सामयिक

 यदि लॉकडाउन न होता तो?

 

  • भूपेन्द्र हरदेनिया

 

वर्तमान महामारी के इस दौर में एक निर्णय से हम घरों में कैद होकर रह गये, कई कार्य और कई योजनाएँ धरी की धरी रह गयी। चारों तरफ एक ही भय और वह है सिर्फ और सिर्फ संक्रमण का। सियासत की साजिशों के चलते विभिन्न राज्यों के बस स्टेंड, रेलवे स्टेशन, चौराहों और सड़कों पर हजारों मज़दूरों का हुजू़म सभी ने देखा, जिसमें कईयों ने इस दौरान अपनी जान गँवाई।  उनका दर्द, उनकी वेदना को शब्दों में नहीं ढाला जा सकता। पर हमारे दिमाग में एक और भी प्रश्न  बार बार दस्तक दे रहा है कि क्या मोदी जी को यह लॉकडाउन नहीं करना चाहिए था, क्या उनका यह निर्णय गलत था, क्या उनको इसके लिये किसी योजना हेतु इंतजार करना चाहिए था? क्या इसके लिये वे हाई प्रोफाइल मीटिंग लेते?

पर आपने यह कभी सोचा है अगर यह लॉकडाउन के निर्णय को सही समय पर न लिया गया होता तो क्या होता। किसी भी कार ड्राइवर को एक्सिडेंट होने की पूर्वास्था में कुछ सैकेंड का समय मिलता है, जिसमें वह अपने तुरत निर्णय और सूझबूझ से अपनी और परिवार की जान बचा सकता है। इसी प्रकार यह निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि इस लॉक डाउन ने लाखों लोगों की जान बचा ली, अगर यह न होता तो हम सब,  हमारे अजीज़ और शायद आप सभी इस संक्रमण के शिकार होते। और आज  देश का जो वर्तमान आँकडा़ लगभग 118000 है, वह कई लाख होकर सारे विश्व के आँकडो़ं के रिकार्ड को तोड़ चुका होता। लॉकडाउन में कुछ ढील का परिणाम यह हुआ कि अब यह आँकडा़ आसमान छूने लगा है। जब लॉकडाउन था तब यह स्थिति है, सोचिये अगर यह न होता तो हम कहाँ होते।corona

आज दिन-ब-दिन मरीजों की संख्या पहले की तुलना में अधिक वृद्धि कर रही है, लेकिन पूर्व में लगे लॉकडाउन से अन्य देशों की अपेक्षा यहाँ का वृद्धि अनुपात कम है। अतः लॉकडाउन सही समय पर किया गया हिम्मत का निर्णय है, इसके लिये वर्तमान सरकार धन्यवाद की पात्र है। जो लोग इस समय राजनीति कर रहे हैं, घृणा और झूठ के साथ अफवाहों का वातावरण निर्मित कर डर और भय का माहौल पैदा कर रहे हैं, उन्हें अपने अन्तर्मन में स्वयं झाँक कर देखना चाहिए कि कमी किसमें नहीं होती, क्या जो इस आपात स्थिति में केवल आलोचना में लगे हैं (कुछ कर नहीं रहे), उनमें कमी नहीं है, वे दूध से  धुले हैं, चाँद में भी दाग है लेकिन वह भी हमें अपनी शीतलता प्रदान करता है, और हम अपने प्रिय को उस दगीले चाँद से उपमित करते हैं, फिर हम तो आम इन्सान हैं।

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आप विचार कीजिये कि यदि लॉक डाउन न होता तो क्या होता? हम सब आराम से अपने कार्यकलाप तो कर रहे होते लेकिन इस महामारी से बेखबर होकर, और इसका हश्र क्या होता उसके लिये हम तीस-मार-खाँ विकसित देशों को देख सकते हैं। हम तो विकास के मामले में अदने हैं, जिस देश की छोटी छोटी तहसीलों में सामान्य पेट दर्द पर मरीज को रैफर कर दिया जाता है, वहाँ उन छोटे-छोटे कस्बों में क्या हालात पैदा होते। कृपया दलगत, वाद, प्रतिवाद और पंथ की राजनीति से ऊपर उठकर माँ भारती के लिए कार्य करें, लोगों की सहायता के लिये कार्य करें, बाहर न निकलें,  यह सही समय है देश सेवा, जन सेवा का।

जो नहीं कर रहे कोई बात नहीं, वे आत्म मुग्ध हैं, कभी करेंगे भी नहीं, वे इस महामारी में भी भ्रष्टाचार से कमाने की सोचेंगे। ये उन्हीं लोगों में से हैं जिन्होंने सरकार के आग्रह बाद इस दुर्भिक्ष में नौकरी से निकाल दिया। लेकिन समझदार वर्ग को देशहित में आगे आना ही होगा, विशेष तौर पर युवाओं को जो इस देश का भविष्य हैं, उन्हें अपना वर्तमान और बिगड़ते हलातों को सुधारना ही होगा।  कुछ निर्णय में सरकार से त्रुटि हुई है, कि लॉकडाउन से पहले लोगों को यथास्थान सुरक्षित पहुँचाने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए थी,  पर हो सकता है कि इससे यह और विकराल रूप में होता और मरने वालों की तादाद भी कई गुना अधिक। मुझे लगता शत-प्रतिशत कोई नहीं दे सकता, आप और हम भी उस जगह होते तो शायद नहीं।  इतना ही कहना बेहतर है कि “बीती ताहि बिसार देओ, अब आगे की सुध लेओ”।

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अभी सरकारों के पास मौका है कि वे  पलायन करते हजारों पीड़ित लोगों को अविलम्ब मदद पहुँचाये, और उनके कष्ट को अपना कष्ट समझते हुए स्थानीय लोग भी आगे आयें। महामारी प्रकृति प्रदत्त हो या व्यक्ति प्रदत्त,  हमें उस स्थिति को सम्भालना चाहिए।  सबका साथ सबका विकास में केवल सरकार ही नहीं सभी को मिलकर सरकार और समाज में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करना होगा, वह भी व्यक्तिगत दूरी बनाए रखकर, तभी हम सब साथ साथ विकास के सोपानों प्राप्त कर सकते है, और इस महामारी से जीत पाएँगे।  भारतीय चिकित्सक, भारतीय पुलिस को, भारतीय सेना को, स्वयं सेवी संस्थाएँ जो सच्चे मन से इस देश और नागरिकों की सेवा और सुरक्षा में लगे हैं, वे सब सलामी योग्य हैं। उन योद्धाओं को हमें सम्मान देना चाहिए, जिन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना ही दिन रात लोगों की सेवा की।

bhupendra hardeniya

लेखक युवा चिन्तक और शासकीय नेहरू महाविद्यालय, सबलगढ़ जिला मुरैना में व्याख्याता हैं।

सम्पर्क- +919893523538, drbhupendra.hardenia70@gmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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