अधिकारी लाचार, अबकी बार कैसी भाजपा सरकार !
अभी कुछ महीने पहले ही यूपी चुनाव में एक नारा सबके सर चढ़कर बोलता था। नारा था, गुंडाराज ना भ्रष्टाचार, अबकी बार भाजपा सरकार। इस नारे ने जनता के दिल में भाजपा के लिए न सिर्फ भरोसा और विश्वास पैदा किया बल्कि इस नारे से जगी उम्मीद ने यूपी में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिला दी।
पार्टी ने फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया। योगी के सीएम बनते ही जनता को लगा कि अब यूपी में बदलाव होगा। जनता की आवाज़ सुनी जाएगी। जिसका हक, उसे मिलेगा। लेकिन जो हकीकत सामने आ रही है वो कम से कम इससे अलग है। हालात बताते हैं कि यूपी में ज्यादा कुछ नहीं बदला। बदला है तो सिर्फ मुख्यमंत्री का चेहरा और पार्टी का नाम।
दरअसल, यूपी में सच्चाई और इमानदारी से काम करने वाले अधिकारी भाजपा नेताओं को रास नहीं आ रहे हैं. अब वे नेताओं के जुल्म का शिकार होने लगे हैं। नेता गलत काम करने के लिए अधिकारियों पर दबाव बना रहे हैं। बात नहीं मानने की सूरत में उन अधिकारियों के बारे में गलत और झूठी रिपोर्ट सीएम तक पहुंचा रहे हैं। नतीजा ये है कि बेहतरीन काम करने वाले अधिकारियों का तबादला लगातार जारी है।
हो ये रहा है कि कई मंत्री, सांसद, और विधायक माफिया-भूमाफिया और शिक्षा माफिया के हाथों में खेलने लगे हैं। भाजपा नेताओं की इस करतूत की चर्चा की शुरुआत करते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से। कुछ दिन पहले एक IAS अधिकारी को वाराणसी विकास प्राधिकरण का कमिश्नर बनाया गया। कुर्सी संभालते ही IAS पुलकित खरे ने प्राधिकरण की पुरानी फाइलों को खुलवाया, जहां धांधली दिखी, वहां मोर्चा खोल दिया। सबसे पहले गाज गिरी अवैध कब्जा करने वालों के खिलाफ। कई धनकुबेरों की कोठियों, बहुमंजिला इमारतों को गिराने के लिए मोर्चा खोल दिया। मोर्चा खुलते ही बनारस के कई रइसों की साँस फूलने लगी। प्रदेश के सबसे बड़े शराब व्यापारी के होटल रमाडा पर अतिक्रमण हटाने के लिए बुलडोजर चलवा दिया। भाजपा नेता अजय सिंह के भाई की वरुणा नदी पर बने सूर्या होटल को भी गिराने की तैयारी हो गई थी। फिर क्या था? शहर के भाजपा नेता और मंत्री लामबंद हो गये। दबाव बनाने लगे। लेकिन इमानदार कमिश्नर ने पिछले 2 महीनों से नेताओं का फोन उठाना ही बंद कर दिया। आखिरकार इस बेहतरीन अधिकारी को इन नेताओं के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा। कमिश्नर पुलकित खरे का तबादला डीएम हरदोई कर दिया गया।
ऐसे ही जौनपुर के जिलाधिकारी का तबादला जिले के ही मछलीशहर सीट से सांसद राम चरित्तर निषाद ने ये कहकर करवा दिया कि डीएम महोदय गरीबों की बात नहीं सुनते। जिलाधिकारी के तबादले के लिए सांसद ने यूपी के प्रमुख सचिव से मुलाकात की और येन-केन-प्रकारेण इन्हें हटवा कर ही माने। इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर भी किया। लेकिन सूत्रों की मानें तो जिलाधिकारी को निकाय चुनाव में भाजपा नेताओं की बात नहीं मानने की सजा भुगतनी पड़ी है. नेता जी के मन की बात नहीं मानने पर उनका तबादला कर दिया गया। जिले की कुल 3 नगर पालिकाओं और 6 नगर पंचायतों के चुनाव में भाजपा को महज 2 सीटों पर ही जीत मिली थी। जिसके बाद भाजपा के नेता डीएम के कामकाज से संतुष्ट नहीं थे।
ऐसे ही प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के गृहजनपद कौशाम्बी में एक अधिकारी के खिलाफ भाजपा नेताओं ने मोर्चा खोला हुआ है। बता दें कि जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी एमआर स्वामी ने जिले के 200 सौ से अधिक गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों को चिन्हित कर इन पर तालाबंदी शुरू करा दी। इस फैसले के बाद सभी शिक्षा माफ़िया एकजुट हो गये। सत्तारूढ़ भाजपा नेताओं की शरण में जाकर गुहार लगाई। या कहिए कि सेटिंग की। जिसके बाद जिले के तीनों भाजपा विधायक, (संजय गुप्ता (चायल), शीतला प्रसाद (सिराथू) और लालचंद (मंझनपुर)) लखनऊ पहुंच गये। इन तीनों ने माध्यमिक शिक्षामंत्री से मुलाकात की। बेसिक शिक्षा अधिकारी एमआर स्वामी पर बिना वाज़िब नियम के स्कूलों पर तालाबंदी करने का आरोप लगा कर उन्हें हटाने की मांग कर डाली। बुधवार को ये मुलाकात हुई और खबर है कि जल्द ही स्वामी जी का तबादला किया जा सकता है।
ऐसे ही 20 दिसंबर को आज़मगढ़ जिले के मार्टीनगंज तहसील के तहसीलदार शिवसागर दूबे ने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया है। इनका आरोप है कि भाजपा सांसद और उनके समर्थक अवैध कब्जे रोकने की वजह से उनपर दबाव बनाते हैं। सांसद और समर्थकों की बात नहीं सुनने पर जिलाधिकरी के जरिए भी दबाव बनाने की कोशिश करते हैं।
बस्ती जिले का भी यही हाल है। सांसद हरीश द्विवेदी और भजपा के विधायक संजय लगातार डीएम और एसपी को हटाने का दबाव बनाते रहते हैं। ये दोनों नेता कुछ दिन पहले ही धरने पर भी बैठ गए थे। बाद में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने दोनों तरफ से समझौता कराया तब डीएम अरविंद सिंह का तबादला रूक सका था।
गाज़ीपुर में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर और जिलाधकारी संजय खत्री का विवाद तो देश भर में चर्चा में रहा। डीएम को न हटाये जाने पर सरकार से अलग होने तक की चेतावनी दे दी गई थी। आखिरकार डीएम को ही रायबरेली जाना पड़ा।
ऐसे मामले तकरीबन हर जिले के हैं, जहां भाजपा नेता नौकरशाही पर शिकंजा कसने के लिए लगातार धमक दिखा रहे हैं। अब सवाल ये कि गुंडाराज और भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश का नारा देने वाली भाजपा सरकार आखिर प्रदेश की नौकरशाही को किस दिशा में ले जाना चाहती है। क्या मिनीमम गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस का नारा ऐसे ही कामयाब होगा?
सबलोग ब्यूरो