरेबन्दी कई स्तरों पर है। अब तक चुनाव में केवल धर्म और जाति की उफनती राजनीति ही प्रमुख थी।
कांग्रेस को छोड़कर कोई दल ऐसा नहीं है, जो भाजपा को ,मोदी-शाह को चुनौती दे सके। राहुल गांधी एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो मोदी से सवाल कर रहे हैं, मोदी से सवाल करने की हिम्मत, उनके सामने तन कर खड़े होने का साहस किसी में नहीं है।कर्पूरी ठाकर को भारत रत्न देना एक चुनावी कदम था। लोकसभा चुनाव के पहले जिस प्रकार भारत रत्न दिया जा रहा है, उसका एक चुनावी मकसद है। पहली बार भारत रत्न चुनावी राजनीति से जुड़ा है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने के बाद ही नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़कर पुन: भाजपा का दामन थामा। नरसिम्हा राव को भारत रत्न देकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया गया। नयी उदारवादी अर्थव्यवस्था और ‘उनिभू’ (उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण-भूमंडीकरण) को नरसिम्हा राव ने ही लागू किया था। उसी मार्ग पर भाजपा ‘बुलडोजर’ चलाती हुई दौड़ रही है। जब एक एक घटना सामने आती है, तुरंत दूसरी दुर्घटना का सामना करना पड़ता है। झटके देने में मोदी-शाह का कोई मुकाबला नहीं है। विपक्षी दलों को भ्रष्ट, निकम्मा और बेईमान सिद्ध करने के लिए उनके नेताओं पर छापे मारे जा रहे हैं। क्या पहले, किसी भी लोकसभा चुनाव के पहले ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) इतना अधिक सक्रिय था? अब सभी संस्थाएँ मुट्ठी में हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना और राकांपा टूट चुकी है। जो पार्टी जो नेता दूसरे दलों को तोड़ने में प्रवीण हैं,उसकी राजनीति क्या तोड़-फोड़ की राजनीति नहीं होगी? चौधरी चरण सिंह किसान नेता थे। उन्हें भारत रत्न से विभूषित कर जयंत चौधरी को अपने साथ ले लिया गया है। जयंत चौधरी अब भाजपा के साथ हैं। क्या भारत रत्न एक प्रकार की रिश्वत है? एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देना क्या सचमुच उनका सम्मान है? किसान संगठनों ने सदैव स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने की मांग की है। इस आयोग ने, जिसका गठन 2004 में केन्द्र सरकार ने किया था, एम एस पी (मिनिमम सपोर्ट प्राइस, न्यूनतम समर्थन मूल्य) को औसत लागत से 50 प्रतिशत अधिक करने की सिफारिश की थी। भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की बात कही थी। किसान इस समय उसी को लागू करने के लिए आन्दोलनरत हैं और भाजपा की सरकार उन पर अश्रु गैस छोड़ रही है। एम. एस. स्वामीनाथन को भारत रत्न, देने और किसानों के साथ दुर्व्यवहार ही नहीं, उनके दिल्ली मार्च पर, दिल्ली के बॉर्डरों को सील करने का अर्थ क्या है?
अठारहवीं लोकसभा चुनाव के पहले अभी और जो कुछ घटित होगा, उसका अनुमान लगाया जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल 36 राजनीतिक दलों की जीत हुई थी। आगामी लोकसभा में कितने दल जीतेंगे और किस दल का किसके साथ गठबंधन कायम होगा, नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों को तोड़ने की कोशिशें जारी रहेगी। कल क्या होगा, हम नहीं जानते। केवल इतना जाना जा सकता है कि जो भी होगा, वह न देश के लिए भला होगा और न समाज के लिए। फिलहाल लोकसभा चुनाव की घोषणा की प्रतीक्षा करें।