मोस्ट वांटेड विकास मुठभेड़ में खलास, मददगीरों में खलबली
- शिवा शंकर पाण्डेय
अपराधी, नेता और गलीच गठजोड़ से पोषित अपराध जगत का “विकास” आखिरकार मुठभेड़ में मारा गया। आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करके फरार हुआ माफिया आठवें दिन का सूरज भी ना देख सका। कई लोगों को मौत की नींद सुलाने वाला शातिर माफिया विकास दुबे को पुलिस ने एनकाउण्टर में मौत की नींद सुला कर एक बड़े आतंक का अन्त कर दिया। 9 जुलाई को उज्जैन में महाकाल मंदिर से विकास दुबे को उस समय पकड़ा गया जब वह सरेंडर करने की कोशिश में था। कानपुर ला रही यूपी एसटीएफ ने माफिया को एनकाउण्टर में मार गिराया जब एक दरोगा की पिस्टल छीनकर भाग रहा था। छीना झपटी में गाड़ी पलट गयी दो तरफा फायरिंग में विकास दुबे को कन्धे, सीने और पेट में गोलियाँ लगी। इसमें विकास की मौत हो गयी, चार पुलिसकर्मी भी घायल हुए। घायल पुलिस वालों को कानपुर के कल्याणपुर सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। दुर्दांत विकास दुबे के अन्त के साथ ही कई महत्वपूर्ण राज का भी अन्त हो जाने की आशंका जताई जा रही है।
पुलिस अफसर से लेकर कई नेता पवित्र खाकी और खादी की आड़ में इस गैंग के मददगार रहे हैं। पारम्परिक तौर पर इस मुठभेड़ में भी सियासत गरमा गयी है। हर सही गलत पर विरोध करने के आदी हो चुके विपक्षी दल के कई नेता गाल बजाने से बाज नहीं आ रहे। ये बयानवीर इस सवाल से कन्नी काट रहे हैं कि सड़क छाप गुण्डे को खुला राजनैतिक संरक्षण देकर उसे हिस्ट्रीशीटर बदमाश से लेकर देश का चर्चित माफिया तक बनाने में कौन सा राजनीतिक दल अछूता रहा। करीब सभी दल के नेता उसे मदद पहुँचाने के आरोपी हैं। जाति और धर्म का जामा पहनाकर जहर बोने वाले बयानवीर इस सवाल पर बगल क्यों झाँकने लगते हैं कि मारे गये आठ पुलिसकर्मियों, भाजपा नेता, कालेज प्रबन्धक और अन्य लोग जो इस माफिया के शिकार बने, वे आखिर किस बिरादरी के थे? कुंडा के पत्रकार मथुरा प्रसाद धुरिया और प्रतापगढ़ के पत्रकार अजय पाण्डेय कहते हैं कि अपराधियों को जाति धर्म के खाँचे में नहीं सिर्फ अपराधी के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
बात-बात पर जाति-बिरादरी और धर्म-मजहब का चोला पहनाना भी बड़ा अपराध है। यह घातक है। इस पर प्रतिबन्ध होना चाहिए सन् 1990 से लेकर 2020 करीब 30 साल तक अपराध जगत में सक्रिय रहे पाँच लाख के इनामी व साठ से ज्यादा गम्भीर अपराध के मुकदमों के आरोपी विकास दुबे के सहयोगी रहे गुनाहगारों को सजा क्या मिल पाती है, यह तो वक्त बताएगा, पर इसका खुलासा बेहद जरूरी समझा जा रहा है कि कौन लोग उसे खूँखार बदमाश बनाने के गुनाह में बतौर मदादगीर शामिल रहे। बहरहाल घटना के बाद 11:00 बजे तक एडीजी, गृह सचिव समेत कई वरिष्ठ अधिकारी एनकाउण्टर स्थल पर पहुँच गये। उधर, मुख्यमन्त्री सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी पुलिस अफसरों को बुलाकर एनकाउण्टर मामले की जानकारी हासिल की। सूत्रों के मुताबिक, माफिया विकास दुबे की मदद करने वालों की जाँच तेज कर दी गयी है। जल्द ही कई चेहरे बेनकाब होंगे।
कानपुर के चौबेपुर क्षेत्र के गाँव में दो-तीन जुलाई की रात कुख्यात माफिया विकास दुबे के घर दबिश देने गयी तीन थाने की पुलिस टीम पर जबरदस्त फायरिंग कर सीओ देवेंद्र नाथ मिश्र, दो दरोगा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गयी थी। दरअसल, पुलिस के दबिश की सूचना पहले ही टेलीफोन पर किसी ने माफिया विकास दुबे को दे दी। लिहाजा, पुलिस टीम पर जोरदार हमला हुआ। सीओ, दो दरोगा समेत आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और पाँच पुलिसकर्मी घायल हो गये। पुलिस की एक 147, दो ग्लॉक पिस्टल और एक इंसास राइफल भी बदमाश छीन ले गये थे। पुलिस और कानून व्यवस्था दोनों के लिए यह घटना एक बड़ी चुनौती बनी थीं, पूरा देश हिल गया। पुलिस की जाँच पड़ताल में अवाक कर देने वाले कई तथ्य सामने आए कि किस कदर से 60 से ज्यादा गम्भीर आपराधिक मुकदमों वाला हिस्ट्रीशीटर गैंगस्टर व शातिर माफिया विकास दुबे तकरीबन हर राजनीतिक दलों के नेताओं का “दुलारा” बना रहा।
राजनीतिज्ञों की नापाक छत्रछाया में पोषित इस माफिया के कई पुलिस अफसर भी मददगार रहे हैं। पूर्व थानाध्यक्ष विनय तिवारी और तत्कालीन एसएसपी अनंतदेव भी गम्भीर आरोपों के घेरे में हैं। बेशकीमती जमीन कब्जाने, भाजपा के राज्य मन्त्री दर्जा प्राप्त एक नेता की थाने में घुसकर हत्या, ऑनड्यूटी दरोगा को सरेआम थप्पड़ मारने, रंगदारी वसूली जैसे तमाम संगीन अपराध करते हुए लॉ एंड ऑर्डर की छाती पर विकास दुबे लगातार कई साल तक मूंग दलता रहा। आश्चर्यजनक तो यह कि भाजपा के शासन में यह घटना हुई। भाजपा नेता के दिनदहाड़े थाने में घुसकर गोलियों से छलनी कर देने के मामले में एक भी गवाह तक नहीं मिला। लचर पैरवी के नाते विकास दुबे बेदाग छूट गया। इस बीच मन्त्री से लेकर तमाम अफसरों के साथ सार्वजनिक समारोहों में शामिल होकर फोटो खींचाकर अपनी यारी मजबूत करते हुए शुरू में सड़क छाप गुण्डा फिर दबंग फिर उसके बाद शातिर माफिया तक बन गया।
लॉ एंड ऑर्डर के साथ ही पूरे समाज के लिए घातक बन वह कानून व्यवस्था को लगातार चुनौती देता रहा। विकास दुबे के एनकाउण्टर के अलावा इस गैंग के पाँच गुर्गे पहले ही 6 दिन के अन्दर मुठभेड़ में ढेर हो चुके हैं। सरगना विकास दुबे का एनकाउण्टर छठवें नम्बर पर माना जा रहा है। इस घटना को लेकर एक तरफ जहाँ राजनीति गरमाने लगी है वहीं दूसरी तरफ इसके मददगार रहे नेता और पुलिस अफसरों में जबरजस्त खलबली मची है। देखना यह है कि शुरू में सड़कछाप गुण्डे को बड़ा अपराधी तक पहुँचाने वाले उसके मददगार रहे नेता और पुलिस अफसरों तक कानून का फंदा कैसे और कब पहुँच पाता है।
लेखक सबलोग के उत्तरप्रदेश ब्यूरोचीफ और भारतीय राष्ट्रीय पत्रकार महासंघ के प्रदेश महासचिव हैं|
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