अव्वल तो हरियाणा में सिनेमा ज्यादा बन नहीं रहा था। एक अर्से बाद इसमें तेजी आई है तो उसका पूरा क्रेडिट ‘स्टेज एप्प’ को दिया जाना चाहिए। बॉलीवुड के नजरिए से देखें तो हरियाणवी सिनेमा ठीक ठाक लेवल पर गाहे-बगाहे नज़र आ ही जाता था। लेकिन रेंगने और दौड़ने में फर्क होता है जनाब।
हाल में स्टेज एप्प पर रिलीज हुई इस ‘ओपरी पराई’ को पहली ऑफिशियल हॉरर वेब सीरीज हरियाणवी सिनेमा की कह सकते हैं। हॉरर और वो भी हरियाणा में! चौंकिए मत जनाब। असल मुद्दा तो इसके अन्त में छिपा हुआ है। तो बात शुरु करें कहानी से तो वह तो इतनी सी है कि हरियाणा के सोच से पिछड़े एक गांव में बल्कि उसमें भी एक घर में बहू के भीतर आ गई एक ऊपरी छाया। वहीं दूर गांव में एक लड़की से प्यार करने के चक्कर में मारा गया लड़का। वही अब इस दूसरे गांव की लड़की में आ गया है।
दूर-दूर के गांव से भूत चलकर आ रहे हैं। आप कहेंगे ये क्या मजाक है। अरे भाई भूत-भूतिनियों के लिए कोई दूरी मायने रखती है क्या? चलो खैर आ भी गया भूत तो अब इसका इलाज क्या होगा? इधर हमारा देश इक्कसवीं से बाइसवीं सदी की ओर दौड़ रहा है। उधर हरियाणा के गांवों में ही क्यों देश के ऐसे कई अन्य पिछड़े गांवों के हालात भी तो इस कदर हैं। जैसा इस सीरीज में हॉरर के बहाने से तथा हॉरर के नजरिए से दिखाए गए हैं।
देश-दुनिया भले ही चांद पर पहुंच गई हो लेकिन असल जीवन में भूत प्रेत और सिनेमा में तो हॉरर का तड़का दोनों का अलग ही रुतबा है। इधर असल जीवन में किसी के साथ ऐसा हो और वह अपने जीवन में नया सवेरा पा जाए तो जीवन फिर से पटरी पर आ जाता है। उधर सिनेमा में कहानी और स्क्रिप्ट कहीं हिचकोले खा जाए तो नया सवेरा होने में देर लगती है।
ऐसा ही दरअसल इस सीरीज के साथ हुआ है। इसे देखते हुए सिनेमाई नजरों से इसका कैथार्सिस यानी इसका विरेचन करते हुए दर्शक, समीक्षक की नजरें पहले ही एपिसोड में बुझ जाती हैं। लेकिन मात्र पांच एपिसोड उसमें भी करीबन बीस मिनट का हर एपिसोड देखते हुए जब आप इसके अंत तक आते हैं तो पहले एपिसोड में जो कमियां लगती हैं उनका भी विरेचन हो जाता है।
स्टेज एप्प की यह सीरीज केवल अपना ही नहीं दर्शकों का भी विरेचन करती है। उनके भीतरी दिमाग का, उनके आपसी रिश्तों का। लेकिन इसके मात्र पांच ही एपिसोड आना एक बेसब्री से भी आपको भर जाता है। बेसब्री ऐसी की आगे क्या हुआ? इस सीरीज को देखने वाले चोर नजर से भले ही इसकी बुराई करें लेकिन वे ही सबसे ज्यादा बेसब्री से इसके दूसरे सीजन का इन्तजार भी करते नजर आएंगे।
एक्टिंग के नजरिए से लीड रोल में अंजवी हुड्डा , विजेता का काम सराहनीय है। बल्कि यह पूरी सीरीज ही अंजवी के नाम से कही जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। हरियाणा के सिनेमा जगत में अंजवी हुड्डा ऐसे ही काम लगातार करती रहीं तो एक बड़ा नाम होगा। स्पेशल अपीयरेंस के रुप में विश्वास चौहान प्यारे लगते हैं और इस सीरीज के लिए एक अच्छी कास्टिंग के रुप में चुनाव भी बेहतर रहा। अल्पना सुहासिनी, विजय दहिया, धीरज दहिया, संदीप शर्मा, संगीता देवी, रामपाल बल्हारा, नरेश चाहर, मोहित हुड्डा, हर्ष आदि अपने काम से सीरीज को वो सहारा प्रदान करते हैं जिससे इसकी बाकि कमियों को भुलाया जा सके।
एडिटिंग से कुछ हल्की, क्लरिंग से उम्दा, म्यूजिक से बेहतर, गीत-संगीत से ठीक, निर्देशन से बेहतर आशा बरकार रखे हुए पांच एपिसोड की इस सीरीज में जो स्टेज एप्प के सहारे हरियाणवी सिनेमा को नया सवेरा इसने दिखाया है उससे इतनी उम्मीद तो जगती हैं कि आगे और विकास होगा। साथ ही यह सवेरा अब सभी को चहूं ओर साफ नजर भी आने लगेगा लेकिन….
साथ ही एक बात यह भी गौर करने लायक है इस सीरीज के नाम से कि ‘ओपरा पराई’ नाम से बनने वाली इस सीरीज का नाम ‘ओपरा’ से ओपरी कर देने से क्या तुक था? ओपरा और ओपरी दोनों ही जब पराए हों ग्रामीण इलाकों की भाषा में तो पराई शब्द अलग से जोड़ना जमता नहीं है। निर्देशक को चाहिए था कि वे पहले सीरीज के लिए नाम का चुनाव बेहतर तरीके से कर पाते।
नोट – हॉरर के इस हरियाणवी मसाले में कुछ सीख छुपी हुई भी नज़र आती है और एक अलग नजरिया भी यह दर्शकों को दे जाती है।
अपनी रेटिंग – 3.5 स्टार
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तेजस पूनियां
लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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जब समाज चौतरफा संकट से घिरा है, अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, मीडिया चैनलों की या तो बोलती बन्द है या वे सत्ता के स्वर से अपना सुर मिला रहे हैं। केन्द्रीय परिदृश्य से जनपक्षीय और ईमानदार पत्रकारिता लगभग अनुपस्थित है; ऐसे समय में ‘सबलोग’ देश के जागरूक पाठकों के लिए वैचारिक और बौद्धिक विकल्प के तौर पर मौजूद है।
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