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कुछ दिन पहले जब विराट कोहली और अनुष्का शर्मा की शादी का खुलासा मीडिया में किया गया, तब इस खुलासे से चकित जनता के बीच सोशल मीडिया पर एक संदेश बहुत ही तेजी से वायरल हुआ जिसमें दो आदमी प्लेट में ढेर सारी मिठाईयां, पूरी आदि लिये खाना खाते दिख रहे थे. इस तस्वीर के नीचे लिखा था कि “विराट और अनुष्का ने इसीलिए इटली में जाकर शादी की.” इस तस्वीर में एक आदमी की थाली में लगभग चार आदमी का खाना था, जो एक ही आदमी खा रहा था।
इसका मतलब था कि भारत के लोगों को जब भी मौका मिले या मुफ्त की कोई चीज मिले तो अपने हक, अधिकार और पेट से ज्यादा हड़पने अथवा हासिल करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इस तस्वीर और संदेश को देखकर तब मुझे बहुत गुस्सा आया था. ऐसा लग रहा था कि हमारे देश और यहां के लोगों का, खासतौर पर गरीब, कमजोर वर्ग का जान-बूझकर मजाक बनाया जा रहा हो. लेकिन कुछ दिन बाद मुझे एहसास हुआ कि मेरी सोच गलत थी.
सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले संदेश जैसा ही एक दृश्य सामने आया 25 दिसंबर, 2017 के दिन. जब देश-दुनिया में हर तरफ क्रिसमस की धूम मची थी. इस खास मौके पर बिलासपुर के सबसे बड़े ‘36 मॉल’ में 91.9 एफ.एम. ऑरेंज के तरफ से 91.9 फीट का केक काटने का आयोजन किया गया था. इस अवसर पर अतिथियों के रूप में अमर अग्रवाल (मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन), पी. दयानंद (बिलासपुर कलेक्टर), अर्चना झा (सहायक पुलिस अधीक्षक) तथा उस क्षेत्र के थाना प्रभारी मौजूद थे. कार्यक्रम की औपचारिकता पूरी होने के बाद जैसे ही केक को अतिथियों द्वारा काटा गया, वैसे ही वहां मौजूद जनता केक पर ऐसे टूट पड़ी, जैसे सदियों से भूखी जनता केक के ही कटने का इंतजार कर रही थी. क्या मंत्री, क्या कलेक्टर किसी ने कुछ नहीं देखा और सबको पीछे धकेलते हुये आगे केक की तरफ बढ़ते रहे.
एक-एक व्यक्ति ने पांच-पांच किलो तक के वजन का केक अपने हाथों में उठाये रखा. छोटे-छोटे बच्चों के मुंह में भी एक-एक पौंड के केक का टुकड़ा लोगों ने लगाये रखा. सिर्फ इतना ही नहीं, वहां जितना खा सके उतना तो खाये ही, उसके बाद भी मन नहीं भरा तो बैग, पेपर और पॉलीथिन में भरकर भी ले जाते नजर आए. मेरी आंखे ये सबकुछ पहली बार देख रही थी. यकीन मानिये यह सब मेरे लिए बिल्कुल नया था. जिसपर यकीन कर पाना मुश्किल हो रहा था. इस दृश्य पर मेरी आंखें यकीन नहीं कर पा रही थी कि ऐसी जनता जो सोशल स्टेटस को बरकरार रखने के लिए झूठे आन-बान-शान तक को बनाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, वो भीड़ अथवा जनता ऐसा कैसे कर सकती है?
वहां मौजूद अधिकांश लोग एक से बढ़कर एक परिधान में मौजूद थे. चारों ओर नजर दौड़ाने पर बॉलीवुड के किसी दृश्य जैसा प्रतीत हो रहा था. वहां मौजूद अधिकांश लोगों के स्टाईल, मेकअप और पहनावा बॉलीवुड और समाज के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति से किसी भी मायने में कम नहीं था. लेकिन ये लोग जिस तरीके से केक पर टूटकर, लूट रहे थे, उससे इनके अंदर की दरिद्रता स्पष्ट देखी जा सकती थी. ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे सदियों से भूखे-दरिद्र लोगों को पहली बार कुछ खाने को नसीब हुआ हो। यह दृश्य मेरे लिए किसी सदमे से कम नहीं था, जिससे अबतक मैं ठीक से उबर नहीं पायी हूँ.
इस प्रत्यक्ष दृश्य और विराट-अनुष्का की शादी को लेकर वाट्सअप पर वायरल हुये संदेश में एक बहुत ही बड़ा अंतर यह था कि वाट्सअप वाली तस्वीर में दिखने वाले लोग ग्रामीण भारत का हिस्सा दिख रहे थे. जिनको देखने पर उनकी बदहाली साफ-साफ देखी जा सकती थी. किंतु मॉल में जो दृश्य मैंने देखा, वह बिल्कुल अलग था। मॉल में मौजूद अधिकांश लोग अभिजात्य अथवा रईस और पढ़े-लिखे प्रतीत हो रहे थे, जिनके द्वारा केक को लूटना एक अशोभनीय हरकत थी.
इस घटना से एक और चीज उभरकर मेरे सामने आया कि जो हम देखते हैं अथवा दिखाये जाते हैं, जरूरी नहीं कि वही सही हो. हकीकत अक्सर उससे भिन्न होता है. मेरा तात्पर्य है कि गरीबों, वंचितों को तो हम भुक्खड़ की तर्ज पर प्रस्तुत कर देते हैं लेकिन वास्तव में जो लोग लुटेरे हैं अथवा सोच से दरिद्र हैं, उनके चेहरे को कहीं सामने नहीं लाया जाता है. यदि वास्तविक लुटेरों के चेहरे को उजागर किया जाये तो देश की गरीब, बदहाल जनता कभी उस तरीके से तस्वीरों में भी नहीं दिख पायेंगे जिस तरीके से विराट और अनुष्का की शादी के समय संदेश में वायरल हुई तस्वीर में दिखाया गया. क्योंकि एक-तिहाई जनता अपनी बदहाल जिंदगी से ऊपर उठ जायेगी.
हम अक्सर ऐसा देखते हैं कि जरूरतमंदों के हकों-अधिकरों को दबा दिया जाता है। उनकी जरूरतों के लिए जो भी योजनाएं या फायदे दिये जाते हैं, उसे समाज के शक्तिशाली लोग पहले ही लूट लेते हैं जिसके कारण वंचित, गरीब और भी बदहाल होते जाते हैं और अमीर और भी अमीर होते चले जाते हैं. इस प्रकार हम देखते हैं कि समाज में यथास्थिति सदैव बरकरार रहती है. उदाहरण के तौर पर राजीव गांधी के उस कथन पर ध्यान दिया जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि जिस जरूरतमंद जनता को सौ रूपया भेजा जाता है, उसे मात्र एक रूपया ही पहुंच पाता है. बाकी के 99 रुपये ऐसे लोगों की जेब में चले जाते हैं जिनके वे हकदार ही नहीं हैं और यह स्थिति कमोवेश हर तरफ बरकरार है.
देश के केंद्र में बैठे लोग करोड़ों रुपये कमाकर 10 रुपये में भरपेट खाना प्राप्त कर लेते हैं और जो बदहाल जनता अपनी स्थिति से उबरने के लिए मताधिकार का प्रयोग करके उन्हें वहां तक प्रतिनिधि बनाकर भेजते हैं, उन्हें 10 रूपये में एक वक्त का भोजन भी शायद ही नसीब हो पाता है। शायद इसीलिए दिनभर विकास-विकास की बात सुनना एक समय के बाद गाली जैसा प्रतीत होने लगता है, क्योंकि जिस देश में एक-तिहाई जनता भूखे सोने को मजबूर हो, उस देश में विकास को मापने का पैमाना क्या हो सकता है? संसद में बैठे लोगों को 10 रुपये में भरपेट भोजन की व्यवस्था देना देश की बहुसंख्यक बदहाल आबादी के साथ किसी मजाक से कम नहीं है।
देश की गरीब जनता कई रूपों में लूट का निरंतर शिकार हो रही है, जिससे उबर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा प्रतीत होता है. इसका मुख्य कारण हमारी कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की लचर व्यवस्था है. जहां पीड़ितों को सामान्यतः न्याय से वंचित ही रखा जाता है. उन्हें न तो कहीं सुना जाता है और ना ही कहीं देखा जाता है. इन्हें हर पार्टी की सरकार सिर्फ वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करती नजर आती है.
हम देश के पूरे परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो मुझे बदहाल व्यवस्था में वास्तव में तो देश की एक तिहाई आबादी दिखती है, जिसे विराट-अनुष्का की शादी के दौरान वाट्सअप पर दिखाया गया लेकिन यह बदहाल आबादी असली लुटेरे नहीं हैं। असली लुटेरे इस बदहाल आबादी के ऊपर के लोग हैं जो इन लोगों पर या तो शासन कर रहे हैं या फिर समाज में किसी-न-किसी रूप में इनसे ऊपर स्थान रखते हैं. दुख की बात यह है कि असली लुटेरों की तस्वीरों को कभी वायरल नहीं किया जाता है. इनके मान-मर्यादा से कभी खिलवाड़ नहीं किया जाता है, क्योंकि ये समाज के शक्तिशाली वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं अथवा किसी-न-किसी रूप में किसी अदृश्य शक्ति के संपर्क में होते हैं.
इस प्रकार से हम देखते हैं कि समाज की बदहाल जनता का उपहास करने वाले लोग तो हर तरफ मौजूद हैं लेकिन इस बहुसंख्यक आबादी के दुख-दर्द को दूर करने वाले तथा उसे उजागर करने वालों की संख्या बहुत कम है.
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