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विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस – 2 अप्रैल


  • डॉ. अरविन्द जैन  

 

ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है। उम्र बढ़ने के साथ बच्चों में इसके लक्षण पहचाने जा सकते हैं| ऑटिज्म के रोगी में आईक्यू लेवल अन्य से अलग होता है। गर्भावस्था में पोषक तत्वों में कमी के कारण बच्चों में ऑटिज्म हो सकता है| जन्म के समय बच्चे में ऑटिज्म स्पेकट्रम डिसआर्डर का पता लगा पाना मुश्किल होता है। एक साल की उम्र से पहले बच्चों में इसके लक्षणों को पहचान पाना काफी मुश्किल हो जाता है। जब तक बच्चा दो से तीन साल तक का नहीं हो जाता तब तक माता-पिता बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं।

ऑटिज्म से ग्रस्त  बच्चे छूने पर असामान्य बर्ताव करते हैं। जब उन्हें उठाया जाता है तो वे लिपटने के जगह लचीले पड़ जाते हैं या तन जाते हैं। जीवन के पहले साल में वे सामान्य ढंग से विकसित नही हो पाते जैसे माँ की आवाज पर मुस्कुराना, दूसरो का ध्यान खिंचने के लिए किसी वस्तु की तरफ इशारा करना, एक शब्द से बातचीत करना। बच्चा आंख से आंख नही मिला पाता है, माता-पिता को अजनबियों से अलग नहीं पहचान पाता है और दूसरों में काफी कम रूचि लेता है। इस तरह का व्यवहार काफी असमान्यताओं की ओर इशारा करता है।

क्या है ऑटिज्म?

ऑटिज्म एक तरह का न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर है, जो बातचीत (लिखित और मौखिक) और दूसरे लोगों से व्यवहार करने की क्षमता को सीमित कर देता है। इसे ऑटिस्टिक स्पैक्ट्रम डिस्ऑर्डर कहा जाता है, क्योंकि प्रत्येक बच्चे में इसके लक्षण अलग-अलग देखने को मिलते हैं। ऐसे कुछ बच्चे बहुत जीनियस होते हैं या उनका आईक्यू सामान्य बच्चों की तरह होता है, पर उन्हें बोलने और सामाजिक व्यवहार में परेशानी होती है। कुछ ऐसे भी होते हैं, जिन्हें सीखने-समझने में परेशानी होती है और वे एक ही तरह का व्यवहार बार-बार करते हैं। चूंकि ऑटिस्टिक बच्चों में समानुभूति का अभाव होता है, इसलिए वे दूसरों तक अपनी भावनाएं नहीं पहुंचा पाते या उनके हाव-भाव व संकेतों को समझ नहीं पाते। कुछ बच्चे एक ही तरह का व्यवहार बार-बार करने के कारण थोड़े से बदलाव से ही हाइपर हो जाते हैं।

क्या है इसका कारण ?

ऑटिज्म के वास्तविक कारण के बारे में फिलहाल जानकारी नहीं है। पर्यावरण या जेनेटिक प्रभाव, कोई भी इसका कारण हो सकता है। वैज्ञानिक इस सम्बन्ध में जन्म से पहले पर्यावरण में मौजूद रसायनों और किसी संक्रमण के प्रभाव में आने के प्रभावों का भी अध्ययन कर रहे हैं। शोधों के अनुसार बच्चे के सेंट्रल नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुँचाने वाली कोई भी चीज ऑटिज्म का कारण बन सकती है। कुछ शोध प्रेग्नेंसी के दौरान माँ में थायरॉएड हॉरमोन की कमी को भी कारण मानते हैं। इसके अतिरिक्त समय से पहले डिलीवरी होना। डिलीवरी के दौरान बच्चे को पूरी तरह से आक्सीजन न मिल पाना। गर्भावस्था में किसी बीमारी व पोषक तत्वों की कमी प्रमुख कारण है। बच्चे के जन्म के छह माह से एक वर्ष के भीतर ही इस बीमारी का पता लग जाता है कि बच्चा सामान्य व्यवहार कर रहा है या नहीं। शुरुआती दौर में अभिभावकों को बच्चे के कुछ लक्षणों पर गौर करना चाहिए। जैसे बच्चा छह महीने का हो जाने पर भी किलकारी भर रहा है या नहीं। एक वर्ष के बीच मुस्कुरा रहा है या नहीं या किसी बात पर विपरीत प्रतिक्रिया दे रहा है या नहीं। ऐसा कोई भी लक्षण नजर आने पर अभिभावक को तुरन्त किसी अच्छे मनोचिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए। 

क्या हैं इसके लक्षण?

जिन लोगों में ऑटिज्म के लक्षण होते हैं वे अपने आसपास के लोगों और पर्यावरण से उदासीन से हो जाते हैं। अक्सर खुद को चोटिल या किसी ना किसी तरह नुकसान पहुँचाते हैं। बार-बार सिर हिलाना, एक ही तरह का व्यवहार या आवाज बार-बार करना, थोड़ा सा भी बदलाव होने पर बेचैन हो जाना, देर तक एक ही तरफ देखते रहना, बार-बार हिलना और एक ही तरह का बॉडी पॉस्चर रखना| कब्ज, पाचन सम्बन्धी समस्या और अनिद्रा जैसे लक्षण भी दिखते हैं। अक्सर माता-पिता के लिए यह सबसे बड़ी मुश्किल होती है कि वे अपने ऑटिज्म ग्रस्त बच्चे को कैसे संभाले या उसके साथ कैसे व्यवहार करें। ऐसे में सबसे पहले तो माता-पिता को बच्चे का साथ छोड़ने की जगह उनके साथ प्यार व दुलार के साथ पेश आना चाहिए। बच्चे को संभालने के लिए उसके व्यवहार को परखें और समझें कि वो क्या कहना चाहता है। ऐसे लोग अपनी हर इच्छा को तीखे या दबे हुए व्यवहार से ही बताना चाहते हैं। ऑटिज्म के मरीज अन्तर्मुखी होते हैं, यह समाज से नहीं जु़ड़ पाते। यदि जुड़ते भी हैं, तो उनका व्यवहार काफी अलग होता है। ऐसे लोग किसी भी बात को सुनने के बाद लगातार बोलते रहते हैं। इनके दैनिक दिनचर्या में अगर कोई बदलाव आ जाए, तो ये मानसिक रूप से काफी परेशान हो जाते हैं। ऑटिज्म से पीड़ित मरीजों को समुचित देखरेख की जरूरत होती है। ऑटिज्म आजीवन रहने वाली बीमारी है, जिसे दवाइयों से ठीक कर पाना थोड़ा मुश्किल है।

ऑटिज़्म के  तीन प्राथमिक प्रकार हैं–

आस्पेर्गर सिंड्रोम

पीडीडी एनओएस (व्यापक विकास-विकार, अन्यथा निर्दिष्ट नहीं)

ऑटिस्टिक डिसऑर्डर

दो और दुर्लभ लेकिन अभी भी महत्वपूर्ण एएसडी जैसी स्थितियों को शामिल किया गया है – बचपन-विघटनकारी विकार और रिट सिंड्रोम।

आस्पेर्गर सिंड्रोम : अस्पेर्गेर सिंड्रोम सबसे हल्का ऑटिज़्म प्रकार है। लड़कों की तुलना में तीन बार लड़कियां  प्रभावित होते हैं। जैसे ही बच्चों को एक विषय या वस्तु पर जुनून मिलता है। वे अपनी पसन्द के विषय के बारे में सबकुछ सीखते हैं और इस पर चर्चा करना बंद नहीं करते हैं। हालांकि वे अपने सामाजिक कौशल में अक्षम थे और वे आमतौर पर असंगठित और अजीब होते हैं। अन्य एएसडी अस्पेर्गेर के लिए सामान्य बुद्धि से अधिक होना भी असामान्य नहीं है। कुछ डॉक्टर द्वारा इसी कारण से इसे ‘उच्च कार्यशील ऑटिज़्म’ कहा जाता है। बढ़ने पर बच्चों के रूप में, उच्च अवसाद और चिन्ता जोखिम का सामना करना पड़ता है।

ऑटिस्टिक डिसऑर्डर : ऑटिज़्म निदान के लिए एक और कड़े मानदंडों को पूरा करने वाले बच्चों में ऑटिस्टिक डिसऑर्डर होता है। उनके पास उच्च भाषा और सामाजिक हानि और दोहराव वाला व्यवहार है। दौरे और मानसिक मंदता भी आम है।

लक्षण –

एक बच्चे में विकलांगता या बोलना देरी से सीखना।

संचार के साथ कठिनाई, सामाजिक बातचीत के साथ कठिनाई।

प्रेरक हितों और दोहराव वाले व्यवहार।

गरीब माँसपेशी समन्वय या टिक।

इलाज: ठीक नहीं किया जा सकता है, लेकिन उपचार मदद करता है इसके लिए योग्य स्नायु रोग चिकित्सक  का परामर्श लेना आवश्यक हैं और इसमें रोगी  के प्रति समानुभूति (एम्पैथी)की अधिक जरुरत होती हैं

 लेखक उपन्यासकार हैं तथा शाकाहार परिषद्, भोपाल  के संरक्षक हैं|
 सम्पर्क – +919425006753, arvindkumarjain1951@gmail.com
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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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